अग्नि आलोक

मायावती ने 16 सीटों पर मोदी की जीत का मार्ग प्रशस्त कीया

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-नीरज कुमार दुबे

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती एक समय उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाती थीं लेकिन समय ने ऐसी करवट बदली कि अब बसपा सिर्फ वोट कटवा पार्टी बन कर रह गयी है। अपनी शर्तों पर राजनीति करतीं रहीं मायावती की पार्टी का उत्तर प्रदेश में मात्र एक विधायक है जबकि कभी यहां उनके पास पूर्ण बहुमत हुआ करता था। मायावती ने चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री का पद संभाला लेकिन आज वह अपनी पार्टी को नहीं संभाल पा रही हैं। चुनाव विधानसभा के हों या लोकसभा के, मायावती और बसपा जिस बेमन से चुनाव लड़ते हैं उससे आरोप लगता है कि वह भाजपा की बी टीम हैं। जब अन्य दलों की तीन-चार दर्जन रैलियां हो जाती हैं तब मायावती प्रचार के लिए निकलती हैं।

इसके अलावा, हाल के वर्षों में खासकर उत्तर प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनावों के समय बसपा ने कई जगह ऐसे उम्मीदवार दिये जोकि विपक्षी मतों का विभाजन करवा कर भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त कर सके। इस बार के लोकसभा चुनावों से पहले मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल होने का न्यौता दिया गया था लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था। उत्तर प्रदेश में जिस तरह इंडिया गठबंधन की जीत हुई है उससे प्रतीत होता है कि यदि मायावती ने इंडिया गठबंधन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो भाजपा को और भी नीचे लाया जा सकता था। मायावती ने जब इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं होकर अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय किया था तब भी कहा गया था कि ऐसा वह भाजपा के दबाव में कर रही हैं। यही नहीं उनके उत्तराधिकारी और भतीजे आकाश आनंद ने जब लोकसभा चुनाव प्रचार में धुआंधार रैलिया करनी शुरू कीं और उन्हें मीडिया भी तवज्जो देने लगा तो एकदम से आकाश आनंद के पर इस बात को लेकर कतर दिये गये कि उन्होंने एक रैली में हिंसा भड़काने जैसा बयान दिया। देखा जाये तो आकाश आनंद ने जो कहा था वह गलत था लेकिन चुनावी रैलियों के दौरान विभिन्न दलों के नेता आकाश आनंद से भी ज्यादा बढ़-चढ़कर बातें कह रहे थे।

अब जबकि लोकसभा चुनाव परिणाम सामने आ गये हैं तो एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि मायावती की ओर से अकेले लड़ने का निर्णय संभवतः भाजपा की मदद करने के लिए किया गया था। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भले एक भी लोकसभा सीट नहीं जीती हो लेकिन उसने 16 सीटों पर दूसरों का खेल बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है। 16 सीटों पर बसपा को जितने वोट मिले हैं वो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों की हार और जीत के अंतर से ज्यादा हैं। यह सभी 16 सीटें एनडीए के खाते में गयी हैं। इनमें से 14 सीटें भाजपा के पास हैं। एक सीट राष्ट्रीय लोक दल के पास और एक सीट अपना दल (सोनेलाल) के पास गयी है। कल्पना कीजिये कि यदि मायावती के उम्मीदवार मैदान में नहीं होते तो भाजपा को 240 की जगह 226 सीटें ही मिली होतीं और एनडीए का कुल आंकड़ा भी 278 सीटों का ही होता। आज उत्तर प्रदेश में भाजपा जो 33 सीटें लेकर आई है यदि मायावती के उम्मीदवार नहीं होते तो यह नंबर 19 हो सकता था। मायावती ने भाजपा की किस तरह मदद की इसको समझने के लिए उत्तर प्रदेश की भदोही सीट को देखें जहां पर बसपा प्रत्याशी को 1.6 लाख वोट मिले जिसने भाजपा उम्मीदवार डॉ. विनोद कुमार बिंद की जीत का रास्ता साफ कर दिया। इसी प्रकार मिर्जापुर में अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल 37810 वोटों से जीत पाईं क्योंकि बसपा के मनीष कुमार ने 1.4 लाख वोट लेकर सपा उम्मीदवार का खेल बिगाड़ दिया। मायावती के कारण इंडिया गठबंधन के खाते में आने से जो सीटें रह गयीं उनमें अकबरपुर, अलीगढ़, अमरोहा, बांसगांव, भदोही, बिजनौर, देवरिया, फर्रुखाबाद, फतेहपुर सीकरी, हरदोई, मेरठ, मिर्जापुर, मिश्रिख, फूलपुर, शाहजहांपुर और उन्नाव सीटें शामिल हैं। हम आपको यह भी याद दिला दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान भी निचले स्तर तक यह संदेश पहुँचा था कि मायावती ने अपने वोटबैंक को भाजपा की मदद करने के लिए कहा है। हालांकि इस संदेश की सत्यता प्रमाणित नहीं हो पाई थी लेकिन इसने भाजपा को भारी लाभ पहुँचाया था।

बहरहाल, यह चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि बसपा का कोर वोट बैंक दलित और जाटव अब इंडिया गठबंधन की ओर जा रहा है। बसपा के वोट बैंक में तीन फीसदी की गिरावट इस बात की जरूरत पर जोर देती है कि पार्टी नेतृत्व को अब गंभीरता से अपने भविष्य पर विचार करना चाहिए। पिछले लोकसभा चुनावों में मिली 10 सीटों की बजाय बसपा का इस बार शून्य पर सिमटना, ज्यादातर बसपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त होना और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले की हवा निकलने से मायावती का भड़कना भी स्वाभाविक है। मायावती को चूंकि इस बार मुस्लिमों का वोट बिल्कुल नहीं मिला है इसलिए उनका आहत होना भी स्वाभाविक है लेकिन उनका सार्वजनिक रूप से किसी कौम को यह कहना गलत है कि कि वोट नहीं देने वालों को हम भविष्य में सोच समझ कर मौका देंगे। मायावती का यह बयान यह भी दर्शाता है कि वह भी उन नेताओं में शामिल हैं जो तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। देखा जाये तो तुष्टिकरण की राजनीति के लाभ अल्पकालिक ही होते हैं जिसने भी इसे अपनी राजनीति का आधार बनाया है उसकी जमीन एक ना एक दिन खिसकी ही है।

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