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भौतिकवादी सोच है महिलाओं की हिंसा का कारण

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पुष्पा गुप्ता

      राष्ट्र राज्य मैं महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध और हिंसा की स्थिति का अध्ययन किया जाए तो आंकड़े चिंताजनक तथा भयावह है।

       महिलाओं के प्रति अपराध घरेलू हिंसा से शुरू होकर आज नई समाज की भौतिकवादी व्यवस्था के चरम सीमा उत्तर तक पहुंच चुका है।

      अगर हम बात करें तो यह हिंसक अपराध एक दिन के आवेश का परिणाम है, तो कहना गलत ही होगा क्योंकि आज हमारी पारिवारिक सामाजिक शैक्षिक व्यवस्था में विकृति का परिणाम है जिसे हम श्रद्धा आफताब या कई ऐसे जघन्य हत्याकांड या तेजाबी मामला हो महिलाओं के प्रति लैंगिक अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं।

   निर्भया कांड के वजूद अभी मिटे भी नहीं है कई नई हत्याकांड ने मीडिया में स्थान ले लिया है लोग सुनते हैं। न्याय होने की उम्मीद में कुछ समय बाद नई घटना के आने के बाद उस पुरानी घटनाओं को भूल जाते हैं अब हमें यह समझना होगा इस विनाश लीला से नई चेतना का संचार समाज परिवार, शिक्षा में करना होगा जहां पहले शिक्षा में सामाजिक विषयों को भी महत्व दिया जाता था मुंशी प्रेमचंद सुभद्रा कुमारी चौहान अमृता प्रीतम जैसे साहित्यकार समाज की अंधविश्वास कुरीतियां मेँ कुठाराघात करते थे।

        अपने मार्मिक संवेदनाओं से भरे शब्दों से मानवता का संचार करते थे परंतु आज भौतिकवादी व्यवस्था की वजह से इन विषयों का महत्व कम हो गया है जिसका परिणाम सामाजिक असंतुलन की व्यवस्था के रूप में परिदृश्यित हो रही है सवाल यह है कि सरकार के द्वारा विमेन हेल्पलाइन या महिला परामर्श केंद्र ऑपरेशन शक्ति जैसी योजनाओं के बाद भी घटनाओं मैं कमी नहीं आ रही है कानून जैसे सख्त होता जा रहा है। महिलाओं के प्रति अपराध में बर्बरता बढ़ती जा रही हैं।

       प्रश्न यह उठता है कि आज के समाज में मानवीय संबंधों का विकास कैसे हो। सभी को भौतिकवादीता की चरम सीमा को प्राप्त करना है।  इसी सोच का परिणाम है महिलाओं के प्रति हिंसा नई समाज की भौतिकवादी सोच।

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