डॉ. विकास मानव
*मानव में निहित शक्तियां :*
साधारणतः प्रत्येक मनुष्य में देखने की , सुनने की , सूंघने की , स्वाद लेने की , स्पर्श कर किसी वस्तु के अनुभव करने की शक्ति , सोचने की शक्ति एवं काम करने की शक्ति होती है। हाँ, सब की एक निश्चित सीमा है. उसके बाहर हम कुछ भी नहीं कर सकते।
कब देख पाते हैं ? केवल आंख होने से ही हम देख नहीं सकते। देखने के लिए जरूरी है – स्वस्थ एवं खुली आंखें , प्रकाश , वस्तु का रूप – रंग , वस्तु की दूरी तथा मन।
ये सारी चीजें जब एक साथ होती हैं , तब हम देख पाते हैं। प्रकाश न हो , केवल घना अंधकार हो , तो भी हम देख नहीं पाते। प्रकाश हो , लेकिन आंखें बंद हों , तो भी हम देख नहीं पाते।
वस्तु है , प्रकाश भी है , आंखें भी खुली हुई हैं , पर अपना मन कहीं दूसरी जगह पर लगा हुआ है अर्थात् हम किसी और सोच में खोए हुए हैं , तो भी वस्तु नहीं दिखता।
दुनिया में दिन ( प्रकाश) में अधिकतर दुर्घटनाएं इसी कारण होती हैं। सामने से कोई गाड़ी आ रही है , लेकिन हम कुछ और सोच रहे हैं। तभी टक्कर हो जाती है।
चक्षु पश्यति रूपाणि मनसा न तु चक्षुषा.
अर्थात् आंख वस्तु के रूप को देखती है , परंतु आंख नहीं वरन् आंख के माध्यम से मन देखता है।
इस तथ्य को विज्ञान अब स्वीकार करने लगा है। हमारे नेत्र की क्षमता 1.5 – 2.5 एमपी(मेगापिक्सल) के कैमरा के समतुल्य है , जबकि आधुनिक स्मार्टफोन कैमरे 13 – 16mp या उससे भी अधिक मेगापिक्सल से लैस होते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि हम जो कुछ भी देखते हैं , उसमें केवल 10 से 15% ही योगदान नेत्रों का है , बाकी योगदान हमारे मस्तिष्क का है।
हमारे सुनने की क्षमता भी सीमित है। 20Hz से 20000 Hz के बीच ही हम सुन सकते हैं। 0 से 180 डेसिबल के मध्य हम सुन सकते हैं।
मनुष्य में गंध सूंघने की भी शक्ति सीमित होती है। एक कुत्ते में मनुष्य से 40 गुना अधिक गंध सूंघने की क्षमता होती है।
मानव की उपर्युक्त सीमित शक्तियों के बावजूद कुछ ऐसी अद्भुत चीजें देखी जाती हैं , सुनी जाती हैं तथा अनुभव में आती हैं , जिन्हें हम सामान्य ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से अनुभव नहीं कर पाते हैं।
उसका अनुभव जिस विशेष माध्यम से किया जाता है , वही अतीन्द्रिय संवेदी क्षमता एक्स्ट्राऑर्डिनरी सेंसरी परसेप्शन कहलाती है।
मानव की ऐसी अतीन्द्रिय -क्षमताओं से हमारे पुराण – धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं। अतीन्द्रिय संवेदी क्षमता सभी मनुष्यों में नहीं होती,अतः हम आधुनिकता के नाम पर इसे झूठलाने की कोशिश करते हैं , एक मिथक बताते हैं। हम सत्य को जानने का प्रयास नहीं करते।
*कामवासना से होना है तो संभोग में डूब जाओ :*
सेक्स थकान लाता है। इसकी अवहेलना मत करो। जब तक इसके पागलपन को नहीं जान लेते, इससे छुटकारा नहीं पा सकते। जब तक इसकी व्यर्थता को नहीं पहचान लेते तब तक बदलाव असंभव है।
यह अच्छा है कि सेक्स से तंग आते जा रहे हो। स्वाभाविक भी है। सेक्स का अर्थ ही यह है कि आपकी ऊर्जा नीचे की ओर बहती है। ऊर्जा गंवा रहे हो। ऊर्जा को ऊपर की ओर जाना चाहिए तब यह पोषण करती है। तब यह शक्ति लाती है। वर्ना शोषण करती है, शक्तिहीन करती है.
जीवन साधना करने वाले के भीतर कभी न थकाने वाली ऊर्जा के स्रोत बहने शुरू हो जाते हैं. यदि लगातार पागलों की तरह सेक्स करते ही चले जाते हो तो यह ऊर्जा का दुरूपयोग होगा। शीध्र अपने आपको थका हुआ और निरर्थक पाओगे– मुर्दा।
मनुष्य कब तक मूर्खताएं करता चला जा सकता है। एक दिन अवश्य सोचता है कि वह अपने साथ क्या कर रहा है। जीवन में सेक्स से अधिक महत्वपूर्ण और कई चीजें है। सेक्स ही सब कुछ नहीं होता। सेक्स सार्थक है परंतु सर्वोपरि नहीं रखा जा सकता है।
यदि इसी के जाल में फंसे रहे तो जीवन की अन्य सुंदरताओं से वंचित रह जाओगे। मैं कोई सेक्स विरोधी नहीं हूं—इसे याद रखे। मेरी बातों में विरोधाभाष झलक सकता है, परंतु सत्य विरोधाभासी ही होता है। मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता।
मैं बिलकुल भी सेक्स विरोधी नहीं हूं। जो लोग सेक्स का विरोध करेंगे वे काम वासना में फंसे रहेंगे। मैं सेक्स के पक्ष में हूं। यदि आप सेक्स में गहरे चले गए तो शीध्र ही इससे मुक्त हो सकते हो। जितनी सजगता से सेक्स में उतरोगे, उतनी ही शीध्रता से इससे मुक्ति भी पा जाओगे। वह दिन भाग्यशाली होगा जिस दिन सेक्स से पूरी तरह मुक्त हो जाओगे।
तो यह अच्छा ही है कि आप सेक्स से थक गये हो। अब किसी डाक्टर के पास कोई दवा लेने मत जाना। यह कुछ भी सहायता नहीं कर पायेगी. ज्यादा से ज्यादा यह इतनी ही मदद कर सकती है कि अभी नहीं तो जरा और बाद में थकाना शुरू हो जाओगे। अगर वास्तव में ही सेक्स से थक चुके हो तो यह एक ऐसा अवसर बन सकता है कि इसमे से बहार छलांग लगा सको।
काम वासना में अपने आपको घसीटते चले जाने में क्या अर्थ है। इसमे से बहार निकलो। सुनो, मैं इसका दमन करने के लिए नहीं कह रहा हूं। यदि काम वासना में जाने की इच्छा में बल हो और सेक्स में नहीं जाओ तो यह दमन होगा। जब सेक्स से तंग आ चुके हो या थक चुके हो और इसकी व्यर्थता जान ली है तब सेक्स को दबाए बगैर इससे छुटकारा पा सकते हो। सेक्स का दमन किए बिना जब इससे बाहर हो जाते हो तो इससे मुक्ति पा सकते हो।
काम वासना से मुक्त होना एक बहुत बड़ा अनुभव है। काम से मुक्त होते ही आपकी ऊर्जा ध्यान और समाधि (परमानन्द) की ओर प्रेरित हो जाती है।
*एक बिल्कुल छोटा-सी और सहज ध्यानविधि :*
केवल इतना ही सुनिश्चित करें कि तादात्म्य न करूंगा घंटेभर. दूसरे शब्दों में : आइडेंटिफिकेशन न करूंगा घंटेभर।
घंटेभर बैठ जाएं। पैर में चींटी काटेगी, तो मैं ऐसा अनुभव करूंगा कि चींटी काटती है, ऐसा मुझे पता चल रहा है। मुझे चींटी काट रही है, ऐसा नहीं।
इसका यह मतलब नहीं कि चींटी काटती रहे और आप अकड़कर बैठे रहें। आप चींटी को हटा दें, लेकिन यह ध्यान रखें कि मैं जान रहा हूं कि शरीर चींटी को हटा रहा है। (इसलिए की शरीर आपका है, आप शरीर नहीं हो).
देखें : चींटी काट रही है, यह भी मैं जान रहा हूं। शरीर चींटी को हटा रहा है, यह भी मैं जान रहा हूं। सिर्फ मैं जान रहा हूं।
पैर में दर्द शुरू हो गया बैठे-बैठे, तो मैं जान रहा हूं कि पैर में दर्द आ गया। फिर पैर को फैला लें। कोई जरूरत नहीं है कि उसको अकड़ाकर बैठे रहें और परेशान हों। पैर को फैला लें। लेकिन जानते रहें कि पैर फैल रहा है कष्ट के कारण, मैं जान रहा हूं।
भीतर एक घंटा एक ही काम करें कि किसी भी कृत्य से अपने को न जोड़े, और किसी भी घटना से अपने को न जोड़े।
आप 90 दिन के भीतर ही गीता के तटस्टता, निष्कामता के सूत्र को अनुभव करने लगेंगे. अन्यथा आप 90 जन्मों तक भी गीता पढ़ते रहें, अनुभव नहीं होगा।
तो एक घंटा, मैं सिर्फ ज्ञाता हूं इसमें डूबे रहें। कुछ भी हो, पत्नी जोर से बर्तन पटक दे…।
स्वाभाविक है की पति जब ध्यान करे, तो पत्नी बर्तन पटकेगी। या पत्नी ध्यान करे, तो पति टीवी जोर से चला देगा, अखबार पढ़ने लगेगा, बच्चे उपद्रव मचाने लगेंगे।
जब बर्तन जोर से गिरे, तो आप यही जानना कि बर्तन गिर रहा है, आवाज हो रही है, मैं जान रहा हूं।
अगर आपके भीतर धक्का भी लग जाए, शॉक भी लग जाए, तो भी आप यह जानना कि मेरे भीतर धक्का लगा, शॉक लगा। मेरा मन विक्षुब्ध हुआ, यह मैं जान रहा हूं। आप न शरीर हो, न मन हो : यह मत भूलना.
आप अपना संबंध जानने वाले से ही जोड़े रखना और किसी चीज से मत जुड्ने देना।
इससे सरल ध्यान की कोई प्रक्रिया नहीं है। कोई जरूरत नहीं है प्रार्थना की, ध्यान की; फिर कोई जरूरत नहीं है। बस, एक घंटा इतना खयाल कर लें।
थोड़े ही दिन में यह कला आपको सध जाएगी। बताना कठिन है कि कला कैसे सधती है। आप करें, सध जाए, तो ही आपको समझ में आएगा। करें कि तादात्म्य न करूंगा घंटेभर. आइडेंटिफिकेशन न करूंगा घंटेभर।