Site icon अग्नि आलोक

मानसिक अनुकूलन (Brainwash)

Share

 मीना राजपूत

      _मानसिक अनुकूलन (brainwash) से मनुष्य के अमानवीकरण  का एक संपूर्ण  तंत्र है। किन्तु इन्सान तो इन्सान, कभी-कभी, किसी-किसी में ही सही, वह जग ही जाता है।_

      *बख़्तियार अली की एक कुर्द कहानी से :*

       “बग़ावत के एक साल तक मैं क़त्ल व विनाश के महकमे का एक सदस्य था. एक रोज़ उन्होंने हमें औरतों की एक लंबी लिस्ट थमा दी जिन्हें हमें एक के बाद एक उठाना (क़त्ल करना) था. मैंने अभी तक किसी औरत का क़त्ल नहीं किया था. एक शाम उन्होंने मुझे एक ख़ूबसूरत औरत को क़त्ल करने के लिए भेजा, जो अपने नौजवान शौहर के साथ एक गंदे-से घर में रहती थी.

        _पार्टी में कई साल के अनुभवों ने मुझे सिखा दिया था कि मैं अपने शिकार के बारे में ज़्यादा जानने की कोशिश न करूँ. ऐसा नहीं कि मुझमें जिज्ञासा नहीं थी. लेकिन अनुभवों से मैं जान गया था कि शिकार के बारे में ज़्यादा जानकारी हाथों में कँपकँपी तारी कर देती है, हिचकिचाने पर मजबूर कर देती है, और फिर हम अपना शिकार नहीं कर पाते_.

      मैं जानता था कि अगर मैं उसका क़त्ल नहीं करूँगा तब भी जाफ़री या फ़ाजिल कन्दील में से कोई एक यह काम कर देगा. 

हममें से कुछ थे जो मसले की गहराई तक जाना चाहते थे. वे क़त्ल व विनाश का कारण जानना चाहते थे. वे ख़ुद फ़ैसला करके जुर्म के एहसास से परे क़त्ल करना चाहते थे. उनमें से कइयों ने अँधेरी रातों में दोग़ले और संदेहास्पद हादसों में अपनी जानें गँवा दी थीं. अगर किसी रोज़ तुम क़ातिल बन जाओ, तो अपने शिकार के ताल्लुक़ से ज़्यादा जानकारियाँ लेने की कोशिश न करो.

      ज़्यादा जानकारियाँ काम को मुश्किल ही नहीं बनातीं, उनके नतीजे और भी भयानक होते हैं. 

         उस शाम जब मैं उस ख़ूबसूरत ख़ातून को क़त्ल करने गया, मेरा पूरा जिस्म इस तरह काँप रहा था जैसे मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी का क़त्ल ही न किया हो. मैंने उसे ग़ौर से देखा. वो एक लंबी, रौबदार और ख़ूबसूरत ख़ातून थी. जब मैंने उसके घर में क़दम रखा, वो नायलोन की रस्सी पर धुले हुए कपड़े लटका रही थी.

        उसने पतला कुर्द ड्रेस पहना हुआ था. मैं आसानी से उसके नीचे छुपी हुई काली पट्टी देख सकता था. मैं अपनी ज़िंदगी में कभी अमली तौर पर किसी औरत के ख़याल में नहीं खोया था. फिर भी उस तरह किसी ख़ातून को मारना मुझे मुनासिब नहीं लग रहा था.

मैंने देखा कि एक छोटा बच्चा अपने हाथों में ख़ाली प्याला लिए सीढ़ियों पर बैठा रो रहा था.

       जैसे ही मैंने पिस्तौल बाहर निकाली और ख़ातून पर निशाना लगाया, चराग़ बुझने या दिल धड़कने से भी छोटे लम्हे के लिए मैं ज़िंदगी में पहली बार हिचकिचाया…..शायद मैं उसका क़त्ल न भी कर पाता, लेकिन बदक़िस्मती से उसका शौहर कमरे से बाहर आ गया, और उसने मेरे हाथों में पिस्तौल देख ली.

        उस आदमी के ख़ौफ़ज़दा वुजूद, गले में फँसी हुई चीख़ और चेहरे पर बिखरी हुई वहशत ने मेरी कमज़ोरी को बाहर निकाल दिया. मैंने फ़ौरन ट्रिगर दबा दिया और उस ख़ूबसूरत औरत के दिल में गोली उतार दी. ख़ून के छींटे चारों तरफ़ फैल गए.

       हालाँकि मैं दस मीटर की दूरी पर था, मैं भी शराबोर हो गया. औरत नीचे गिर गई और मैं हैरत व निराशा की तस्वीर बना, उसी जगह स्थिर हो गया. 

उस दिन से पहले कभी मुझ पर ख़ून का एक क़तरा भी नहीं गिरा था. जाफ़री हमेशा अपने-आपको ख़ून में रँग लिया करता था. वो अपना रूमाल ख़ून में भिगोकर बतौर यादगार अपने पास रखा करता था. लेकिन मैं हमेशा अपने शिकार से इतना फ़ासला बनाए रखता था कि ख़ून के छींटे मुझ तक न आएँ. मैं फ़ौरन वह जगह छोड़ दिया करता था. आँधी की तरह फ़रार होकर ग़ायब हो जाता था….. 

       लेकिन उस दिन यूँ लगा जैसे मैं किसी सम्मोहन की जकड़ में हूँ और किसी ने मेरे पाँव पकड़ लिए हैं. मैं बहुत देर तक वहाँ से हिला ही नहीं. गोलियों की आवाज़ बहरा कर देने की हद तक तेज़ थी. बारूद की बू से पूरा अहाता भर चुका था.

        मैंने उसके शौहर को देखा, जो रोते हुए मेरी ओर बढ़ रहा था. मैंने सीढ़ियों के पास उसे चीखते हुए देखा. मैं धीरे-धीरे उस औरत के क़रीब गया. वो अपने ही ख़ून में तर थी. मैंने उसकी बड़ी-बड़ी, हरी-हरी आँखें देखीं. उसकी ख़ाली और बेसवाल निगाहें मुझ पर केंद्रित थीं.

ख़ून में सराबोर मैं वहाँ से निकल आया. गेट के बाहर मैंने जाफ़री को देखा. जब उसने मुझे दूसरी तरफ़ खींचा, मैं चीख़ रहा था. 

      वो पार्टी के लिए काम करने का मेरा आख़िरी दिन था. उसी शाम मैंने हर चीज़ छोड़ दी और खेल खेलना बंद कर दिया. 

        _मेरे जाने के बाद जाफ़री, तिन्ची, दनसाज़ और हाजी कोसर ने हर काम किया. एक साल से कम समय में उन्होंने पूरे मुल्क में बेशुमार औरतों का क़त्ल  किया….जब मैंने जाफ़री को दोबारा देखा तो महसूस किया कि दुनिया मुकम्मल तौर पर बदल चुकी है, वक़्त अपनी गर्दिश पर लौट चुका है, लेकिन जाफ़री में रत्ती भर भी तब्दीली नहीं आई है.”_

Exit mobile version