हरियाणा में देश के दूसरे राज्यों की तुलना में पुरुषों की शादी न हो पाना एक गंभीर समस्या है। अविवाहित मर्दों के लिए खास शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे आमतौर पर अपशब्द या गाली कहते हैं।
कुछ दिन पहले ही हरियाणा सरकार ने 45 से 60 साल के अविवाहित पुरुषों के लिए पेंशन की भी घोषणा की है।
लड़कों की शादी न हो पाने के पीछे की वजह केवल खेत-जमीन न होना नहीं है। खराब लिंगानुपात यानी सेक्स रेशियो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है। एक समय यहां एक हजार लड़कों पर 800 लड़कियां थीं।
इसलिए आपने कई बार सुना होगा कि इस क्षेत्र के लोग बिहार, बंगाल, ओडिशा जैसे गरीब राज्यों से लड़की पैसे देकर शादी के लिए लाते हैं।
हालांकि, अब सेक्स रेशियो में पहले से सुधार हुआ है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां एक हजार लड़कों पर 861 लड़कियां थीं। जून 2022 के आंकड़ों के मुताबिक अब यहां एक हजार लड़कों पर 959 लड़कियां हैं।
बढ़ती उम्र के साथ कुंवारे पुरुषों के जीवन में किस तरह अंधेरा है यह जानने मैं हरियाणा के जींद पहुंची हूं। जींद की दूरी दिल्ली से करीब तीन घंटे है।
हाइवे से सटे रंधाना गांव में मेरी मुलाकात 40 साल के संजय से हुई। पता चला कि संजय ने शादी करने की कई बार कोशिश की, लेकिन हो नहीं पाई। अब उन्होंने उम्मीद भी छोड़ दी है।
बढ़ी हुई लंबी दाढ़ी, सिर पर भगवा गमछा और चेहरे पर मुस्कान के साथ संजय मेरे सामने बैठे थे। मेरे जींद आने की वजह जानने के बाद शुरुआत में संजय इस बारे में बात करने से हिचकते हैं। वो बस सपाट सा जवाब देते हैं- शादी नहीं हुई तो नहीं हुई।
मैं उनसे नॉर्मली बातचीत करने लगती हूं। घर-परिवार के बारे में ऐसी ही कुछ पूछती रहती हूं। बातचीत जैसे ही आगे बढ़ती है तो उनका दर्द छलकने लगता है।
संजय ने अपनी जिंदगी का एक लंबा हिस्सा डिप्रेशन में बिताया है। लोगों के तानों से तंग आकर घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया था। आत्महत्या का ख्याल भी बार-बार आता रहा।
बातचीत में जब संजय सहज होते हैं, मैं धीरे से पूछती हूं। शादी क्यों नहीं हो सकी? वो सीधा और सपाट जवाब देते हैं- न रोजगार था, न जमीन थी, मुझे बेटी कौन देता?
कुछ सेकेंड चुप होने के बाद कहते हैं- ‘शादी न होने पर आज भी लोग उलाहना देते हैं। ताने मारते हैं। बर्दाश्त की आदत हो गई है। अब जब लोग ताने देते हैं, चिढ़ाते हैं तो मैं मुस्कुरा देता हूं।’
कामधंधा नहीं होने के बावजूद बहुत से पुरुष देश में शादीशुदा हैं। ऐसे में संजय की बात को कन्फर्म करने के लिए मैं दोबारा उनसे पूछती हूं कि आपकी शादी क्यों नहीं हो सकी? वो फिर वही जवाब देते हैं, ‘कोई रोजगार नहीं था, इसलिए शादी नहीं की। रोजगार के बिना बच्चे पालना मुश्किल है, आज महंगाई बहुत है। बेरोजगारी में कैसे बच्चे पालता। कभी-कभी तो इस महंगाई को देखकर लगता है, अच्छा ही हुआ जो शादी नहीं हुई।’
क्या आपका मन नहीं करता कि शादी हो, परिवार हो, बच्चे हों? इस सवाल पर संजय खामोश हो जाते हैं। एक लंबी चुप्पी के बाद वो छोटा-सा जवाब देते हैं, ‘कोई कामधंधा मिल जाता तो शादी का भी विचार करता। आप बताइए मैडम शादी का मन तो सबका करता है। मेरा भी सपना है कि बीवी हो, अपना परिवार हो।’
संजय अपने गांव में अकेले नहीं है जिनकी शादी नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि गांव में करीब तीन प्रतिशत पुरुष उनके जैसे ही अविवाहित है।
घर वालों का व्यवहार तो आपके साथ ठीक है?
संजय कहते हैं, ‘नहीं। उनका व्यवहार भी बाहर वालों जैसा ही है। जब घरवाले ताने मारते हैं तो दिल ज्यादा दुखता है। हम लोगों को बोलने से तो रोक नहीं सकते हैं। एक बात साफ है कि हमारे समाज में मेरे जैसों की कोई इज्जत नहीं।’
एक घटना का जिक्र संजय करते हैं। वे बताते हैं, ‘एक बार मैं गांव से बाहर गया था। एक बुजुर्ग महिला ने अपने घर में यात्रियों के रहने की व्यवस्था बना रखी थी। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम यहां नहीं ठहर सकते, हम सिर्फ कपल को घर में रहने देते हैं।
मैंने विनती की कि एक रात की बात है। उस महिला ने कहा कि जब आपको किसी ने लड़की ही नहीं दी तो हम घर कैसे दे सकते हैं?’
संजय कहते हैं, ‘हमारा गांव-समाज ही कुछ इस तरह से बना है। जिन लड़कों की शादी नहीं होती, उन्हें हीन भावना से देखा जाता है। लोग मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं और बात-बात पर ताना देते हैं। जब उम्र कम होती है तब यह सब झेलना आसान नहीं। मरने का भी ख्याल आता है। उस दौर को आज जब याद करता हूं तो बुरा लगता है। हालांकि, अब मैं उस तनाव और डिप्रेशन से निकल गया हूं।
शादी न होने का जितना दुख संजय को है, उससे कहीं ज्यादा उनकी मां को है। जब भी संजय के किसी दोस्त की शादी होती, उनकी मां को बहुत जलन होती है।
मैंने पूछा- लोग तो अच्छा घर-वर देखकर शादी कर देते हैं। हरियाणा जैसे राज्य में तो शादी के लिए गरीब लड़कियां दूसरे राज्यों से लाई जाती हैं।
मेरे सवाल के जवाब में संजय कहते हैं, ‘आपकी बात से इनकार नहीं कर रहा। हमारे यहां थोड़ी-बहुत जागरूकता बढ़ी है। मैं पैसे देकर लड़की लाना सही नहीं मानता। ऐसे में जो लड़की वाले मुझे देखने आते वो सबसे पहले रोजगार का पूछते थे। जब पता चलता मैं घर बैठा हूं तो हीन भावना से देखते। कई तो ऐसे ही उठ कर चले जाते थे।’
यहीं मेरी मुलाकात सुनील से होती है। वो संजय के साथ स्कूल में पढ़ते थे। सुनील की शादी में संजय शामिल नहीं हुए थे। उस दिन वो सारा दिन रोते रहे। संजय ने बारात वाले दिन सुनील से साफ कह दिया था कि या तो तू अपनी शादी मत कर या पहले मेरी करवा दे।
सुनील कहते हैं, ‘मैं अपने दोस्त को भरोसा देता था कि तेरी शादी भी कहीं न कहीं करवाएंगे। कई रिश्ते आए, कभी गोत्र नहीं मिले या कभी बात नहीं बनीं। इस कारण से मुझे भी काफी दुख हुआ।
संजय के साथ उनके बेस्ट फ्रेंड सुनील बैठे हैं। सुनील ने दोस्त की शादी का खूब प्रयास किया। आटा-साटा की भी कोशिश की, उसमें भी बात नहीं बनी।
सुनील कहते हैं, ‘संजय की शादी के लिए मध्य प्रदेश के शिवपुरी में लड़की देखने भी गए थे। मैंने उसे समझाया कि बाहर से लड़की ले आते हैं। तू बिरादरी की लड़की से शादी करने की जिद छोड़ दे।
मेरे कहने पर वो ओडिशा भी गया। वहां पूजा नाम की एक लड़की के पिता ने हामी भी भर दी थी। लेन-देन को लेकर भी सहमति बन गई थी। वो लड़की ईसाई थी, हम उसके लिए भी तैयार हो गए, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वो शादी भी नहीं हो पाई। उस दिन के बाद से संजय ने तय किया कि अब वो कभी शादी नहीं करेगा।’
जींद में कुंवारे लड़के राजनीतिक मुद्दा भी रहे हैं। अविवाहित पुरुषों ने कई बार चुनावों के दौरान प्रदर्शन किया है। शादी करवाने की मांग नेताओं के सामने रखी है। सुनील को लगता है कि ऐसे पुरुषों की भावनाओं के साथ नेता खेलते हैं। वे उन्हें वोट बैंक के तौर पर देखते हैं।
CM मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि अविवाहित पुरुषों को पेंशन देंगे। आपको नहीं लगता कि पेंशन की जरूरत ही क्यों पड़ती अगर इसके बदले उनके पास रोजगार होता।’
इस बीच संजय बोल पड़ते हैं- ‘सरकार ने हमेशा ही हमारे जैसे लोगों से वादे किए हैं। एक नेता ओम प्रकाश धनकड़ ने वादा किया था कि हम ट्रेन भरकर औरतें लाएंगे, जिसे जो पसंद आएगी उसे ब्याहकर वो ले जाएगा।
मेरे जैसे लड़के बिहार से आने वाली उस ट्रेन का इंतजार करते-करते बूढ़े हो गए। न वो ट्रेन आई, न लड़की मिली। वो हमसे झूठ बोलते हैं और वोट ले जाते हैं।’जींद में संजय जैसी कहानी कई लोगों की है।
माजरा खाप के मीडिया प्रभारी सुरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘ सेक्स रेश्यो में सुधार की बड़ी वजह कन्या भ्रूण हत्या पर सख्ती और खाप पंचायतों का बेटी बचाओ अभियान भी है। खापों के प्रयास से लोगों में जागरूकता फैला रही हैं। इसका सकारात्मक असर दिख भी रहा है। अब युवाओं को शादी के लिए लड़कियां अपने ही क्षेत्र में मिल पा रही हैं।
यहां खेत-जमीन भी शादी न हो पाने के पीछे की वजह है। हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर हैं। लोग बेटी का रिश्ता करते समय जमीन देखते हैं। जिन परिवारों में जमीन कम है, वहां अब भी लड़कों की शादी में दिक्कत आ रही है।’
बीवीपुर गांव के पूर्व सरपंच सुनील जागलान ने सरपंच रहते हुए अविवाहित लोगों की आवाज उठाने के लिए एक संगठन बनाया था। जागलान मानते हैं कि पेंशन से अविवाहित लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।
सुनील जागलान के मुताबिक उन्होंने ही हरियाणा में एक संगठन बनाकर अविवाहित लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए पेंशन की मांग की थी। ये ऐसे लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने का काम करेगी।
जींद के निरजन गांव में मेरी मुलाकात 55 साल के राजेश से हुई। उनकी भी बेरोजगारी और जमीन न होने की वजह से शादी नहीं हो सकी थी।
राजेश के परिवार ने शादी करवाने की भरसक कोशिश की। उस दौर में लड़कों के मुकाबले लड़कियां बहुत कम थीं। राजेश को लगता है यही उनकी शादी न होने की सबसे बड़ी वजह रही।
राजेश ने अपनी पूरी जिंदगी अकेले काट ली है। जिंदगी के कई रंग ऐसे है जो उन्होंने नहीं देखे। संजय की तरह ही उन्होंने भी एक लंबा अरसा दुख और डिप्रेशन में बिताया। शादी न हो सकने के दुख से अब भी वो पूरी तरह बाहर नहीं निकल सके हैं।
मैं उनसे कई तरह के सवाल करती हूं। जवाब में बस खामोशी ही मिलती है। राजेश जैसों के लिए इस विषय पर बात करना तकलीफ के अलावा कुछ नहीं देता।
शादी न होने को यहां एक कलंक के रूप में देखा जाता है। शारीरिक या मानसिक सेहत में कोई कमी न होने के बावजूद राजेश की शादी नहीं हो सकी।
वो कहते हैं, ‘परिवार ने हमेशा दबाव बनाया, लोग भी कहते हैं कि शादी क्यों नहीं की, पूरी जिंदगी ताने सुनते हुए ही बीत गई। जान-पहचान के लोगों ने शादी करवाने की बहुत कोशिश की, हमने खुद भी प्रयास किए। हरियाणा के बाहर जाकर भी दुल्हन तलाशी, लेकिन कुछ नहीं हो सका।’
राजेश की शादी न होने की वजह बेरोजगारी और जमीन न होना है। एक उम्र के बाद उन्होंने मान लिया कि अब शादी नहीं होगी। इसके बाद लड़की ढूंढने के प्रयास भी बंद कर दिए।
राजेश की उम्र के लोगों के बच्चों के भी अब बच्चे हो गए हैं। कहते हैं, ‘मेरे साथ के लोग ताना मारते हैं कि देखो हमारे बच्चे हो गए, बच्चों की भी शादी हो गई, तुम ऐसे ही रह गए। हां मैं ऐसे ही रह गया।
इसके साथ जब लोग कहते हैं कि अब तक का टाइम तो कट गया, आगे कैसे कटेगा। ये सोचकर सबसे ज्यादा दुख होता है। बस यही सोचता हूं कि मां नहीं रही तो मुझे रोटी कौन खिलाएगा?’
राजेश अपनी बूढ़ी मां के साथ अकेले रहते हैं। उनकी मां के जीवन का सबसे बड़ा दुख यही है कि बेटे के घर में पत्नी नहीं आ सकी।
राजेश की दोस्ती उन जैसे ही अविवाहित पुरुषों से है जिनकी शादी नहीं हुई। वो कहते हैं, ‘मेरी उम्र के सात-आठ लोग मेरे गांव में हैं, जिनकी शादी नहीं हुई। हम आपस में मिलते हैं तो हंसी-मजाक कर लेते हैं।’
जींद में संजय और राजेश के बाद गुरुग्राम के बासलाम्बी गांव में मेरी मुलाकात लगभग 80 साल के ईश्वर सिंह से हुई। घर में उनका एक अलग कमरा है। सामने हनुमान जी की तस्वीर लगी है। बगल में जवानी के दिनों की उनकी सेना की नौकरी की तस्वीर है, जिसमें उनका गोरा रंग और चेहरे की रौनक साफ नजर आ रही है। सीने पर लगे रिबन उनकी बहादुरी की कहानी सुना रहे हैं।
छह भाइयों में सबसे बड़े ईश्वर सिंह के पास नौकरी और जमीन दोनों थी। कई रिश्ते भी आए, लेकिन कम उम्र में पिता की मौत के बाद उन्होंने अपने बाकी भाइयों की जिम्मेदारी उठा ली और फिर उन्हें पढ़ाने-लिखाने में ही अपना जीवन बिता दिया।
ईश्वर सिंह ने खुद शादी न करने का फैसला किया था। अब ख्याल आता है कि अपना परिवार बसाया होता तो शायद जिंदगी बेहतर होती।
एक कमरे में वो अकेले रहते हैं। अपना हुक्का खुद भरते हैं और कई बार अपने आप से ही बातें करते रहते हैं। उनके भाइयों के भरे-पूरे परिवार हैं। बेटा-बेटी, पोता-पोती हैं। वो सब उन्हें बाबा-दादा कहते हैं।
जिंदगी कैसी चल रही है, इस सवाल पर वो कहते हैं, ‘रोटी खा लेता हूं, यही जिंदगी है।’
शादी न होने पर उन्हें भी ताने मारे गए और मजाक किया गया, लेकिन उन्होंने कभी कोई बात दिल से नहीं लगाई।
CRPF में इंस्पेक्टर पद से रिटायर्ड उनके छोटे भाई कहते हैं, ‘हमें पढ़ाया-लिखाया, मकान बनाया, शादी की, सभी की जिम्मेदारी ईश्वर भाई ने उठाई। जब मैं छठी क्लास में था तब पिता गुजर गए थे, इन्होंने ही पिता का कर्तव्य निभाया, कभी अपने बारे में नहीं सोचा।’
ईश्वर सिंह कहते हैं, ‘कई बार महसूस होता है कि अपना घर-परिवार होता तो अच्छा रहता। बुढ़ापे में मैं इतना अकेला नहीं होता। पेंशन मिल रही है। दूध-दही खरीद लेता हूं। खाने की कमी नहीं है, लेकिन अकेलापन काटना मुश्किल है।’
हरियाणा में कुल कितने अविवाहित पुरुष हैं, इसका सटीक आंकड़ा नहीं है। ये इस क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही मुद्दा बन गया है। तभी तो यहां के लोग दूसरों राज्यों से लड़कियां शादी के लिए खरीदकर लाने को बुरा नहीं मानते।
दूसरी तरफ हरियाणा के नेता हर बार चुनाव में वोट के बदले अविवाहित पुरुषों से शादी करवाने का वादा करने से नहीं चूकते। पेंशन देने का निर्णय सही है या गलत, सबकी इस पर अलग राय होगी, लेकिन यह बात सच है कि कब ये मुद्दा गंभीर बन गया, किसी को पता ही नहीं चला।