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मेरठ षड्यंत्र केस…स्वतंत्रता संग्राम का अद्भुत केस

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,,मुनेश त्यागी 

     भारत का स्वतंत्रता आंदोलन जहां फ्रांसीसी क्रांति के नारों समता, समानता और भाईचारे से प्रभावित था, तो उसे रूसी क्रांति के नारों समाजवाद, साम्यवाद और मजदूर किसानों का राज्य जैसे नारों ने बेहद प्रभावित किया था। भारत के अधिकांश क्रांतिकारी इसी दर्शन की सत्ता भारत में भी लाना चाहते थे और वे भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गुलामी का खात्मा करके पूंजीवादी, सामंती व्यवस्था का पूरा विनाश चाहते थे। ब्रिटिश साम्राज्यवादी लुटेरे भारतीय क्रांतिकारियों के इस क्रांतिकारी रुझान से बहुत भयभीत थे और वे किसी भी कीमत पर इन विचारों को बर्दाश्त नहीं करना चाह रहे थे और इन विचारों का शीघ्रातिशीघ्र खात्मा चाहते थे।

इसी उद्देश्य से उन्होंने भारतीय क्रांतिकारियों पर बहुत से केस दायर किए जिनमें बनारस षड्यंत्र केस 1915, पेशावर षड्यंत्र केस, मास्को षड्यंत्र केस 1921, कानपुर बोलशेविक षड्यंत्र केस 1923, मेरठ षड्यंत्र केस1929, लाहौर षड्यंत्र केस 1929 प्रमुख हैं।

    ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन का नामोनिशान मिटाने के लिए उसके सभी प्रमुख नेताओं और मजदूर आंदोलन के क्रांतिकारियों को जेल में डाल दिया। देश भर में गिरफ्तारियां हुईं। 20 मार्च 1929 को धारा 121ए ताजे राते हिंद के तहत, 33 आदमियों पर मुकदमा में चला गया। इसे ही मेरठ कम्युनिस्ट षड्यंत्र केस यानी मेरठ षड्यंत्र केस कहा गया। हिंदुस्तान के इन महान सपूतों पर अंग्रेजों ने आरोप लगाया कि इन सब ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की हुकूमत को हिंदुस्तान से उखाड़ फेंकने की साजिश की है, वे  कम्युनिस्ट विचार रखते हैं, कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रचार प्रसार करते हैं और क्रांति द्वारा भारत को साम्राज्यवादी ब्रिटेन से पूरी तरह अलग करना चाहते हैं। अंग्रेज सबसे अधिक कम्युनिस्ट विचारों से डरते थे। अतः कम्युनिस्टों और उनके समर्थकों को ध्वस्त करने के लिए और क्रांति के इस हिरावल दस्ते को खत्म करने के लिए और साम्यवादी आंदोलन पर अंकुश लगाने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया।

    ये कम्युनिस्ट भारत में सामंती, पूंजीवादी और साम्राज्यवादी व्यवस्था के स्थान पर मजदूरों और किसानों का मिलाजुला राज कायम करना चाहते थे। हजारों वर्ष पुराने शोषण, अन्याय, जुल्म, गैर बराबरी, भेदभाव और जुल्मों सितम को समाप्त करके भारत में एक समाजवादी समाज कायम करना चाहते थे जिसमें किसानों मजदूरों की सरकार होगी। भारत में एक सच्ची जनवादी और गणतांत्रिक व्यवस्था करना चाहते थे। वे जनता के सभी तबकों का वास्तविक विकास चाहते थे।मनुष्य मात्र की समानता चाहते थे। देश के संसाधनों पर सारी जनता का अधिकार और आधिपत्य चाहते थे।

      यही इच्छा, विचार और कामना इनका असली अपराध था और अंग्रेज इसी सोच और इन्हीं विचारों का गला घोट देना चाहते थे। मगर आजादी, समता, समानता, न्याय और समाजवादी विचारों के ये निर्भीक दीवाने कब किससे डरने वाले थे? उन्होंने अंग्रेजों के इस जालिमाना आक्रमण का डटकर बखूबी सामना किया। अदालती कटघरे को अपने विचारों का प्रचार प्रसार का खूबसूरत माध्यम और अड्डा बना लिया और उल्टे डाकू अंग्रेजों को कटघरे में खड़ा कर दिया और उन्हें दुनिया के सामने नंगा कर दिया।

     33 अभियुक्तों में दो मेरठ के सपूत थे गौरीशंकर और चौधरी धर्मवीर सिंह। इन में ब्रिटेन की श्रमजीवी जनता के तीन महान क्रांतिकारी बेटे फिलिप स्प्राट,बैन ब्रेडले और हचिंसन भी शामिल थे। इनमें कांग्रेस के गरम दल और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के 18 सदस्य थे। यह केस हिंदू मुस्लिम एकता और सर्वहारा वर्ग की अंतर्राष्ट्रीयता का एक अद्भुत नमूना था। इसमें इसमें 18 कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य और 8 कांग्रेस के गरम दल के नेता थे। 

      भारत की जनता भी कहां डरने वाली थी, उसने भारत के इन स्वतंत्रता सेनानी सपूतों की मदद के लिए एक ऑल इंडिया मेरठ डिफेंस कमेटी बनाई, जिसके अध्यक्ष दिल्ली के डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी और सचिव पंजाब के बाबू गिरधारीलाल बनाए गए। ब्रिटेन और सोवियत संघ के श्रमजीवी भी डिफेंस कमेटियां बनाकर मदद के लिए आगे आए। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड को पत्र लिखकर मुकदमा हटा लेने की मांग की थी।

     इन महान क्रांतिकारी देशभक्तों की वकालत के लिए देश के कोने-कोने से बैरिस्टर मेरठ आए। मुंबई के एमसी छागला, जो बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने, मेरठ आए, पटना के देवकी प्रश्न्न  सिन्हा, कोलकाता के क्षितिज चंद्र चक्रवर्ती, लखनऊ के चंद्र भानु गुप्ता और बैरिस्टर फरीदुल हक अंसारी शामिल थे। अपील में बांके बिहारी और कैलाश नाथ काटजू शामिल थे। महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता जिन में नेहरू भी शामिल थे, इन क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों से मिलने जेल गए थे। यहां पर इन क्रांतिकारी और देशभक्त अभियुक्तों द्वारा अदालत में दिए गए बयानों का विवरण देना काफी समिचीन होगा।

       मुजफ्फर अहमद,,, मैं क्रांतिकारी कम्युनिस्ट हूं। भारत के किसान मजदूर अंग्रेजी राजसत्ता को उखाड़ फैंकेगे और उसके स्थान पर किसानों मजदूरों का वास्तविक गणतंत्र कायम करेंगे। अतः हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे पहला काम है जंगी ट्रेड यूनियन बनाना ताकि क्रांतिकारी कार्यकर्ता आगे बढ़ सकें।

     श्री श्रीपद अमृत डांगे,,,, ने कहा कि भारत के कम्युनिस्टों का तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकना है। सच्चिदानंद विष्णु घाटे ने बयान दिया कि,,,, एक ईमानदार सच्ची मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी की जरूरत है और यह हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी है। कम्युनिस्ट वर्तमान राजतंत्र को ध्वस्त करके नया समाजवादी राज बनाना चाहते हैं। केशव नीलकंठ जोगलेकर ने कहा कि,,,, कम्युनिस्ट पूंजीवाद के समझौता विहीन शत्रु हैं। मैं ऐसा आघात करने में हिचकिचाऊंगा नहीं जो पूंजीवाद की शक्तियों को धराशाई कर देगा। मैं मार्क्सवाद लेनिनवाद के सिद्धांतों में विश्वास करता हूं और समाजवादी क्रांति का रास्ता राष्ट्रीय क्रांति से होकर जाता है और हिंदुस्तान की पार्टी भी राष्ट्रीय क्रांति के लिए कार्य कर रही है। शांताराम सावलाराम मिरजकर का बयान देखिए,,,,, मैं पूंजी की सार्वभौमिकता को नष्ट करने पर तुला हुआ हूं। हमने भारत से ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा की हुई हैं।

       सोहनसिंह जोश ने कहा था कि,,,,,, भारत सच्ची स्वतंत्रता सिर्फ क्रांति के जरिए ही प्राप्त कर सकता है। हमारी पार्टी पूर्ण स्वतंत्रता के लिए समझौताविहीन आंदोलन कर रही है। अब्दुल मजीद का बयान था कि,,,,,, एक दिन सर्वहारा क्रांति भारत में जरुर सफल होगी। हम कम्युनिस्ट यही क्रांति करने की कोशिश कर रहे हैं। गंगाधर मोरेश्वर अधिकारी का बहुत मार्के का बयान देखिए,,,,, साम्राज्यवादी खून के प्यासे हैं, वे सामाजिक अपराधी हैं, उन्होंने खून और आतंक का राज कायम किया हुआ है। उन्होंने हम पर गरीबी और दासता थोप दी है। हम मानव समाज और सभ्यता को इसी  महाविनाश से बचाना चाहते हैं।

     इस विश्वविख्यात मुकदमे में 27 लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी गई थी। मुजफ्फर अहमद को आजीवन काला पानी की सजा दी गई। डांगे, स्प्राट, घाटे, जोगलेकर, निंबकर को 12-12 साल का कालापानी की सजा दी गई। ब्रेडले, मिनजकर, और उस्मानी को दस दस साल का काला पानी सजा दी गई। मजीद, जोश और गोस्वामी को सात सात साल  कालापानी की सजा दी गई और बाकी क्रांतिकारी अभियुक्तों को पांच पांच साल से लेकर तीन तीन साल की कालापानी की सजा दी गई थी।

       ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की कम्युनिस्ट विरोधी साजिशें सफल नहीं हुईं। मेरठ कम्युनिस्ट षड्यंत्र केस ने बहुत प्रचार प्रसार किया। लोगों में कम्युनिस्टों के प्रति खूब दिलचस्पी बढ़ी और कई राष्ट्रवादी भी कम्युनिस्ट हो गए। मेरठ षड्यंत्र केस ने, मेरठ और हिंदुस्तान की शान को वैश्विक स्तर पर बहुत बढाया। गैरबराबरी, शोषण, अन्याय भेदभाव और गरीबी व भेदभाव से निजात दिलाने के लिए मेरठ षड्यंत्र केस की अहमियत आज भी प्रासंगिक और जरूरी बनी हुई है।

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