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*माथुर साहब का देहांत… एक ‘न्यायमंदिर’ का अन्त!* 

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* मानवधर्मी, समाजसेवी अधिवक्ता, सामाजिक कार्य के अभूत प्रवक्ता,* 

मध्यप्रदेश के भूतपूर्व अधिवक्ता जनरल आनंद मोहन माथुर जी का देहांत एक बहुत बड़ा हादसा है, हम सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए। 96 वर्ष के जीवनभर जिन्होंने बहुत प्रकार का सामाजिक योगदान दिया, ऐसे माथुर साहब केवल अधिवक्ता नहीं ‘न्यायमूर्ति’ ही रहे, हमारे लिए। हर श्रमिक, विस्थापित, आदिवासी, किसान, मुस्लिम, क्रिश्चियन…. जो भी अन्याय या अत्याचार के भुक्तभोगी होते, उन्हें न्याय दिलाने के लिए संकल्प लेकर कटिबद्धता जताते थे, माथुर साहब! कहीं जाति -धर्म के नाम पर हिंसा तो उन्हें मंजूर थी ही नहीं, लेकिन आजाद भारत के लिए शहीद हुए सभी की प्रेरणा जीवित रखने के लिए 90 साल की उम्र होते हुए उन्होंने किताबें लिखी, पंडित नेहरू, महात्मा गांधी, शहीद- ए -आझम भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस तथा आंदोलनकारी आदिवासी महिलाओं पर भी! आज माथुर साहब ही हमारा प्रेरणा स्रोत होकर, पीछे छोड़ गये हैं, उनका संदेश, संविधान और जनतंत्र ही जीवनाधार और कार्याधार बनाने का!

     आनंद मोहन जी का सतत हसमोल चेहरा व्यक्त करता था, उनकी भावना, वंचितों, पीड़ितों के लिए ही कानूनी और मैदानी संघर्ष में हिम्मत से जुड़ने की। कभी खबरें आती थी, तो भी वे व्यथित होकर पहुंचते थे। वृद्धत्व की परवाह न करते हुए न्यायालय में आखिरी तक हिम्मत से आवाज बुलंद करते हुए। प्रत्यक्ष हाजिर होना बंद करना पड़ा तो भी online प्रक्रिया से वे रहे सक्रिय, और कानून – संविधान के गाढे अभ्यासक तथा न्याय के प्रति समर्पित होने से, पैरवी में आखिर तक रहे प्रभावी भी!

     इंदौर जैसे शहर में भी ‘सर्वधर्म समभाव’ की विचारधारा के साथ कार्यरत रहे माथुर साहब के साथ जुड़े रहते थे, सभी जाति- धर्म के संगठन, मानवधर्मी अधिकार पाने के लिए। ‘आंतरभारती’ की राष्ट्रीय एकात्मता की और समाजवादी विचारधारा से कायम प्रेरित रहे, आज के माहौल में भी! हम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोप, अपराधी प्रकरण दर्ज होने पर हमारे पक्ष में खड़े रहने वाले स्पष्टवक्ता की आज बेहद जरूरत होते हुए भी, माथुरसाहब, हमें छोड़कर चले गये हैं। उनका ज्ञान और योगदान, शाहीन बाग तक पहुंचकर ‘नागरिकता’ की सच्ची समझ और समाज में लायी सभानता अभूत होते हुए…. माथुर साहब का देहांत मानो एक ‘न्यायमंदिर’ का वीरान होना महसूस हुआ। ”भोर सुबह 5 बजे भी फोन पर कुछ खबर देते, खबर लेते, सवाल करते थे आप माथुर साहब, अब कहां मिलेगी वह सूरज की रोशनी… आप जैसी जब रही नहीं, समाजप्रेमी जीवनी?”

 संजय चौहान, कमला यादव, 

मेधा पाटकर

 और नर्मदा बचाओ आंदोलन के, श्रमिक जनता संघ के साथी।

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