जूली सचदेवा
पुत्र ने पिता से पूछा-
“पिताजी ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है ?”
पिता अपने पुत्र को पतंग उड़ाने ले गए। बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था। धागा कभी पतंग को कभी इधर खींचता कभी इधर तो कभी नीचे की ओर खींचता।
थोड़ी देर बाद पुत्र बोला-
“पिताजी ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है. क्या हम इसे तोड़ दें? ये जितनी चाहेंगी, ऊपर चली जाएगी|”
पिता ने धागा तोड़ दिया.
पतंग और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई.
तब पिता ने पुत्र को जीवन का दर्शन समझाया :
“बेटे! जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं. हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं. जैसे :
घर
परिवार
अनुशासन
माता-पिता
गुरू और
समाज
हम सबसे आजाद होना चाहते हैं.
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं.
इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ.
जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना. धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही सफल जीवन कहते हैं.!
{चेतना विकास मिशन}