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घोसी जीत के मायने इंडिया गठबंधन और अखिलेश यादव के लिए

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घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत से यूपी के सियासी समीकरण तेजी से बदलने की संभावना है! वैसे तो इस उपचुनाव का प्रदेश सरकार के अंकगणित पर सीधा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा लेकिन उपचुनाव में जीत से विपक्ष को सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का मौका मिल जाएगा। दारा सिंह चौहान पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से ही विधायक निर्वाचित हुए थे जिन्होंने हाल ही में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया इसी कारण यह उपचुनाव हुआ। भाजपा ने जहां दारा सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया वहीं समाजवादी पार्टी ने अपने पुराने नेता पूर्व विधायक सुधाकर सिंह पर दांव लगाया था जिसे उन्होंने जीत हासिल कर सदन में सपा की सदस्य संख्या को बरकरार रखा है।

बीते दो सप्ताह राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से बेहद चर्चित रहे। एक तरफ वन नेशन वन इलेक्शन वहीं दूसरी ओर इंडिया और भारत की बहस तेज हो गई। इतना ही नहीं दक्षिण के तमिलनाडु राज्य में मंत्री स्टालिन के सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी भी उपचुनाव के दौरान चर्चा के केंद्र में रही। इन मुद्दों को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए तर्क गढ़ते रहे। चुनावी फैसला आने के बाद इसके प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है। जो भाजपा के लिए अनुकूल नहीं दिखा।

समाजवादी पार्टी की जीत में कई निर्णयों का सकारात्मक असर रहा। सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का चुनावी जनसभा, परिवार की एकता के रूप में प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव द्वारा चुनावी प्रबंधन संभालने के साथ गांवों में चौपालों का सम्बोधन का उपचुनाव पर बड़ा असर पड़ा। प्रशासन द्वारा समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं पर दबाव और रेड कार्ड के मुद्दे पर मुखर विरोध करते हुए लखनऊ में निर्वाचन आयोग में राजेन्द्र चौधरी के नेतृत्व में सपा प्रतिनिधिमंडल एवं घोसी में स्थानीय स्तर पर इलेक्शन ऑब्जर्वर से शिवपाल यादव की अगुवाई में विधायकों के दल द्वारा मांग पत्र दिए जाने के प्रयासों से कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत हुआ। जिससे सपा के आधार वोटर उत्साह से वोट दिए।

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