निश्चित रूप से इस बारे में शायद ही कोई पूरे यकीन के साथ कहने की हालत में नहीं है। लेकिन चूँकि इस बार मामला न तो विपक्ष ने खड़ा किया है और न ही हिंडनबर्ग की तरह शार्टसेलिंग के लिए अडानी समूह के कारनामों को उजागर करने की कोई पहल की गई है, जिसे बीजेपी और उसकी आईटी सेल की ओर से जार्ज सोरोस की साजिश करार दिया जा सकता है। यह आरोप सीधे अमेरिकी अदालत की ओर से लगाया गया है, जिसने समूह के मालिक गौतम अडानी और भतीजे सागर अडानी के खिलाफ अमेरिकी भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया है।
ये पूरा मामला सोलर एनर्जी के कुछ प्रोजेक्ट्स से जुड़ा है। दिसंबर 2019 से जुलाई 2020 के बीच भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने लेटर ऑफ अवार्ड जारी किए, जिसे आम भाषा में एग्रीमेंट या समझौता कहते हैं। ये लेटर ऑफ अवॉर्ड जिन दो कंपनियों के लिए जारी हुए, उनमें एक कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड है। दूसरी कंपनी अजुरे पावर ग्लोबल लिमिटेड है।
कुछ भारतीय समाचार पत्रों में अजुरे पॉवर को मारीशस या अमेरिकी कंपनी बताया जा रहा है, जबकि यह कंपनी शुद्ध भारतीय है, जो पंजाब से उभरी और हेड ऑफिस गुरुग्राम में है। हाँ, यह कंपनी न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध है, और इसके 50% हिस्सेदारी में विदेशी निवेशकों का हाथ है।
जो आरोप हैं, उसके मुताबिक इन दोनों कंपनियों का एक-दूसरे के साथ अनौपचारिक करार था, और साल 2019 और 2020 में भारत सरकार ने इन दोनों कंपनियों को कुल 12 गीगावाट (12000 मेगावाट) की सोलर एनर्जी का उत्पादन करने की इजाजत दी थी। अडानी पर आरोप है कि अमेरिका में अपनी एक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए इनके द्वारा 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत देने और इस मामले को छिपाने का प्रयास किया गया है। हालाँकि अडानी समूह की ओर से इस बारे में बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया जा चुका है और आज बड़े पैमाने पर इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया गया है।
यही कारण है कि अमेरिकी अभियोग के बाद से अडानी समूह की कंपनियों को करीब 54 बिलियन डॉलर और कंपनियों के शेयर मूल्य 35% तक गिर गये थे। इसमें फ़्रांस की एनर्जी कंपनी टोटल गैस का ऐलान कि अमेरिकी अदालत में लगे आरोपों के निपटान से पहले कोई नया निवेश नहीं किया जायेगा और केन्या में एअरपोर्ट सौदे को रद्द किये जाने ने बड़ा योगदान दिया था।
लेकिन कल अडानी समूह के लिए एक साथ दो इससे भी ज्यादा बुरी खबर थी, जिसमें एक था मूडीज और फिच सहित अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के द्वारा अडानी समूह की कई कंपनियों के लिए रेटिंग को घटा देना और मूडी के द्वारा इन कंपनियों को नेगेटिव सूची में डाल देने की खबर।
दूसरी खबर इससे भी भयानक थी, जिसे देश के भीतर उस राज्य की सरकार ने लगाना शुरू कर दिया है, जिसकी बैसाखी पर मौजूदा मोदी सरकार टिकी हुई है। जी हाँ, आंध्रप्रदेश की चंद्र बाबू नायडू सरकार को अब अडानी समूह के प्रदेश में पॉवर सेक्टर में निवेश को लेकर परेशानी होने लगी है। कुछ दिन पहले नायडू ने इस मसले पर पूर्ववर्ती जगन रेड्डी को यह कहते हुए घेरने की कोशिश की थी कि पूर्ववर्ती सरकार की वजह से प्रदेश की छवि खराब हुई है। लेकिन कल दो मंत्रियों, नारा लोकेश और पय्यावुला केशव के बयान ने तब सनसनी मचा दी, जब उनकी ओर से घोषणा की गई कि प्रदेश में अडानी पॉवर समझौते की सरकार जांच कर रही है।
शायद इन्हीं सबको देखते हुए बीजेपी की ओर से भी एक बयान कल शाम तक आ गया, जिसमें भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल के हवाले से कहा गया है कि, “हमारे पास उनका बचाव करने के लिए कुछ नहीं है और हम इसमें शामिल नहीं हैं। उन्हें खुद का बचाव करने दें। हम उद्योगपतियों के खिलाफ नहीं हैं। हम उन्हें राष्ट्र निर्माण में भागीदार मानते हैं। लेकिन अगर वे कुछ गलत करते हैं तो कानून अपना काम करेगा।”
यह एक स्पष्ट संकेत अडानी समूह को कल तक मिल चुका था कि अब बीजेपी और मोदी सरकार इतने आरोपों के मद्देनजर और ज्यादा मदद करने की स्थिति में नहीं है। संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन तो वैसे भी विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खरगे के द्वारा अडानी नाम उच्चारित करते ही खत्म हो गया, जब राज्यसभा में उपराष्ट्रपति और सभापति जगदीप धनखड़ ने फौरन कहा कि सदन के रिकॉर्ड में यह नाम नहीं जाने वाला है। हालाँकि आज भी सरकार संसद में अडानी विवाद पर कोई चर्चा कराने के पक्ष में नहीं है। लेकिन अमेरिकी अदालत और दुनियाभर में देश की बढ़ती बदनामी को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि मोदी सरकार के लिए इसे और झेल पाना संभव है।
ऐसा जान पड़ता है कि अडानी समूह ने भी इसके लिए पूरी तरह से कमर कस लिए हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण आज तब देखने को मिला जब सुबह से ही ANI और NDTV की ओर से देश की कुछ बड़ी हस्तियों का सहारा लेकर अडानी समूह के समर्थन में एक के बाद एक बयान जारी होने लगे। इसमें पूर्व अटॉर्नी जनरल, मुकुल रोहतगी, सावरकर के प्रपौत्र रंजीत सावरकर, राज्य सभा सांसद और वकील महेश जेठमलानी के इंटरव्यू को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया जा रहा है।
इसके साथ ही मीडिया में भी खबर को कुछ इस तरह से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है, जिससे यही आभास हो कि अमेरकी अदालत में उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाये गये हैं। उदाहरण के लिए सोशल मीडिया में इंडियन एक्सप्रेस सहित रायटर्स के हवाले से खबर चलाई जा रही है कि अडानी ग्रीन के मुताबिक गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर अडानी पर अमेरिकी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया गया है।
इन्हीं खबरों और चुनिंदा हितधारकों के बयानों के आधार पर आज अडानी इंटरप्राइजेज 11.5%, अडानी पॉवर 20%, अडानी पोर्ट 6% और अडानी ग्रीन एनर्जी 10% की तेजी देखने को मिल रही है। अब शेयर बाजार की इस तेजी को आधार बनाकर अडानी समर्थक मीडिया, बीजेपी आईटी सेल और बाजार को भी एक बार फिर अहसास दिलाया जाएगा कि सब कुछ चंगा है और अडानी समूह के शेयर से जो भाग खड़े हुए, उन्होंने बड़ी गलती कर दी है। दूसरी तरफ देश और विपक्ष के मुहं को भी एक बार फिर से बाजार में मजबूती और निवेशकों का विश्वास दिखाकर चुप कराना आसान हो जाने वाला है, और इसी के आधार पर आंध्र प्रदेश सरकार को भी आईने में लाकर अडानी सौदे और केंद्र की सरकार दोनों को स्थिरता को संभव बनाया जा सकता है।
लेकिन अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) की रिपोर्ट https://www.sec।gov.newsroom/press-releases/2024-181 तो 20 नवंबर 2024 की आज भी देखी जा सकती है, जिसमें पहले ही वाक्य में साफ़ तौर पर अडानी ग्रीन एनर्जी के कार्यकारियों में गौतम अडानी और सागर अडानी और अजुरे पॉवर ग्लोबल लिमिटेड के एक अधिकारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर घूस योजना के आरोप लगाये गये हैं। इसके साथ ही साफ़-साफ़ लिखा है कि अडानी ग्रीन ने अमेरिकी निवेशकों से 175 मिलियन डॉलर से अधिक रकम जुटाई है और अजुरे पावर के शेयर न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार किए गए हैं।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय मीडिया, आईटी सेल और अडानी समूह एक बार फिर से गंजे को कंघी बेचने के उद्यम में सफल होती दिख रही है, लेकिन जिस तरह से अमेरिकी अदालत और एफबीआई अफवाह नहीं बल्कि सुबूतों के आधार पर आगे बढ़ रही है, और रेटिंग एजेंसियों के चलते भारत में गंजों (भारतीय आम निवेशकों) के लिए आगे खाई में गिरना ही बदा है। देखना है विपक्ष संसद और सड़क पर अब तक के भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद मुद्दे को पेश कर पाने में कितना सफल रहने वाला है?