-निर्मल कुमार शर्मा,
अभी पिछले दिनों प्रयाग में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी नामक एक मठाधीश की अपने कमरे में पंखे से लटककर आत्महत्या की खबर आजकल समस्त मिडिया में छाई हुई है,इसकी भविष्यवाणी और संभावना संयुक्त किसान मोर्चे के प्रवक्ता श्री राकेश टिकैत ने बहुत पहले ही यह कहकर कर दिया था कि ‘किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने के लिए किसी नामचीन व्यक्ति की ये सत्तारूढ़ सरकार निकट भविष्य में हत्या करा सकती है ‘ वैसे मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सत्तारूढ़ सरकारे युद्ध छेड़ना,दो-चार जगह बम विष्फोट करा देने जैसी कृत्य कराती रहतीं हैं। वैसे इस आत्महत्या को सर्वत्र एक सुनियोजित हत्या करने की बात कही जा रही है,क्योंकि मिडिया के अनुसार लगभग निरक्षर या जैसे-तैसे अपना हस्ताक्षर करनेवाले इस मठाधीश ने अपने मरने से पूर्व एक लम्बा-चौड़ा स्युसाइड नोट लिखा है या किसी से लिखवाया है,उस स्युसाइड नोट के कुछ पैरों के अनुसार उसमें दिवंगत मठाधीश ने लिखा है कि ‘मैं महंत नरेंद्र गिरि मठ बाघंबरी गद्दी बड़े हनुमान मंदिर यानी लेटे हनुमानजी के वर्तमान में अध्यक्ष अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अपने होशो हवास में बगैर किसी दबाव में यह पत्र लिख रहा हूं। जब से आनंद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या,मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं । तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं। जब भी मैं एकांत में रहता हूं,मर जाने की इच्छा होती है। आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी और उनके लड़के संदीप तिवारी ने मिलकर मेरे साथ विश्वासघात किया है,मैं बहुत आहत हूं। मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं। मेरे मरने की संपूर्ण जिम्मेदारी आनंद गिरि,आद्या प्रसाद तिवारी जो मंदिर में पुजारी हैं और आद्या प्रसाद तिवारी के बेटा संदीप तिवारी की होगी। मैं समाज में हमेशा शान से जिया। आनंद गिरि ने मुझे गलत तरीके से बदनाम किया।मुझे जान से मारने का प्रयास किया गया। इससे मैं बहुत दुखी होकर आत्महत्या करने जा रहा हूं। मेरी मौत के जिम्मेदार आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी, संदीप तिवारी पुत्र आद्या प्रसाद तिवारी की होगी। प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारी एवं प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाए जिससे मेरी आत्मा को शांति मिले,मैं महंत नरेंद्र गिरि वैसे तो 13 सितंबर को ही आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया। आज हरिद्वार से सूचना मिली कि एक दो दिन में आनंद गिरि कंप्यूटर के माध्यम से मोबाइल से किसी लड़की या महिला के साथ मेरी फोटो लगा कर गलत कार्य करते हुए फोटो वायरल कर देगा। मैंने सोचा कहां-कहां सफाई दूंगा। एक बार तो बदनाम हो जाउंगा। मैं जिस पद पर हूं,वह पद गरिमामयी पद है। सच्चाई तो लोगों को बाद में पता चल जाएगी, लेकिन मैं तो बदनाम हो जाऊंगा। इसलिए मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं। इसकी जिम्मेदारी आनंद गिरी, आद्या प्रसाद तिवारी एवं उनके लड़के संदीप तिवारी की होगी,आज मैं आत्महत्या कर रहा हूं, जिसकी पूरी जम्मेदारी आनंद गिरि,आद्या प्रसाद तिवारी जो पहले पुजारी थे,उनको मैंने निकाल दिया और संदीप तिवारी पुत्र आद्या प्रसाद तिवारी की होगी। वैसे मैं पहले ही आत्महत्या करने जा रहा था लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रहा था। एक आडियो आनंद गिरि ने जारी किया था,जिसमें मेरी बदनामी हुई। आज मैं हिम्मत हार गया और आत्महत्या कर रहा हूं। 25 लाख रुपया आदित्य मिश्रा से एवं 25 लाख रुपया शैलेश सिंह सेंगर रियल स्टेट से मांगता हूं। ‘
उक्त स्युसाइड नोट के गहन विश्लेषण करने से निश्चितरूप से ये परिलक्षित हो रहा है कि इस मर्डर केस में पद,धन और किसी महिला की संलिप्तता अवश्य है। इस केस की जाँच हेतु 18 सदस्यीय एसआईटी कमिटी गठित कर दी गई है, वह कमिटी क्या निर्णय देती है,यह तो भविष्य में ही पता चल पायेगा। ज्ञातव्य है कि इस मठाधीश का सबसे प्रिय शिष्य आनन्द गिरी भी एक चरित्र हीन,लंपट और गुँडा है,जो आस्ट्रेलिया के सिडनी में कुछ विदेशी महिलाओं से छेड़छाड़ के आरोप में कुछ महीनों की जेल की हवा भी खा चुका है। वैसे यह बात कटुयथार्थ और कटुसच्चाई है कि भारतीय समाज के एकदम अकर्यमण्य,जाहिल, आलसी और बिल्कुल आवारा टाइप के लोग जो उचित शिक्षा भी नहीं प्राप्त कर पाते वे ही अपनी अकर्यमण्यता और नपुंसकता को छिपाने के लिए भारत जैसे देश में कथित धर्म,मोक्ष,स्वर्ग,नरक, वरदान,अवतार,पुनर्जन्म, वैतरणी,पिंडदान आदि-आदि कुछ निरर्थक व अंधविश्वासी बातों को केन्द्र बिन्दु बनाकर कथित उपदेश देने लगते हैं,इस देश में फैले सैकड़ों मठों,हजारों डेरों,अखाड़ों और लाखों मंदिरों में घुसकर इस देश के धर्मांध लोगों द्वारा दिए गये करोड़ों-अरबों की कमाई पर पूर्ण ऐशोआराम के साथ अपनी जिंदगी बिताने लगते हैं। मिडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में मंदिरों की संख्या बिल्कुल ठीक-ठीक तो नहीं बताई जा सकती,लेकिन एक अनुमान के अनुसार इस देश में 10 लाख से ज्यादे ही मंदिर हैं ! इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस देश में इन समाज के परजीवियों की फौजों की संख्या कितनी होगी,जो इस देश और समाज के लिए बिल्कुल गैरजरूरी अपराधिक तत्व इस देश के आमजन,किसानों ,मजदूरों की गाढ़ी कमाई पर खूब खा-पीकर गैंडे की तरह मोटे हुए जा रहे हैं।
हमें यह भी देखना चाहिए कि इन मठों,अखाड़ों, डेरों और मंदिरों में अधिकार जमाए इन कथित बाबाओं,गुरूओं,पुजारियों,धर्माचार्यों, मठाधीशों आदि के चरित्र क्या हैं ?सामान्यतः भारतीय समाज में यह दृढ मान्यता है कि जो व्यक्ति सांसारिक मोहमाया से मुक्त हो जाता है,मतलब जिसे धन,ऐश्वर्य,स्त्री और जमीन-जायदाद की जरा भी तृष्णा व मोह न हो,वही साधू-संत,महात्मा बनते हैं,लेकिन भारत के उक्तवर्णित सभी अड्डों पर केवल संपत्ति,धन और स्त्रियों के लिए ही मारकाट मची हुई है,उदाहरणार्थ हरिद्वार में कभी पुलिस सुपरिटेंडेंट रहे गढ़वाल परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक के अनुसार कथित धर्म के नाम पर जमीन और मठों को कब्जाने के लिए इन मठाधीशों में अक्सर खूनी लड़ाइयाँ चलती रहतीं हैं ! मठों पर अपने स्वामित्व व कब्जे के लिए कुछ शातिर व धूर्त महंत स्थानीय गुँडों और शूटरों की मदद से चद्दर चढ़ाने की एक घिनौना खेल खेलते हैं,इस कुत्सित खेल में गद्दी हथियाने के लिए अक्सर शिष्य ही अपने गुरूजी की जघन्यतम् हत्या कर देने में जरा भी संकोच नहीं करते ! उनके अनुसार पिछले 5 वर्षों में केवल हरिद्वार में मठ कब्जाने की इन खूनी लड़ाइयों में 29 सत्तासीन मठाधीशों की हत्या उनके शिष्यों द्वारा ही की जा चुकी है,ठीक वैसे ही जैसे कि संभावना है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की भी उनके किसी निकट संबंधित मठ के प्रबलतम् दावेदार शिष्य द्वारा सुनियोजित तरीके से की गई एक हत्या ही लगती है !
उक्त उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन कथित मठाधीशों की धन,ऐशोआराम और भोगविलास की इच्छा बिल्कुल समाप्त नहीं होती,अपितु इनमें इन सांसारिक जीवन को भोगने की तीव्र इच्छा अभी भी बनी रहती है,ये इनकी आपसी खूनी लड़ाइयाँ इसकी सशक्त प्रमाण हैं,ये दुनिया के भोले-भाले लोगों को मूर्ख बनाने के लिए यही बाबा,गुरू और शंकराचार्य का छद्मावरण धारत किए ये धूर्त और मक्कार उनसे अपनी सांसारिक जीवन की तृष्णाओं,धन और ऐश्वर्य त्याग देने का छद्म उपदेश जरूर देते रहते हैं,जबकि ये खुद एक सामान्य आमजन से हजारों गुना ऐश्वर्य और भोगविलास में आकंठ डूबे रहते हैं !
अब हम अपना सारा ध्यान इस ‘वैराग्य ‘ पर केन्द्रित करेंगे । अब प्रश्न ये उठता है जीवन से वैराग्य का मतलब क्या होता है ? हिन्दू ,बौद्ध और जैन तीनों धर्मों में वैराग्य का स्पष्ट तौर पर परिभाषा यह दी गई है कि, ‘संसार की उन वस्तुओं एवम् कर्मों से विरत हो जाना,जिसमें सामान्य लोग लगे रहते हैं। ‘वैराग्य का शाब्दिक अर्थ भी ‘ वि + राग से व्युत्पन्न है,जिसका अर्थ राग से विमुख होना है,मन को राग -रहित कर लेना है ।
महर्षि पतंजलि के अनुसार वैराग्य का संस्कृत में निम्नलिखित मतलब है ..
‘दृष्टानु श्रविक विषय वितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम् है ‘ (श्लोक संख्या 1.15 )
अब प्रश्न उठता है कि ये आज के कथित साधू,महात्मा,योगी,सन्यासी और मठाधीश लोग आदि ये सभी सांसारिक मोहमाया से समान दूरी वाले उक्त वैरागी के समकक्ष लोग ही माने जाते हैं,तो क्या आज के आधुनिक भारत में प्राचीन भारतीय साहित्य और धार्मिक पुस्तकों में उल्लिखित उक्त ‘सांसारिक मोहमाया त्यागने वाले तपस्वियों,सन्यासियों और साधुओं ‘की परिभाषा ही बदल गई है ? यह ऐतिहासिक तथ्य है कि गौतम बुद्ध मात्र 29 वर्ष में अपनी ब्याहता पत्नी को बेटे सहित,अपना महल और भावी सत्ता को भी त्याग कर जाने के बाद कभी भी सांसारिकता,पद,पैसा और भोग से कभी आसक्त नहीं हुए ! ऐसा ही दृष्टांत जैन धर्म के संस्थापक जैन तीर्थंकर भगवान महावीर का भी है । ये दोनों लोग अपना सबकुछ छोड़कर,त्याग कर अनजान लोगों की सेवा में चले गए !
फिर ये आजकल के कथित योगियों , सन्यासियों,गुरूओं,बाबाओं आदि की कथित वैराग्य और सन्यास धारण करने के बाद भी पद, पैसा,भोग-विलास आदि में संलिप्तता क्यों उजागर हो रही है और वे ऐसे-ऐसे कुकृत्य करते हुए पकड़े जा रहे हैं,जिसे एक सामान्य गृहस्थ आश्रम में रहते हुए एक साधारण भी आदमी कर ही नहीं सकता ! आखिर इन कथित योगियों, सन्यासियों की कौन सी मजबूरी आ जा रही है कि ये मौका मिलते ही सत्ता के पीछे,पद के पीछे, ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं ? वास्तविकता यह है कि ये समाज के चारित्रिक रूप से गिरे हुए लोग हैं ,केवल गेरूआ वस्त्र पहनकर,सिर मुड़ाकर, मस्तक पर बड़े-बड़े टीके लगाकर,संस्कृत के दो-चार श्लोक रटकर,सन्यासी,योगी नहीं बना जा सकता ! सन्यासी और योगी वही व्यक्ति हो सकता है जो अपने मन से,अपने वचन से और अपने कर्तव्य से भी पवित्र हो,जो निकृष्ट धार्मिक व जातीय विघटन और वैमनस्यता की सोच से ऊपर उठकर,बगैर किसी जातिगत् व धार्मिक भेदभाव के मानवमात्र और समस्त जैवमण्डल की भी भलाई और कल्याण की बात सोचे और अपने व्यवहार से उसे साबित भी करे ।
क्या इस कसौटी पर हजारों-लाखों की संख्या में इस देश भर में और विदेशों में भी फैले आज के ये कथित योगी,महात्मा,बाबा,सन्यासी खरे उतरते हैं ?जिनके पास अरबों की संपत्ति हो ,भोगलिप्सा के हर साधन मौजूद हों,करोड़ों की वातानूकुलित विदेशी लक्जरी गाड़ियों में घूमने वाले,बिजिनेस क्लास की हवाई यात्रा करने वाले ये कथित बाबा,योगी और सन्यासी आदि इन प्राचीन पवित्र शब्दों की भी अवमानना कर रहे हैं, ये सब छद्म,ढोंगी,कामपिपासु भेड़िए हैं जो कथित साधू के वेश में छिपकर हर तरह के ऐश्वर्यशाली और विलासिता पूर्ण जीवन जी रहे हैं । ये कतई सन्यासी,योगी और वैरागी कहलाने के काबिल नहीं हैं । इन्हें कुकर्मों व व्यभिचार करते पकड़े जाने पर न्यायालयों द्वारा निष्पक्षतापूर्वक एक सामान्य नागरिक की तरह इनके किए के अनुसार कठोरतम् दण्ड मिलनी ही चाहिए ।
भारत में धर्म के नाम पर जितना अधर्म होता है,उतना शायद दुनिया के किसी भूभाग में नहीं होता होगा ! वैसे कहने को भारत भूमि पर 33 करोड़ देवता लोग भी रहते हैं,लेकिन बहुत अफ़सोस की बात है कि इतनी संख्या में देवता लोगों के यहाँ रहते हुए भी यहाँ प्रति 23 मिनट में कहीं न कहीं किसी नन्हीं अबोध बच्ची तक से बलात्कार,उनकी बीभत्स हत्या,प्रति 30 मिनट पर इस पूँजीवादीपरस्त सरकार की गलत नीतियों की वजह से निराशा में डूबा एक किसान आत्महत्या कर लेता है,इतना ही नहीं यहाँ काल्पनिक भगवान के नाम पर बड़े-बड़े अपराधी प्रवृत्ति के गुंडे और अपराधी केवल भगवाधारी और रामनामी चद्दर ओढ़कर कथित गुरु और बाबा के वेश में ये कुटिल भेड़िए अपनी पड़पोती की उम्र की नन्हीं बच्चियों से कदाचार और व्यभिचार करने में मनुष्यता, शीलता,दया,करूणा,लोकलज्जा आदि मानवीय भावनाओं की सरेआम गला घोंटने में जरा भी संकोच नहीं करते ! इस तरह के दर्जनों भेड़िये रूपी कथित संत और बाबा आजकल जेलों में आजीवन सजा काट रहे हैं,परन्तु इतना व्यभिचार करने के बावजूद भी यहाँ की धर्मभीरु,अंधविश्वासी और मूर्ख जनता अत्यंत दुखद आश्चर्यजनकरूप से उन सभी कुकर्मी और भ्रष्टाचारी बाबाओं के जेल में रहते हुए भी उनके द्वारा स्थापित आश्रमों और अखाड़ों को पूर्ववत् श्रद्धापूर्वक संचालित कर रहे हैं !उदाहरणार्थ कदाचारी आसाराम,रामरहीम,सच्चिदानंद गिरी,स्वामी ओम्,निर्मल बाबा, इच्छाधारी भीमानंद,स्वामी असीमानंद, नारायण साईं, रामपाल,कुषमुनी,बृहस्पति गिरी,फलाहारी बाबा,कृपालु महाराज,सतपाल महाराज,कथित शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती आदि-आदि बहुत से व्यभिचारी बाबाओं के नाम गिनाए जा सकते हैं,जो सीधे व्यभिचार,हत्या,जमीन हथियाने आदि में सीधे-सीधे संलिप्त रहे हैं।
वैसे विस्मयजनक रूप से हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई आदि सभी धर्मों के ठेकेदार यह कहते नहीं थकते कि मज़हब या धर्मनहीं सिखाता आपस में बैर करना !’लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसके पुष्ट साक्ष्य हैं कि इन कथित धर्मों के ठेकेदारों ने इस मानवप्रजाति की,आम जनता की युद्धों से भी ज्यादे निर्मम हत्यायें इन कथित धर्मों के नाम पर एक-दूसरे से लड़वाकर करवाने का कुकृत्य किए हैं ! हजारों सालों तक इस देश में बौद्ध मतावलंबियों की अनवरत क्रूर और अमानवीय हत्याएं कथित अहिंसक सनानतन धर्मियों द्वारा होतीं रहीं हैं ! भारत से बौद्ध धर्म का विलोपन इसी सामूहिक हत्याओं की वजह से हो गया है । इस देश का सबसे दुःखद पहलू यह है कि इन कथित पाखण्डी बाबाओं और सन्तों की इस घृणित कुकृत्यों को चलाने में यहाँ के सत्ता के लगभग सभी राजनैतिक दलों के कर्णधारों का भरपूर समर्थन रहता है,क्योंकि धर्म उनके किए कुकृत्यों,असंवेदनशीलताओं,भ्रष्टाचार और अकर्यमण्यता को छिपाने का बहुत बढ़िया एक ढाल का काम करता है,इसके अतिरिक्त राजनैतिक दलों को इन भ्रष्ट और व्यभिचारी साधुओं द्वारा उनके डेरों,अखाड़ों और आश्रमों में इकट्ठे उनके लाखों-करोड़ों अंधश्रद्धालु कथित भक्तों के वोटबैंक का लालच एक अन्य और प्रमुख लाभकारी पहलू भी है । एक भूख ,बेरोजगारी और गरीबी से बिलबिलाते व्यक्ति को धर्मपुस्तकों में वर्णित पापपुण्य,स्वर्ग-नरक,मोक्ष और अगले जन्म में कथित स्वर्ग मिलने के प्रलोभन से उस व्यक्ति को उसी नारकीय जीवन में दुखी रखते हुए जीते रहने के लिए,बहुत बढ़िया ढंग से फंसाया और बरगलाया जा सकता है और यह स्थिति इस देश की मूल समस्याओं मसलन दवा के अभाव,कुपोषण,गरीबी,भूखमरी, बेरोजगारी,अशिक्षा आदि समस्याओं को हल न करने की बातों को नेपथ्य में धकेलने और बरगलाने तथा आभासी बातें मसलन,राष्ट्वाद, गोरक्षा,हिन्दू खतरे में है,तुम्हारा धर्म खतरे में है आदि भावनाओं को उभारकर अपनी असफलता को छिपाकर सत्ता पर अनन्त काल तक बने रहने की धूर्त,कातिल,दंगाकराने वालों से कुशल राजनेता बने नेताओं के लिए एक सफल तरीका साबित हो रहा है। इसीलिए धार्मिक ठेकेदार सदा प्रशासक या राजा को प्रजा पर शासन करने के लिए कथित ईश्वर,गॉड या खुदा द्वारा भेजे गये अवतार की तरह प्रचारित करते हैं,ये धूर्त धार्मिक गुरू और बाबा कभी भी आम जनता के हिमायती नहीं होते !वास्तविकता यह है कि धर्म और राजनीति एक-दूसरे की मदद कर आम जनता को आदिकाल से लेकर आजतक दमन,शोषण, क्रूरता,बर्बरता और गरीबी की दलदल में धकेलने का ही काम किया है। इसलिए अब इस कथित धर्म और शातिर और क्रूर सत्ता के गठबंधन को हरहाल में तोड़ने के लिए आम जनता को संगठित ,शिक्षित व जागरूक होकर सशक्त,प्रबलतम् व पुरजोर विरोध करना ही होगा।
-निर्मल कुमार शर्मा, ‘समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त,निष्पृह व स्वतंत्र लेखन ‘,गाजियाबाद, उप्र.