प्रस्तुति : मीना राजपूत
कुछ वर्ष पूर्व अपने दो अभिन्न मित्रों के साथ सपरिवार 3 दिन की आगरा यात्रा अपने आप में एक विलक्षण आनंददायक अनुभव था । विलक्षण इसलिये कि कई ऐतिहासिक इमारतों के दर्शन , विचरण का अवसर मिला, और आनंददायक इसलिए कि सपरिवार मित्रों का साथ था । एकाधिक कारणों से इस छोटी पर बेहद आनंदपूर्ण व अनोखी यात्रा के संस्मरण लिखने का कार्य लम्बित था जिसमें सबसे प्रमुख कारण मेरी ढिलाई रही | खैर थोड़ा अपने आलस पर काबू पाकर समय निकाल कर एक छोटा प्रयास कर रहा हूँ ।
गर्मी के दिनों में ताज़ का अवलोकन स्वयं में एक अनोखा काम था पर मित्रों और बच्चों के उत्साह ने गर्मी पर पानी फेरने का काम किया और निकल पड़े आगरा की ओर नए नवेले express way के रास्ते सुबह लगभग 9 बजे के आस पास ।
पहली बार express way का सफर करने का उत्साह मुझमें भी था और साथियों में भी । मोहान की ओर से जैसे ही express way में प्रवेश किया मानो सामने का नज़ारा ही बदल गया । भारत में और भी एक्सप्रेस वे हैं और देखे भी हैं पर इसकी बात ही कुछ और है । यह भी हो सकता है कि मेरी मातृभूमि और कर्मभूमि से जुड़ा होने के कारण मेरा इससे विशेष लगाव हो पर मेरे द्वारा पूर्व में देखे गए दूसरे कई express ways की तुलना में यह कुछ अलग दिख रहा था । दोनों ओर। दूर तक खेतों में अन्नदाता का पसीना सोने की तरह फैला हुआ था जिसे देख कर अन्नदाता की मेहनत पर गर्व और व्यवस्था पर शर्म आ रही थी । कहीं न कहीं किसान को उसकी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल रहा है, यह विचार लगातार दृढ़ होता जा रहा है । कोई भी सरकार हो किसान भूख से, पीड़ा से बदहाल ही दिखता है । बरबस ही मो इक़बाल का वह शेर ज़हन में कौंध गया …
जिस खेत से दहकां को न रोटी हो मयस्सर
उस खेत के हर गोशा ओ गंदुम को जला दो ।
खैर यह तो विषयांतर हो जाएगा । बात तो express way की चल रही थी । लगभग 300 किमी लम्बा यह मार्ग निश्चित ही बेहद सावधानी और दूरदृष्टि से योजना बना कर निर्मित किया गया है । तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी को इसके लिए कोटि कोटि बधाई और साधुवाद । प्रदेश को ऐसी ही विकास आधारित नीतियों को लागू करने की जरूरत है । बस इस मार्ग पर कुछ मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है और यह वर्तमान सरकार का कर्तव्य है कि वह यहां उन सुविधाओं को शीघ्र विकसित करे और इस पर राजनीति न की जाए ।
आगरा पहुंच कर होटल में कुछ समय आराम के बाद नहाकर भोजन के लिए निकले । कई होटल देखे पर अंत में एक ढाबा ही अपने बजट में समाया । भोजन ताज़ा और अच्छा था । भूख भी ठीक ठाक लगी थी । सभी ने मन से खाया । फिर कुछ आराम की इच्छा थी पर बच्चों और बच्चों की माताओं का आदेश हुआ कि—
० ताज देखेंगें आज
तो फिर तो चलना ही था । सो वहीं से ताज की ओर चल पड़े । ताज के पूर्वी गेट से काफी पहले पार्किंग थी । गाड़ी खड़ी करके पैदल चलना था । गर्मी का मौसम, सफर की थकान और उस पर भरपेट भोजन – हालत कहने की नहीं समझने की है, पर बच्चों और जीवन के बेहतर अर्धांश के उत्साह और इच्छा को देखते हुए अपनी हालत से समझौता करके टिकट लिया और ताज के अंदर पहुंचने के लिए लाइन में लग गए । स्त्री और पुरुषों की अलग अलग लाइन थी । हमारी थोड़ी छोटी थी सो पहले ही अंदर आ गए और अपनी आदत के अनुसार इधर उधर विचरण शुरू हो गया । कुछ ही देर में ताज के मुख्य हिस्से पर चढ़ने की लाइन लगाई और पैरों में कागज के मोजे पहने ताज के चबूतरे पर चढ़े । इतनी जगह लाइन लगाने के बाद ताज का दीदार हुआ तो दूर से ही उसे देख कर मुहँ से बरबस ही निकल गया …
० वाह ताज !!!!!!!
धीरे धीरे लाइन रेंगती रही और उसके साथ रेंगते हुए हम लोग भी अंदर पहुंचे ।लगभग 30 वर्ष पहले भी मैं नजदीक से ताज देख चुका हूँ, पर तब न तो इतनी समझ ही थी कि ताज क्या है और न ही उस यात्रा की इतनी याद ही बाकी रह गयी थी । अतः आज ताज को देखना एक प्रकार से पहली बार ही हुआ । लगभग साढ़े चार बजे हम लोग ताज के करीब पहुंचे । जितना ही ताज के करीब पहुंचते गए उतना ही मन खुश और खिन्न होता जा रहा था । खुशी तो समझी ही जा सकती है कि…..
० वाह ताज………..
……के लिए थी पर खिन्नता इस बात पर थी कि इतनी खूबसूरत विरासत की हालत बेहद खराब थी । दूर से ही ताज की सफेदी कुम्हलाई हुई दिखती है । जगह जगह पत्थर या तो चिटके हुए थे या बेहद गंदे और पीले हो गए थे । जगह जगह दरारें दिख रही थीं । कहीं कहीं पत्थर उखड़ने की हालत में थे । पच्चीकारी और पेट्रा ड्यूरा का खूबसूरत काम काला पड़ रहा है और इस पर जगह जगह दाग धब्बे दिख रहे हैं । मीनारें भी गन्दी और धूमिल दिख रही थीं । ताज के अंदर रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है और शाम के समय घुप्प अंधेरे की हालत होती है । शायद यह अंधेरा सायास ही हो ।
खैर मूल मक़बरे के अंदर से बाहर आये और ताज के चारों ओर घूमना शुरू किया । सभी मित्र और परिवारीजन तो एक साथ घूम रहे थे । मैं ठहरा यायावर सो अलग-थलग इधर उधर घूमता देखता रहा । बीच बीच में पत्नी व मित्रों की डांट और बच्चों का आग्रह भी आता और मैं फिर उनके साथ हो जाता पर ज्यादा देर को नहीं । मुश्किल से एक दो मिनट , कुछ फोटो और अपन फिर वैरागी । जब डांट ज्यादा पड़ी तो तरकीब निकाली और पत्नी को चुपचाप अलग बुलाकर कहा- चलो तुमको कुछ दिखाता हूँ । एक की डांट से बचने की काट निकाली और मित्रगण ये सोच कर चुप लगा गए कि मियां बीवी कुछ देर अलग एकांत चाहते हैं । आखिर ताज एक प्रेमकथा की अमर निशानी ही तो है । अपना काम बन गया और हम दोनों ताज के यमुना वाले छोर पर निकल गए । ताज की नज़र से यमुना को भी देखा यमुना की नज़र से ताज को भी और कुछ चित्र भी हम दोनों ने एक साथ खींचे ।
यमुना की नज़र से ताज को देखना एक अलग अनुभव है । यमुना जो पहले कभी ताज को छू कर बहा करती थी आज ताज से काफी दूर चली गयी है । ये ताज के लिए बेहद घातक स्थिति है । कम ही लोग यह बात जानते होंगे कि यमुना ताज के अस्तित्व के लिये अनिवार्य है । ताज की नींव जिन बड़े बड़े भारी लकड़ी के लट्ठों और इन लट्ठों को सहेजने के लिए बनाई गई ईंटों के कुओं जैसी संरचना पर टिकी है, जिनमें कंक्रीट, चूना, पत्थर और गिट्टियां भरी हैं , यमुना उनके स्थायित्व को बनाने में सहायक थी क्योंकि बेहद गहराई में , यमुना की तलहटी से भी नीचे स्थित ताज की नींव को मजबूती यमुना का जल देता था । वह इन गहरे कुओं की दीवारों को सूखने से बचाती थी और साथ ही इस नींव को सूखी रेत में धंसने से रोकने में भी सहायक थी । यमुना का जल किनारे की मिट्टी को रेत में बदलने से रोकता था और इन लकड़ी के लट्ठों व कुओं को वह नमी पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराता था जो इनको भुरभुरा होने से बचाने के लिए आवश्यक होती है । आज यमुना ताज से काफी दूर हो गयी है और एक नदी के स्थान पर एक गन्दे नाले में तब्दील हो चुकी है जिसके जल में ऑक्सीजन की मात्रा आवश्यक अनिवार्य स्तर से काफी कम है और जो प्लास्टिक , पॉलीथिन , मल , मूत्र, औद्योगिक कचरे और जलीय जीवों की लाशों का लबादा ओढ़े हुए है । इसके दूषित जल में पनपने वाले शैवालों पर आश्रित अनगिनत प्रकार व संख्या के छोटे छोटे कीट पतंगे जिनकी आयु मात्र 3 या 4 दिन की होती है, अपने साथ साथ ताज को भी नश्वर बनाने पर तुले हैं और ताज की दीवारों पर मल विसर्जन करते रहते हैं जिसके कारण दीवारें हरे- काले धब्बों से भरी हुई हैं और ताज का दूधिया सफेद संगमरमर और इसकी बारीक कारीगरी काली पड़ती जा रही हैं । आज ताज की विलक्षण मौलिकता ” चमकी ” लुप्तप्राय हो चुकी है और ताजमहल और राजस्थान के बीच खड़ी हरे पेड़ों की लम्बी चहारदीवारी का नाम ओ निशान मिट चुका है जिसका परिणाम यह हुआ है कि राजस्थान से आने वाली रेत और प्रदूषित हवाओं से ताज के संगमरमर का क्षरण हो रहा है और यह अपनी चमक खोता जा रहा है ।
केवल इतना ही नहीं , ताजमहल के 10 से 12 किलोमीटर की परिधि में यमुना पर 8 घाट हैं जहां नहाने , धार्मिक अनुष्ठान करने व मूर्ति विसर्जन के साथ साथ शव दाह भी होता है । मोक्षधाम नामक आगरा का सबसे लोकप्रिय शवदाह स्थल तो ताज और किले के बीच में है जहां रोज सैकड़ों शव जलते हैं और विद्युत शव दाह गृह पिछले कई वर्षों से बस बनने ही वाला है । इसके पास की यमुना जो दिल्ली से आगरा तक express way के साथ साथ चलती आती है , यहां आकर स्वयं में सिकुड़ जाती है और अपनी तबाही पर मौन रहती है । एक गहरी उदास निस्तब्धता और चुप्पी ओढ़े हुए यह नदी मानों अपनी दुर्दशा पर रो रही है और हर दिन अपनी मौत का इंतज़ार कर रही है बावजूद इसके कि इसे मालूम है कि इसके साथ ही ताज की मौत भी निश्चित है । यह उस यमुना की लाश की तरह दिखती है जो बन्दरपूँछ ग्लेशियर से निकलते हुए साफ चमकीले नीले पानी वाली नदी है ।
और सरकार क्या कर रही है । सरकार सिर्फ वादे कर रही है और कोर्ट को इरादे बता रही है । बिना किसी गहन अध्ययन के ताज के संरक्षण का काम चल रहा है । आज तक ताज की नींव की हालत जानने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है और न ही कभी यह ध्यान दिया गया है कि वह ताज जो 1970 तक दूधिया चमक बिखेरता था, अलग अलग समय पर अलग अलग रंगों की छटा बिखेरता था और जिसकी विशेषता इस दूधिया पारदर्शी संगमरमर की ” चमकी ” हुआ करती थी, इसके पीले पड़ते रंग को कैसे वापस लाया जाए । बिना किसी वैज्ञानिक शोध या अध्ययन किये ही इसके संरक्षकों ने इसको मुल्तानी मिट्टी की परत से ढक कर धोना शुरू कर दिया मानो यह ताज नहीं होकर स्वयं मुमताज़ महल हों जिनके चेहरे को चमकदार और मुलायम बनाये रखने के लिए इसका प्रयोग face pack की तरह किया जाता था । नतीजा ये हुआ कि संगमरमर की चमक को बरकरार रखने के लिए उस पर किया गया मुगलकालीन ‘वज्र लेप’ धूल गया और ताज पूरी तरह निर्वस्त्र खड़ा होकर कीट पतंगों, रेगिस्तानी हवाओं, जहरीले धुएं और प्रदूषण के रहम ओ करम पर है ।
ये तो रही सरकार की बात । और हम क्या कर रहे हैं ??? ताज के चारों ओर अवैध बस्तियां बसा ली हैं । ताज और उसके दरवाजों के बेहद पास तक खाने पीने के रेस्टॉरेंट , होटल , गेस्ट हाउस, नक्काशी व हस्त शिल्प तथा अन्य वस्तुओं की दुकानों की भरमार तथा इसके कारण ध्वनि व वायु प्रदूषण की स्थिति खतरनाक है ।साथ ही रोजाना लगभग 40000 पर्यटकों का ताज देखने आना भी एक बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से ताज के आस पास गंदगी और कूड़े के ढेर भी बने रहते हैं । इनसे उठने वाली प्रदूषित वायु भी ताज को तबाह ही कर रही होगी इसमें कोई शक नहीं है ।
मुझे तो यह हाल देख कर यही समझ आता है कि कुछ तो हमको भी सोचना पड़ेगा । सब कुछ सरकार न कर सकती है और न ही कर पायेगी ।
खैर यह तो रही वह बात जिसके कारण वाआआह ताज ….के बाद मुहँ से आआह………. ताज ..भी निकल ही गया । शाम लगभग 7 बजे से कुछ पहले हम सभी ताज का दीदार करके बाहर आये । कुछ दूर चलने के बाद सभी लोग तो एक जगह बैठ कर चाय पानी में व्यस्त हो गए पर मैं और मेरी ही तरह घुमक्कड़ मेरी बेटी टहलते हुए एक और जगह पहुंच गए जहां एक बेहद पुराना कुआं दिखाई दिया । आस पास रहने वालों के अनुसार यह भी शाहजहाँ के समय का ही है । पिता पुत्री ने मिलकर उसकी भी तस्वीरें लीं और वापस चाय पीने लौट पड़े । चाय पान के बाद फिर चल पड़े होटल की ओर आराम करने के लिए क्योंकि अगले दिन फिर निकलना था.
(स्रोत ~ सफर जारी रहेगा : राहुल सांकृत्यायन.)