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चीन के साथ सीमा विवाद का हल सैनिक अभियान हो ही नहीं सकता

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प्रवीण मल्होत्रा

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने देश का नवीन “स्टेण्डर्ड नक्शा” जारी कर भारत के साथ ऐतिहासिक सीमा विवाद को उस समय पुनः उभार दिया है जब अगले महीने ही 9 और 10 तारीख को भारत में G -20 देशों का महासम्मेलन होने जा रहा है. इस नक्शे में चीन ने समूचे अरुणाचल प्रदेश सहित लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र को अपना भूभाग दर्शाया है.

चीन ने हमारी हजारों वर्गमील जमीन पर पिछली सदी के 60 के दशक से ही कब्जा कर रखा है. मोदी शासन में इसमें वृद्धि ही हुई है. भारत की इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस 2020 तक गलवान सेक्टर में जहां तक गश्त (पेट्रोलिंग) करती थी अब वहां नहीं जा सकती है. भारत सरकार गलवान घाटी में चीन के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक करने का दुस्साहस नहीं कर सकती है. यही स्थिति पुर्वोत्तर में डोकलाम और अरुणाचल प्रदेश की है. वहां भी चीन ने अतिक्रमण कर रखा है और नए गांव बसा लिए हैं.

 ‘विश्वगुरु ‘ में इतना साहस नहीं है की वह चीन के राष्ट्रपति शी जिन फिंग से दो टुक बात करें कि या तो हमारी जमीन खाली करो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक के लिए तैयार रहो. यह सम्भव नहीं है. हम अपने से एक चौथाई पाकिस्तान के अधिकृत POK में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक कर सकते हैं, म्यांमार की सहमति से वहां भी सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं, लेकिन चीन के खिलाफ कोई एक्शन लेने का दुस्साहस नहीं कर सकते.

बस एक ही तरीका है कि कूटनीतिक रूप से विरोध प्रदर्शित कर औपचारिकता निभायी जाती रहे और LAC पर सैन्य कमाण्डरों की नियमित मीटिंग होती रहे ताकि चीन और अधिक क्षेत्रों पर कब्जा नहीं कर पाए. 19 दौर की मेराथन मीटिंगों के बाद दोनों पक्षो ने सीमा विवाद को हल करने के क्षेत्र में आंशिक प्रगति की है और LAC पर एक बफर गलियारा बनाने की दिशा में सहमति बन रही है. 

चीन के साथ सीमा विवाद का हल सैनिक अभियान हो ही नहीं सकता क्योंकि वह आर्थिक और सैन्य दृष्टि से हमसे चार गुना अधिक शक्तिशाली है. यह बात हमारे विदेशमंत्री एस. जयशंकर भी स्वीकार कर चुके हैं. मोदीजी राजनयिक कारणों से ही चीन का नाम अपनी जुबान पर नहीं लेते हैं ताकि बातचीत का रास्ता खुला रहे. संसद या चुनावी रैली में चीन को कड़ा जवाब देने से वे बचते हैं क्योंकि इससे द्विपक्षीय सम्बन्धों में और अधिक तल्खी आ जायेगी. इसलिये चीन के भारत विरोधी कदमों का औपचारिक विरोध विदेश मंत्री स्तर पर या विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के माध्यम से दर्ज कराया जाता है. यही सही तरीका है.

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