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मानवनिर्मित कृत्रिम बुध्दि का मानव से ही संघर्ष ?

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डॉ.अभिजित वैद्य

ऑल्विन टॉफ्लर की ‘फ्युचर शॉक’ ‘भविष्य का धक्का”’ यह किताब १९७० में प्रसिध्द हुई और पूरे विश्व में
खलबली मची ! ‘भविष्य’ जीने की पध्द्ती ‘इस शीर्षक के अंतर्गत ‘होरायझन’ इस मासिक हेतु १९६५ में
लिखा गया लेख का यह विस्तृत रूप था l ‘फ्युचर शॉक’ किताब ज्युल्स व्हर्ने या एच. जी. वेल्स की विज्ञान
अद्भुतकथाये नहीं थी बल्कि, तंत्रज्ञान और सामाजिक परिवर्तनों का वास्तववादी वेध प्राप्त करने का प्रयास
था l हजारो साल पहिले झुंड में रहकर शिकार पर जिंदा रहनेवाला मानव खेती करने लगा l विश्व की यह
पहली क्रांति l यह क्रांति मानव को जंगली अवस्था से बाहर निकालकर नागरी संस्कृति की ओर ले गई l
उसके कुछ सेंकडों वर्षों में ही औद्योगिक उत्तर विश्व निर्माण हुआ l समाज और विश्व परिवर्तन की गति बढ़
गई l इसके बाद १९८० में टॉल्फर की दूसरी किताब प्रकाशित हुई – ‘दी थर्ड व्हेव’— ‘तीसरी लहर’ l पहली
लहर कृषक समाज, दूसरी लहर – औद्योगिक लहर और तीसरी लहर – औद्योगिक उत्तर समाज l इस लहर
को कुछ लोगों ने ‘सूचना एवं तंत्रज्ञान युग कहा l इस प्रत्येक लहर ने विश्व में और मानवी जीवन में अच्छे-
बुरे परिवर्तन कर दिए l टॉल्फर ने जब यह किताब लिखी थी तब विश्व की क्षितिज पर अंतराजाल याने
इंटरनेट ने हाली ही में प्रवेश किया था l इसके बाद १९९० में टॉल्फर की तीसरी किताब ‘पॉवर शिफ्ट’ –
सत्तांतर’ प्रकाशित हुई l टॉल्फर के मतानुसार ज्ञान, संपत्ति एवं शक्ति यह ‘त्रिकुट—ट्रिनिटी’ इन्सान को या
किसी संस्था को सत्ता प्राप्त कर देती है l ज्ञान पर आधारित विश्व में ज्ञान ही सबसे बडी सत्ता है l संपत्ति
दूसरे स्थान पर है जो लवचिक है I क्योंकि वह सजा के रुप में अर्थात दंडशक्ती जैसी या बक्षिस के याने
लालच के रूप में उपयोग में लाई जाती है l आम इन्सान की भाषा में हिंसा सत्ता का ही एक भाग है लेकिन
वह लचीली नहीं l इसमें शक्ति एवं संपत्ति मुट्ठीभर लोगों की ठीकेदारी हो सकती है l लेकिन ज्ञान तो हरेक
को उपलब्ध हो सकता है l ज्ञान की अमर्यादित निर्मिती हो सकती है l क्योंकि सच्चा ज्ञान सत्य की तलाश में
आगे बढ़ता रहता है l ज्ञान, सत्ता, का लोकसत्तात्मक स्त्रोत है l इस किताब की रचना करते समय टॉल्फर
ने भारत की वर्णव्यवस्था ने ज्ञान, शक्ति, एवं संपत्ति का जनम पर आधारित किया हुआ बँटवारा, स्त्री-शूद्र
एवं अतिशूद्रों को ज्ञान से वंचित रखना इन बातों की ओर ध्यान नहीं दिया l ‘फोर्थ व्हेव’ ‘चौथी लहर’
नामक एक किताब १९९३ में प्रकाशित हुई लेकिन उसके लेखक कोई अन्य थे l सूचना-तंत्रज्ञान, संगणक-
इंटरनेट, मोबाईल-सोशल मीडिया, गूगल सर्च-फेसबुक-ट्विटर-इंस्टा आदि के बहुत आगे बढ़कर यह विश्व
अब यंत्रमानव, अँड्रोइड, सायबोर्ग, नॅनो तंत्रज्ञान, अवकाश तंत्रज्ञान, जनुकीय एवं जैविक बदलाव, मशीन
लर्निंग और कृत्रिम बुध्दिमता इन नूतन क्रांति को अब साथ लेकर चल रहा है l कांटम भौतिकशास्त्र तो क्या
परिवर्तन करनेवाला है इसका पूरा अंदाजा किसी को भी नहीं l इस परिवर्तन की गति चकित करनेवाली है l
इन क्रांती के कारण मानवी जीवन क्या अधिकाधिक सुसंकृत, सुरक्षित, समृध्द और सुखमय होगा या ये
क्रांती ‘फ्रँन्केस्टाईन’ बनकर अपना जन्मदाता मानव समाज को ही नष्ट करेगा ऐसा प्रश्न विश्व के सम्मुख
निर्माण हुआ तो अचंबित होने का कोई कारण नहीं I

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सबसे पहला मूलभूत प्रश्न यह है की वैज्ञानिक क्रांति की लहरें कैसी निर्माण होती है ? यह प्रक्रिया एक
अनिवार्य और अनिर्बंध कडी है, अणु की प्रक्रिया की तरह या अगर इन्सान ने तय किया तो उसके नियंत्रण में
रहनेवाली प्रक्रिया है ? इस प्रक्रिया के क्या कुछ नियम, नीति, मूल्य है ? या जिसके कब्जे में होगी उस
व्यक्ति, समूह, उद्योग, या राष्ट्र के स्वार्थ पर और नैतिक अधिष्ठान पर वह मानवी समाज की दृष्टी से तारक
या मारक साबित होगी ?
विश्व की खोज करने हेतु तत्वज्ञान अधुरा है ऐसा समझकर प्राचीन तत्त्ववेत्ताओं ने इ.स. पांचवीं-छठी शती
के पूर्व विज्ञान की नींव डाली l तत्वज्ञान पर्याप्त नहीं इसलिए विज्ञान की निर्मिती की l इन्सान निसर्ग के
रहस्यों को जानने के लिए तत्वज्ञान, अध्यात्म ओर धर्म की ओर न मूड़कर विज्ञान की ओर देखने लगा l
निरिक्षण, प्रयोग, गणित और उपकरन आधार बन गए l लेकिन वैज्ञानिक क्रांति का उदय होने हेतु १६ वीं
शती का इंतजार करना पड़ा l उसके बाद अन्यान्य वैज्ञानिक खोज के कारण मानवी जीवन में शिघ्रगती से
परिवर्तन होने लगा l विज्ञान ने तंत्रज्ञान को जन्म दिया और इन बदलाओं के कारण ‘न भूतो ना भविष्यति’
ऐसी गति धारण की l इन बदलाओं के कारण अपरंपार संपत्ति निर्माण करने के मार्ग खुले कर दिए l बंदूक
की बारूद का शोध चीन में किसी हादसे की वजह से लग गया l इसके बाद पूरे ६०० वर्षों बाद सत्ताधारी
लोगों को युध्द जितने के लिए या सत्ता प्राप्त करने के लिए बंदूक के दारू की उपयुक्तता ध्यान में आई और
सत्ता के समीकरण बदल गए l आइनस्टाईन द्वारा प्रेषित समीकरण से अणुबम तैयार होने में कुछ दशक लग
गए l अणुबम ने भी सत्ता के समीकरण बदल दिए l अनेक शोध किसी कारणवश लग गए लेकिन ज्यादातर
खोज हमारे सम्मुख जो प्रश्न निर्माण हुए उनको सुलझाने के लिए वैज्ञानिक जिद्दी से संशोधन करते रहे
इसलिए होती रही l इस दौड़ में हम कहाँ पहुँचेंगे यह ज्ञात नहीं था और जो प्राप्त होगा इसमें से क्या
होनेवाला है यह मालूम नहीं था l लेकिन सभी वैज्ञानिकों के बारे में यह सच था ऐसा नहीं कह सकते l
विज्ञान के मूलभूत संशोधन की सहायता से संहारक अस्त्र तैयार करनेवाले वैज्ञानिकों के बारे में ऐसा नहीं
कहा जा सकता l
वैज्ञानिक क्रांति के दो प्रकार है l एक – संकल्पना की क्रांति – जो बुनियादी कल्पना लेकर आती है l उदा.
खगोलशास्त्र की कोपर्निकन क्रांति, गति एवं भौतिक शास्त्र की न्युटोनियन क्रांति, जीवशास्त्र की डार्विनियन
क्रांति आदि l दूसरी – साधन आधारित क्रांति – गॅलिलिओ ने तैयार की हुई दूरबीन, लीवेन हुक ने खोज़ा
हुआ सूक्ष्मदर्शक, हॅरिसन का कालमापक, क्रीक- वॉटसन ने जनुकीय रचना का किया हुआ ‘क्ष’ किरण
विश्लेषण, संगणक, ट्रांजिस्टर, लेझर, जनुकीय अभियांत्रिकी आदि l इन दो क्रांति की मदद से विज्ञान आगे
बढ़ता रहा l विज्ञान प्रवाही है, लेकिन वह एकसंघ, एकजीव ऐसा प्रवाह नहीं है l समय की धारा में विज्ञान
की अन्यान्य शाखाएँ एकत्रित हो जाती है, नई शाखाएँ निर्माण होती है l नई संकल्पनाओं का जन्म होता है,
पुरानी त्यजित होती है l साधने बदल जाती है l इस प्रवाह में समय और भौगोलिक स्थान भी अपनी
भूमिका जताते हैं l थॉमस कुहन नामक अमेरिकन ज्ञानी इतिहासकार ने १९६२ में प्रसिध्द की हुई ‘दी
स्ट्रक्चर ऑफ़ सायंटिफिक रिव्होल्युशन’ अर्थात “वैज्ञानिक क्रांति की रचना” इस पुस्तक में विज्ञान संशोधन
के बहाव में होनेवाले ‘पॅराडाईम शिफ्ट’ ‘संकल्पनाओं के परिवर्तन’ की रचना की l
लेकिन फिरसे यह सवाल खड़ा होता है की इस यातायात में विज्ञान इन्सान को कहाँ ले जाएगा ? यहाँ
विज्ञान या नीतिमत्ता यह प्रश्न उपस्थित रहता है l बहुत लोगों का कहना है की नीतिमत्ता का अर्थ है मूल्यों
एवं नियमों की अपरिहार्यता l अतः नीतिमत्ता एवं मूल्यों की एकता असंभव है l या इसकी आवश्यकता भी
नहीं l लेकिन युध्द में बढनेवाली अस्त्रों की संघटक शक्ति, पर्यावरण को धोखा निर्माण करनेवाला तंत्रज्ञान,

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जनुकीय एवं जैविक बदलाव करनेवाला तंत्रज्ञान – इसका गत अनेक दशकों में हुआ विस्फोट देखकर विज्ञान
को नीति की जड़ें आवश्यक है ऐसा विश्वास पूरे विश्व को महसूस होने लगा है l इसमें से, ‘एल्सा’
‘इ.एल.एस.ए. संकल्पना आगे बढ़ी l इ, अर्थात एथिक्स-नीति; एल का अर्थ है लीगल, वैधानिक और एस.ए.
का अर्थ है – सोशल अॅस्पेक्ट – सामाजिक धरोहर l कोई भी नया संशोधन कार्यक्रम ‘एल्सा’ की बुनियाद
पर खड़ा होना चाहिए ऐसा आग्रह होने लगा l विज्ञान विश्व में जो सत्य है उसकी खोज करके आगे बढ़ता है,
और इस यात्रा में ज्ञान की निर्मिती करता है l ज्ञान का अर्थ है सत्ता, लेकिन सत्ता का मतलब है उत्तरदायित्व
l अतः वैज्ञानिकों पर भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए की उनके द्वारा किए गए संशोधन के कारण भविष्य
में होनेवाले दुष्परिनामों से भी उन्होंने पूरे विश्व को सचेत करना चाहिए l संशोधन के कारण भविष्य में जो
भी परिणाम होंगे उनको वेधना असंभव है फिर भी इसके बारे में सजग रहना अति आवश्यक है l अपने
अनुसंशोधन से होनेवाले संघटक अस्त्रनिर्मिति की मालूमात होने पर आईनस्टाईन ने पूरे विश्व को सावधान
करने का प्रयास किया l ‘रसेल-आईनस्टाईन जाहीरनामा’ यह उसका ही फल है l आगे चलकर जोसेफ
रॉटब्लॅट, आंद्रे सॅखारोव्ह, डेविड ने अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह की भूमिकाएँ निभाई l हिम्मत से आगे
बढ़कर विश्व को सचेत करनेवाले इन वैज्ञानिकों के समर्थन में विविध सरकारें विश्वविद्यालयों और संशोधन
के संस्थाओं ने खड़ा होना चाहिए l क्योंकि संशोधन के माध्यम से निर्माण होनेवाले तंत्रज्ञान की सहायता से
सत्ता या संपत्ति प्राप्त करनेवाले स्वार्थी लोगों के जुल्म एवं अत्याचारों का सामना वैज्ञानिकों को करना पड़
सकता है l
मेरी शेली नामक अंग्रेजी लेखिका ने १८१८ में उनकी आयु के २० वें वर्ष में ‘फ्रँकेनस्टाईन’ नामक उपन्यास
लिखा था l यह कथा थी विक्टर फ्रँकेनस्टाईन नामक युवा वैज्ञानिक ने अतिमानव तैयार करने का जो सपना
देखा था उस सपने की l मृत शरीर पर प्रयोग करके वह ऐसा अतिमानव सचमुच में तैयार करता है l लेकिन
प्रयोग में कुछ गड़बड़ी हो जाती है और एक अत्यंत विचित्र, इन्सान भी नहीं ओर जानवर भी नहीं इस तरह
का तनावर, कुपुरुष जानवर बन गया l उसका निर्माता विक्टर, इस जानवर को छोड़ देता है l वैसे देखा
जाए तो वह जानवर हिंस्त्र नहीं है लेकिन उसके भयानक शरीर के कारण उसे समाज में संचार करना
अशक्य हो जाता है l इन्सान ने उसे अपनाना चाहिए इसलिए वह भरसक प्रयास करता रहता है l लेकिन
डर के मारे लोग उसे इनकारते हैं और उसके हाथों बहुत हत्याएँ होती रहती है l अंत में वह फिर अपना
निर्माता विक्टर के पास लौटता है और उसके जैसे ही स्त्री साथी की निर्मिती की माँग करता है l ‘तूने मुझे
जिंदा जानवर बनाया, अब मेरी जिंदगी की जिम्मेदारी तुम्हारी है l अगर तूने मेरा साथी मुझे दे दिया तो
उसे मैं जंगल ले जाउँगा, वहाँ हमेशा के लिए निवास करूँगा, अन्यथा मैं तुम्हारी शादी में उपस्थित रहूँगा l’
विक्टर फिर से अपने प्रयोग शुरू करता है और उसके ध्यान में आता है की अब मैं दूसरी बड़ी गलती करने
जा रहा हूँ l मैंने निर्माण किए हुए इस जानवर के लिए अगर मैंने उसकी साथी निर्माण की तो वह उस पर
प्यार करेगी इसका कोई यकीन नहीं, वह उसकी घृणा भी कर सकती है l वह शायद इससे भी बुरी होगी l
लेकिन अगर उनके संबध अच्छे रहे तो वे जो संतति निर्माण करेंगे वह पूरे विश्व का विनाश करेगी l वह
प्रयोग रुकवा देता है l गुस्से से पागल हुआ वह जानवर विक्टर के विवाह के दुसरे दिन विक्टर की पत्नी का
खून करता है और भाग जाता है l विक्टर की ध्यान में यह बात अति है की, असाधारण खोज की
महत्त्वकांक्षा से पछाड़कर मैंने ही शुरू की हुई इस भयकथा का अंत मुझे ही करना है l उस जानवर का पिछा
करते समय विक्टर उत्तर ध्रुव पर पहुँच जाता है और वहाँ ठंड की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती है l मरते
समय अपने सहयोगियों को कहता है, ‘ज्यादा महत्त्वकांक्षा मत अपेक्षित करना’ I “जिस विक्टर ने मुझे
‘ऐसा’ जन्म देकर मुझ पर अन्याय किया, अंत में मुझे खत्म करने के लिए खुद की जिंदगी उसे दाँव पर

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लगानी पड़ी, उस विक्टर की मृत्यु से मुझे शांति नहीं मिली, बल्कि जो गुनाह मुझे मजबूरी से करने पड़े
जिससे विक्टर से भी मैं ज्यादा दुखी हु l” ऐसा कहकर वह अतिमानव बरफ में गूम हो जाता है l हैवानी
तंत्रज्ञान को जन्म देनेवाला मर जाता है लेकिन तंत्रज्ञान जिंदा रहता है l वैज्ञानिक संशोधन की ज्यादा
महत्त्वकांक्षा प्रकृति एवं जीवन के विरुध्द जाती है तब वह संशोधन इन्सान की जिंदगी पर किस तरह बित
जाती है यह मेरी शेली ने इस उपन्यास में अच्छी तरह से लिख दिया है l
आज कृत्रिम बुध्दिमत्ता का – ‘ए आय’ का संशोधन जिस दिशा से जा रहा है इसलिए इस उपन्यास की याद
आना उचित है l युवाल नोह हरारी ने कहाँ है की, ‘चार अब्ज वर्ष यह पृथ्वी जैविक जीवजंतुओं-प्राणियों की
रही l अब हमें अजैविक जिव-जंतुओं को देखने की तैयारी रखनी पड़ेगी l ‘टर्मिनेटर’ या ‘मॅट्रिक्स’ जैसी
हॉलीवूड फिल्में अब सायन्स फिक्शन न रहते हुए प्रत्यक्षरूप में प्रकट होने की संभावनाएँ निर्माण हुई है l
अतः कृत्रिम बुध्दिमत्ता को एहसास या भावना नामक चीजें हो या हिलने की क्षमता आवश्यक है ऐसी कोई
जरुरत नहीं है l ‘ए आय’ में स्व-अध्ययन करने की जो क्षमता है जिससे उसके निर्माताओं को भी उसके
भविष्य की क्षमता का अंदाजा प्राप्त होना कठिण है l लिखना, चित्र खींचना, संगीत तैयार करना, सांकेतिक
परिभाषा लिखना इसके परे जाकर ‘ए आय’ लोगों का रुब-रु आवाज निकलना, उनके झूठे छायाचित्र, या
चलचित्र तैयार कर सकता है l संगणकीय सांकेतिक भाषा, संविधान की त्रुटियाँ ढूँढ निकाल सकता है l
इतनी ही नहीं अपितु पर्यायी धर्मग्रंथ, पुराणों, किंवदंती और संविधान लिख सकता है l इन्सान के साथ
इसके बारे में ऑनलाइन झगड़ा कर सकते हैं या नजदीकी भी बढा सकती है l ‘ए आय’ प्रणित इस आभासी
व्यक्तियों की ‘बाँट’ की मजा ऐसी है की हम जितना संवाद उनके साथ ऑनलाइन करेंगे उतना ही वो हमारे
व्यक्तित्व का अभ्यास कर हम पर काबू पा सकते है l इन्सान तक पहुँचनेवाली सभी जानकारी इस ‘बॉट’ से
आ सकती है l देखते देखते विश्व इन्सान के प्रभाव से इस ‘बॉटस्’ के विविध ‘ए आय टूल्स’ की नियंत्रण में आ
सकती है l ‘ए आय’ नया इतिहास, नई संस्कृति निर्माण कर सकती है l अगर ऐसा हुआ तो हम पराई
बुध्दिमत्ता से निर्माण किए गए काल्पनिक विश्व सपने में जीने लगेंगे l समाचार और विज्ञापन की दुनिया ‘ए
आय’ अपने कब्जे में लेगी l यह शायद मानवी इतिहास का सही अर्थ में अंत होगा l ‘ए आय’ नई मानव
संस्कृति का निर्माण कर सकती है या जनतंत्र नष्ट करने में मदद कर सकती है l गत चुनाव के बाद अमेरिका
जैसे देश की जनता के मन में यह संभ्रम निर्माण किया गया की चुनाव में यक़ीनन कौन जीता ? ट्रम्प या
बायडन ? वैश्विक तापमानवृध्दि यह सचमुच में आपत्ति है या नहीं ? लेकिन इसके साथ साथ ‘ए आय’
इंसानी जमात को सतानेवाले अनेक प्रश्नों के उत्तर ढूँढने में मदद कर सकेगी और वरदान भी साबित होगी
इसे भी ध्यान में लेना चाहिए l लेकिन अगर ऐसा घटित करना है तो ‘ए आय’ पर कुछ निर्बंध लगाना
आवश्यक है l यह जिम्मेदारी ‘ए आय टूल्स’ निर्माण करेनेवाले वैज्ञानिकों की होगी l
‘ए आय’ का गॉडफादर जिसे कहते है उस जॉफ्री हिंटॉनने कुछ माह पूर्व गूगल कंपनी के उपाध्यक्ष पद का
इस्तिफा दिया l गूगल छोड़ने का कारण था ‘ए आय’ के विरुध्द विश्व को सचेत करना l उसके मतानुसार
‘कृत्रिम बुध्दिमत्ता की उत्क्रांति की सफर में मनुष्यजाति एक सोपान है l जिस गति से ‘ए आय’ उत्क्रांत हो
रही है, उत्तर ढूँढने की और देने की क्षमता प्राप्त कर रही है, बुद्ध्यांक की ज्यादा से ज्यादा ऊँचाई तक पहुँच
रही है, इसे देखकर एक दिन व मानवजाति को नष्ट कर देगी ऐसा लगने लगा है l ‘ए आय’ स्वयंचलित यंत्रों
का और यंत्रणाओं का आधार बनकर बेरोजगारी बड़ी मत्रा में निर्माण करेगी, धनवानों को अधिक धनवान
बनाएगी, आर्थिक और सामाजिक विषमता बढाएगी, इसमें से समाजव्यवस्था बिगड़कर हिंसा निर्माण
होगी, सत्ताधारी लोगों को चुनाव या युध्द में विजय पाने के लिए मदद करेगी l विवेकबुध्दि कायम रखकर

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शायद यह धोखा टालने के लिए अनेक देश या संस्था ‘ए आय’ पर निर्बंध लगाएगी l लेकिन ऐसे भी कुछ देश
या संस्था खड़ी होगी जो सत्ता या आर्थिक लाभ हेतु अनिर्बंध ‘ए आय टूल्स’ निर्माण करने में पीछे नहीं रहेंगे
l इस पर निश्चित उत्तर विश्व के सम्मुख नहीं है l जॉफ्री हिंटॉन को ऐसा लग रहा है की उसका विक्टर
फ्रँकेस्टाईन हो रहा है l ४० वर्ष उसने कृत्रिम ज्ञानतंतू का जाल तैयार करने का प्रयास किया l मानव
मस्तिष्क में ज्ञानतंतू के १०० ट्रिलियन जोड़ है l जिपिटी-४ में साधारण १ ट्रिलियन जोड़ होकर भी उसे
इन्सान के मस्तिष्क से १०० गुना अधिक जानकारी है l तो फिर इन्सान के मस्तिष्क के करीब जानेवाली
कृत्रिम यंत्रणा अगर तैयार हुई तो क्या होगा ? इन्सान दूसरी व्यक्ति आसानी से तैयार नहीं कर सकता l
अपना ज्ञान, अनुभव दूसरी व्यक्ति की ओर सहजता से नहीं दे सकता l लेकिन ये कृत्रिम यंत्रणा अपना ज्ञान
एक क्षण में दूसरी यंत्रणा की ओर भेज सकती है और अपनी प्रतियाँ तैयार कर सकती है l
स्टीफन हॉकिन्स ने भी इस तरह की चेतावनी दी थी l आधुनिक संगणकशास्त्र का पितामह जिसे कहा जाता
है उस अलान टूरिंग ने तो १९५१ में दिए हुए व्याख्यान में ऐसा कहा था की, ‘यंत्र इन्सान से ज्यादा
शक्तिशाली बनेंगे और अंत में इन्सान पर ही कब्जा प्राप्त करेंगे l संगणक तज्ञ और भविष्य लेखक व्हर्नोर विंज
ने, ‘यंत्र इन्सान पर काबू पाएगा’ इस बात को १९८३ में लिखे एक निबंध में शब्द का इस्तेमाल किया था
और वह शब्द है – ‘दी सिंग्युलॅरिटी, ‘एकलता’l उसने लिखा था की, ‘हम जल्द ही अपने से ज्यादा बुध्दिमत्ता
निर्माण करनेवाले हैं l यह जब होगा तब मानवी इतिहास एक तरह के ‘एकलता’ के पास पहुँचा होगा जो
किसी कृष्णविवर के केंद्र में अवकाश एवं समय जैसी न छुटनेवाली गठरी की तरह होगा l अपनी समज से
बाहर यह विश्व होगा l आगे एक दशक के बाद उसने कहा की, ‘आगे तिस वर्षों में हमारे पास अतिमानवी
बुधिमत्ता का तंत्र निर्माण हुआ होगा l मानवी युग का यह अंत होगा l’ स्वीडिश तत्त्वज्ञ निकबो स्ट्रोम ने
‘सुपर इंटेलिजन्स’ नामक उसकी पुस्तक में यह कैसे घटित होगा इसकी रचना पध्द्ती लिखी है l
विश्व के सभी ‘ए आय’ तज्ञ जॉफ्री हिंटॉन की एक बात से सहमत है की विश्व ने ‘ए आय’ के जो धोखे हैं उन
सभी का एकत्रित विचार करके कदम उठाने चाहिए l लेकीन इसमें से अनेक वैज्ञानिक उसके ‘ए आय’
अंतिमतः मानवजाति को नष्ट करेगी ‘इस बात से सहमत नहीं है l ‘मेटा’ का मुख्य ‘ए आय’ शास्त्रज्ञ यान
लीकून के मतानुसार ‘आज ना कल यंत्र मानव से बहुत होशियार साबित होगी l’ लेकिन सच प्रश्न ऐसा है की
कब और कैसी ? इन्सान जानवरों से ज्यादा चालाक है और वेही आगे बढ़ते है ऐसा कदापि नहीं है l
खासतौर पर राजनीति और अर्थकारण में l अमेरिकन संगणक शास्त्रज्ञ रे कुझर्विल ने २००५ में लिखी
उसकी ‘दी सिंग्युलॅरिटी इज निअर’ इस किताब में कहा है की, ‘तंत्रज्ञान की सिंग्युलॅरिटी और जनुकीय, नॅनो
तंत्रज्ञान इकठ्ठा होकर इन्सान का मन एवं बुध्दि को ऐसे स्तर पर ले जाएगा की इन्सान बुध्दि एवं आयुर्मान
की ‘न भूतो न भविष्यति’ जैसी ऊँचाई पर पहुँचा होगा l आयरिश संगणक शास्त्रज्ञ नोएल शार्किल का इसके
बारे में दृष्टिकोन अधिक व्यवहारी है I उसके मतानुसार यंत्रमानव, कृत्रिम बुध्दि इन बातों के लिए विश्व ने
नीतिमत्ता के आयाम निर्माण करने चाहिए इसके लिए उसने ‘शार्किज फैांडेशन रिस्पॉन्सीबल रोबॉटिक्स’
स्थापित किया है l इस फैांडेशन ने तंत्रज्ञान के बारे में मानवी अधिकारों का अंतरराष्ट्रीय संविधान का
मसौदा तैयार किया है l
‘दी सेकंड मशिन एज, ‘ दूसरा ‘यंत्रयुग’ और ‘रेस अगेंस्ट दी मशीन’, ‘यंत्र के विरुध्द दौड़’ इस पुस्तक के सह
लेखक आंड्रयू मॅकएफी का कहना है की, ‘विश्व को सबसे बड़ा डर इस बात का लग रहा है की सिंग्युलॅरिटी
या अति बुध्दिमत्ता का युग नजदिक आ रहा है जो व्यर्थ है l’ गूगल के पूर्व ए आय तज्ञ आंड्रयू नेग का कहना

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है की, ‘अतिमानवी बुध्दिमत्ता और नीच ‘ए आय’ का डर आज व्यक्त करने का अर्थ – मंगलग्रह पर आबादी
का विस्फोट होने की चिंता करने जैसा है l
विश्व के इतिहास का सबसे महान शतरंज खिलाडी गॅरी कॅस्पारोव्ह को मई १९९७ में आयबीएम के ‘डीप
ब्लू’ नामक सुपर संगणक ने हरा दिया तब पूरा विश्व को बड़ा सदमा पहुँचा l २०१७ में गॅरी कॅस्पारोव्ह ने
उसके पराजय की कथा शतरंज की वह चाल और कुलमात्रा में इन्सान और ‘ए आय’ के विश्लेषण पर ‘डीप
थिंकिंग’ नामक पुस्तक लिखी l इस किताब का उपशीर्षक है – ‘व्हेअर आरटीफिशियल इंटेलीजेंस एंड्स, अँड
क्रिअॅटीव्हिटी बिगिन्स’, ‘जहाँ कृत्रिम बुध्दिमत्ता खत्म होती है और मानवी सर्जनशीलता शुरू हो जाती हैं’
l इस पुस्तक में उसने लिखा है की, ‘युटोपिया और डिसटोपिया, हम और शेष कुछ ऐसा विकल्प नहीं है l
हमने ही निर्माण किए हुए तंत्रज्ञान के अग्रसर रहने के लिए हमें हमारी महत्वकांक्षाओं का हर कण-कण का
इस्तेमाल करना पड़ेगा l यंत्रों ने अपना काम किस तरह से करना चाहिए यह सिखाने में हम माहिर है और
अपना यह कौशल हर दिन अच्छा होता जाएगा l हमे एखाद काम कैसे करना है यह अगर मालूम नहीं हुआ
तो नए काम, नए मिशन्स, नए उद्योग तैयार करते रहना यही इसका उत्तर है l ये चीजें हमें अनेक कामों से
मुक्त करके नवनिर्मिति को ओर जाने के लिए समय उपलब्ध करा देगी l इन्सान के पास ऐसे कई गुण हैं
जिससे यंत्रों को तुलना करना असंभव हैं l यंत्रों को सूचनाएँ दी गई होती है, हमें उद्दिष्ट होते है l यंत्र-
स्लिपमोड़ में भी सपने देखा नही करते l इन्सान वह देख सकता है और हमारे सपने वास्तव में लाने के लिए
हमें बुध्दिमान यंत्रों की आवश्यकता है l हमने भव्य सपने देखना छोड़ दिया, महान ध्येय की ओर जाना बंद
कर दिया तो हम स्वयं यंत्र बन जाएँगे l
पृथ्वी पर के सर्वश्रेष्ठ तत्त्वज्ञ नॉम चोम्स्की अभी भी जीवित है – उनका इसके बारे में कहना अधिक
आवश्यक है l वे कहते हैं की – ‘कृत्रिम बुध्दिमत्ता इन्सान के मस्तिष्क की ओर पहुँचना भले ही संभव है फिर
भी अत्यंत कठिन है l बनावटी बुध्दिमत्ता विविध शक्यताओं पर उत्तर देती है इसलिए उसके जवाब
दिखावटी और आशंकायुक्त लगते हैं l मानवी मस्तिष्क किस तरह से काम करता है इसे गहराई में जाकर
अध्ययन न करने से ‘ए आय’ का वह अनुचित डर विश्व में निर्माण हुआ हैं l इन्सान ने इस डर से बाहर आना
आवश्यक है l’
मानवी जीवन एवं भविष्य आनेवाली कृत्रिम बुध्दिमत्ता की क्रांति से अंधःकारमय होने की संभावना नहीं,
बल्कि वह अधिक प्रकाशमान होगा ऐसा विश्वास रखकर हम आनेवाली दीपावली का स्वागत करेंगे l

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