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 84 लाख योनि की अर्थवत्ता और रहस्यता

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 डॉ. विकास मानव

    _84 लाख योनि  विशुद्ध रूप से जीव विज्ञान एवं उसके क्रमिक विकास के सम्बन्धित है! सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है._

*सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌।*

  *तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥*

     (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)

अर्थात : विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई और, इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ.. परन्तु , उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई. अत: मनुष्य का निर्माण हुआ.जो उस मूल तत्व का साक्षात्कार कर सकता था.

      _पृथ्वी पर जीवन एक बेहद सूक्ष्म एवं सरल रूप से गुजरता हुआ धीरे धीरे संयुक्त होता गया और 84 लाख योनि ( चरण ) के बाद ही मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी का विकास संभव हो पाया!_

     आज आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में चेतना लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियों से गुजरी है।

वैदिक धर्मग्रंथों और आधुनिक विज्ञान में ये गिनती का थोडा अंतर इसीलिए हो सकता है कि धर्म ग्रन्थ लाखों वर्ष पूर्व लिखे गए हैं. संभव है लाखों वर्ष बाद क्रमिक विकास के कारण प्रजातियों की संख्या में कुछ वृद्धि हो गयी हो.!

     परन्तु आज से लाखों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह साक्षात्कार किया वो बेहद आश्चर्यजनक है. 

_समस्त प्राणियों को दो भागों में बांटा गया है :_

*योनिज तथा आयोनिज :*

      दो के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए तथा, अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होने वाले प्राणी आयोनिज कहे गए!

_स्थूल रूप से प्राणियों के तीन भाग हैं : 

*1. जलचर :*

जल में रहने वाले सभी प्राणी.

*2. थलचर :*

 पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी.

*3. नभचर :*

  आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी.

 _उत्पत्ति के आधार पर 84 लाख योनियों को चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया है :_

 *1. जरायुज -*

माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य,पशु जरायुज कहलाते हैं.

*2. अण्डज -*

अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये.

   *3. स्वदेज-*

मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं.

 *4. उदि्भज:*

पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उदि्भज वर्ग में शामिल किया गया.

*जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः*

      (78 :5 पदम् पुराण)

अर्थात –

1. जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)

2. स्थिर :

  अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)

   3. सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) –

11 लाख (1.1 million)

4. पक्षी/नभचर (Birds) –

 10 लाख 1.0 मिलियन

5. स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) –

 30 लाख (3.0 million)

        _इस प्रकार हमें लगभग 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है :_

      (1) एक शफ (एक खुर वाले पशु)-

खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि.

(2) द्विशफ (दो खुल वाले पशु)-

    गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि.

(3) पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु-

  सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृगाल आदि. (प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प-page no. 107-110)

      _इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है._

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