विजय दलाल
*आज सुबह के समाचार पत्रों में सीजेआई का बयान पढ़ा “लंबी कानूनी लड़ाई से त्रस्त हैं लोग”!*
*मुझे बहुत हंसी भी आई और मौजूदा राजनीतिक सत्ता द्वारा लोकतंत्र और संविधान के शनै: शनै: क्षरण करने में सर्वोच्च न्यायालय की सहायक और दोगली भूमिका पर क्षोभ भी हुआ और गुस्सा भी आया।*
*सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अगस्त 2017 के कार्यकाल से शुरू होकर श्रीमान यू यू ललित के अगस्त 2022 तक का 5 वर्षीय काल को जब कभी इतिहास में याद किया जाएगा तब वह सरकार के प्रति पूर्ण समर्पण के काल के रूप में पहचाना जाएगा।*
*या तो फैसले सरकार की हर कारगुजारी के समर्थन में या याचिकाओं की सूनवाई की तारीखें बढ़ा कर मौन समर्थन।*
*नवंबर 2022 से जब से चंद्रचूड़ साहब के पद ग्रहण करने के बाद अभी तक यानी अगस्त 2024 तक के कार्यकाल में भी उसी बीते पांच साल की परंपरा का निर्वाह ही किया गया मगर बहुत चतुराई से।*
*यदि देश की संसद जब जनता के लोकतांत्रिक नागरिक अधिकारों की जानबूझकर अवहेलना या उपेक्षा करे और सारी संवैधानिक संस्थाओं को अपना गुलाम बना लें तब इसको बचाने की जिम्मेदारी संवैधानिक संस्था के रूप में केवल सुप्रीम कोर्ट की ही है।*
*शुरुआत में उम्मीदें जागी थी वो अंततः काफूर हो गई।*
*हर महत्वपूर्ण याचिका के सवाल पर न्यायाधीशों की टिप्पणियां और अभियुक्त पक्ष को नोटिस में पूछे सवालों से ऐसा आभास कि फैसला अभियोजन पक्ष और न्याय के पक्ष में ही आना है मगर फैसला वही ” ढाक के तीन पात”।*
*कुछ फैसले चंडीगढ़ मेयर चुनाव और चुनावी बांड पर सही फैसले लेकिन किसी भी दोषी पक्ष को कोई सजा नहीं? और फैसले का समय ऐसा जिससे सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं।*
*श्रीमान बाकी तो छोड़िए 2024 में मोदी सरकार केवल व केवल*सुप्रीम कोर्ट की मदद से बनी है।*
*चुनाव आयोग द्वारा 2019 के*लोकसभा चुनाव में भी गिनने*वाले और पड़ने वाले वोटों में अंतर वाली एडीआर की याचिका पर 2024 का लोकसभा चुनाव संपन्न हुए भी दो माह बीत गया सुनवाई नहीं?*
*ईवीएम और चुनाव आयोग की धांधली को पकड़ने का एकमात्र उपाय वीवीपेट पर्ची की समानांतर गणना और मिलान उस पर चुनाव आयोग के हर झूठ को मान लेना और चुनाव की घोषणा के समय और आगे सुप्रीम कोर्ट के अवकाश को ध्यान में रख कर जानबूझकर सारी याचिकाएं निरस्त कर चुनाव आयोग को 2024 फिर से मोदी सरकार बनाने में छुट्टे सांड की तरह छोड़ देना लोकतंत्र और संविधान के साथ विश्वासघात के अलावा कुछ भी नहीं है!*
*लेकिन जब तानाशाही से भयभीत विपक्षी पार्टियां अपने अपने अस्तित्व की लड़ाई में ही व्यस्त हो और सबसे महत्वपूर्ण और प्राथमिक सवाल पर केवल शाब्दिक खानापूर्ति तक सीमित हो तब लोकतंत्र, संविधान और लोकतांत्रिक परंपराओं को बचाने का जिम्मा जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनता के एक सतर्क और सजग वर्ग ने उठा रखा है और वह संघर्ष कर रहा है ।*
*अपने अनुभवों से न्यायालय के रुख और चुनाव आयोग की बेशर्मी को देख कर इस बार वोट फॉर डेमोक्रेसी और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स संस्था ने प्रमाणों का रिपोर्ट के रूप में दस्तावेजीकरण कर लिया है। पिछली बार की तरह सुप्रीम कोर्ट के पास कोई बहाना न हो और न ही चुनाव आयोग इसे कोर्ट में नकार सके।*
*साथ ही इनकी रिपोर्ट ने यह मामला जनता की अदालत में भी रख दिया है।*
*देखते हैं सरकार और उसका (आयोग) मंत्रालय कैसे अपना बचाव करता है और सुप्रीम कोर्ट कैसे उसे बचाता है ?*