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*झूठ नहीं बोलता आईना*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी ने मुझे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के कुछ मुख्य बिंदु पढ़ कर सुनाएं।
मैने कारण जानना चाहा तो कहने लगे,साहित्यकार का दायित्व है कि, देश की स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास से आमजन को अवगत कराए।
स्वतंत्रता आंदोलन के अधिकाश पुरोधा पत्रकार भी थे, महामना मदन मोहन मालवीय,माखनलाल चतुर्वेदी,गणेश शंकर विद्यार्थी,
महात्मा गांधी,लोकमान्य तिलक,
लाला लाजपतराय,भगत सिंह,
आदि। इन सभी लोगों ने अपने समाचार पत्र प्रकाशित किए और स्वतंत्रता आंदोलन में विदेशी हुकूमत के विरुद्ध अपनी निर्भीक पत्रकारिता का कर्तव्य भी निभाया है।
विदेशी हुकूमत ने इन्हे जेल भी भेजा लेकिन इन लोगों के हौसले बुलंद ही रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन सक्रिय भूमिका निभाने वालों ने निर्भीक पत्रकारिता के साथ बरतनिया हुकूमत के खिलाफ़ जन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका भी निभाई है।
स्वतंत्रता आंदोलन में विदेशी हुकूमत के विरुद्ध प्रमुख रूप से निम्न नारे बुलंद किए जाते थे।
सुभाष चंद्र बोस का नारा था,तुम मुझे खून दो,मै तुम्हे आजादी दूंगा,
शाहिद भगत सिंह का नारा था,इंकलाब जिंदाबाद,
गांधीजी ने नारा दिया था करो या मरो पंडितमदन मोहन मालवीयजी का नारा था,सत्यमेव जयते रामप्रसाद बिस्मिल का नारा था,सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना जोर कितना बाजुए कातिल में है।
स्वतंत्रता सैनानी रामप्रसा बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की मित्रता गंगा जमुनी तहज़ीब की जीवंत मिसाल है।
स्वतंत्रता आंदोलन में यह भी नारे बुलंद किए जाते थे।
सच कहना अगर बगावत है,तो समझो हम भी बागी है
अहिंसा के पक्षधर निम्न नारा बुलंद करते थे।
हमला चाहे जैसा होगा,हाथ हमारा नहीं उठेगा
श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद (१६ सितम्बर १८९३ — १० अगस्त १९७७ ) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत (विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊँचा रहे हमारा) की रचना के लिये वे इतिहास में सदैव याद किये जायेंगे।
उक्त गीत ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया है।
सीतारामजी का लिखा लेख सुनने के बाद मैने पूछा आज उपर्युक्त विषय पर लिखने का कोई विशेष कारण है?
सीतारामजी ने कहा आज की पत्रकारिता की स्थिति देखते हुए,इतिहास का स्मरण हुआ है।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिक निभाने वालों में जुनून था। आंदोलन में सहभागी नहीं होने वालों की भी संख्या कम नहीं थी।
तिरंगे ध्वज को पांच दशक तक फहराने में संकोच करने वाले भी हैं,जब की तिरंगे की आन-बान-शान के लिए अपनी कुर्बानी देने वाले देश भक्तों की भी लंबी फेरहिस्त है।
अंध श्रद्धा रखने वाले तीन रंगों को अशुभ समझने वालों की भी तादाद हैं।
मुख्य मुद्दा है,पत्रकारिता का महत्व। राजनैतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक,
आर्थिक और गतिविधियों से जनता को अवगत करने का कार्य है,पत्रकारिता।
पत्रकारिता निष्पक्ष और निर्भित्क, होनी चाहिए।
मै ने सीतारामजी से कहा आपके कहने का आशय मैं समझ गया हूं।
सीतारामजी ने कहा पत्रकारिता एक आईना है। आईंना कभी झूठ नहीं बोलता है।
लेकिन आज कुछ आईने चिड़िया घर में रखे आईनों जैसे हैं।
चिड़िया घर में कुछ आईने मनोरंजन के लिए रखे जातें हैं
इन आईनों में सामने खड़े होने पर किसी आईने में व्यक्ति का अपना शरीर बेडौल,किसी में विचित्र चेहरे वाला,किसी भी अत्यधिक मोटा,किसी में,नाटा ऐसे विचित्र आकर,प्रकार का दिखाई देते हैं।
मैने कहा आप क्या कहना चाहते हो मै आपका आशय समझ गया हूं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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