Site icon अग्नि आलोक

मोदी के पास वक्त है, बाजी पलट सकती है

Share

नीलांजन मुखोपाध्याय


हाल में आए दो सर्वे बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रूवल रेटिंग घटी है। सर्वे में मोदी विरोधियों के खुश होने का सबब है तो समर्थकों के भी संतुष्ट होने की वजह है। मोदी के आलोचकों का इससे हौसला बढ़ेगा। वे इस बात से खुश होंगे कि केंद्र सरकार का अभी जो दबदबा है, उस पर लगाम लग रही है। इससे उन्हें 2024 में सरकार बदलने का रास्ता बनता हुआ दिख रहा है।

मोदी की रेटिंग गिरी
दूसरी ओर, मोदी समर्थकों को भी इन सर्वे से राहत मिली होगी। वे इस बात से खुश होंगे कि प्रधानमंत्री को लोकप्रियता में जितनी गिरावट की आशंका थी, उतनी नहीं आई है। मोदी की अप्रूवल रेटिंग अभी भी 63 फीसदी है और यह 50 फीसदी से नीचे नहीं गई है। अगर रेटिंग 50 फीसदी से कम हुई होती तो यह प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के लिए खतरे की घंटी होती। यह सर्वे अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय डेटा इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट ने किया है।

एक भारतीय एजेंसी सी-वोटर का भी सर्वे आया है, जो बीजेपी और प्रधानमंत्री की परेशानी बढ़ाने वाला है। सी-वोटर ने जो डेटा पेश किए हैं, उसमें प्रधानमंत्री के परफॉरमेंस से बेहद संतुष्ट लोगों का प्रतिशत गिरकर 37 पर आ गया है, जो एक साल पहले 65 फीसदी था। एजेंसी ने दावा किया है कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार सरकार के कामकाज से संतुष्ट लोगों की संख्या असंतुष्ट लोगों के मुकाबले कम है।

यह बदलाव अब तक सबसे बड़ी चुनौती के बरक्स हुआ है, जिसमें मोदी और उनकी सरकार का प्रदर्शन उम्मीद से कमतर रहा। पहली बात तो यह कि सरकार कोरोना महामारी की दूसरी लहर का अंदाजा नहीं लगा पाई। दूसरे, वह इस संकट का सामना करने के लिए तैयार नहीं दिखी। इसके बावजूद न ही सर्वे के नतीजों की पूरी तरह अनदेखी की जा सकती है और ना ही उन्हें आने वाले कुछ साल का पॉलिटिकल ट्रेंड माना जा सकता है।

इसकी कई वजहें हैं। पहली, ये नतीजे लो क्वॉलिटी सर्वे पर आधारित हैं क्योंकि महामारी के इस दौर में लोगों से क्वॉलिटी रिएक्शन नहीं मिल सकता। मुमकिन है कि लोगों से रैंडम फोनकॉल करके उनकी राय ली गई हो। या पहले से तैयार डेटाबेस का इस्तेमाल सर्वे के लिए किया गया हो। यह भी हो सकता है कि सैंपल साइज बहुत छोटा हो या सर्वे करने वाले लोगों का भरोसा हासिल न कर पाए हों। ऐसे में प्रधानमंत्री के समर्थन या विरोध पर लोगों ने खुलकर अपनी राय नहीं रखी होगी।

दूसरी, मुमकिन है कि दूसरी लहर का अंदाजा न लगा पाने की प्रशासनिक गलती और समय से पहले कोरोना पर जीत के दावे के कारण कई लोगों का मोदी से मोहभंग हुआ हो। लोग मेडिकल सिस्टम के फेल होने, ऑक्सिजन और अस्पताल में बेड की कमी के कारण भी नाराज होंगे, जिसके लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन इस वजह से केंद्र के निशाने पर बीजेपी शासित राज्य भी आ गए।

मोदी की छवि योग्य प्रशासक की रही है, इन घटनाओं के बाद हो सकता है कि लोग इस दावे पर संदेह जताएं। इसके बावजूद वे मोदी की निजी लोकप्रियता और हिंदुत्व की राजनीति के कारण उनके साथ खड़े हो सकते हैं। कहते हैं कि वक्त पुराने से पुराने घाव भी भर देता है। इसलिए संभव है कि महामारी पर काबू पाए जाने और सरकार के टीकाकरण अभियान को ठीक से पूरा करने के बाद लोग दूसरी लहर की दुश्वारियों और उसके लिए सरकार की जवाबदेही को भूल जाएं। यह बात याद रखनी होगी कि मोदी के दूसरे कार्यकाल के पूरा होने में अभी तीन साल का वक्त बचा है और अगला लोकसभा चुनाव 2024 में होगा। यह भी सच है कि अगले साल की शुरुआत में बीजेपी शासित गोवा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं। इनके अलावा पंजाब में भी वोटिंग होनी है, जहां बीजेपी अपने सहयोगी अकाली दल से अलग हो चुकी है। ऐसा हो सकता है कि खराब प्रदर्शन के कारण तीनों राज्यों में बीजेपी चुनाव हार जाए। या तीनों में ना सही तो एक या दो जगह उसकी हार हो सकती है। आपको यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यूपी चुनाव हारने से मोदी को बड़ा झटका नहीं लगेगा। अगर ऐसा होता है तो उससे महंत आदित्यनाथ भी कमजोर होंगे, जो भविष्य में मोदी के लिए चुनौती बन सकते हैं।

आम चुनाव काफी दूर
कुल मिलाकर, मोदी के पास पहले जितनी अप्रूवल रेटिंग हासिल करने के लिए तीन साल का वक्त है। इसके लिए उन्हें समझदारी से कदम उठाना होगा। ऐसे उपाय करने होंगे, जिससे लोगों की आर्थिक मुश्किलें कम हों। सरकारी खजाने की खराब हालत को देखते हुए यह काम आसान नहीं होगा। उन्हें ऐसे उपाय भी करने होंगे, जिससे लोगों को फिर से नौकरी मिले। सरकार को आम आदमी के हाथ में पैसे बढ़ाने होंगे। पिछले साल का आर्थिक पैकेज काफी पीछे छूट गया है और उससे अर्थव्यवस्था को बहुत मदद भी नहीं मिली।

आर्थिक चुनौती के अलावा मोदी को उन वोटरों को फिर से बीजेपी के साथ लाना होगा, जिन्होंने प्रशासनिक नाकामी के कारण पार्टी से दूरी बना ली है। हिंदुत्व एजेंडा की कुछ बातों को छोड़ दें तो मोदी के पास इस दौरान गिनाने को बहुत उपलब्धियां नहीं हैं। अगले 6 महीने में वह दूसरे कार्यकाल का आधा हिस्सा पूरा कर चुके होंगे। इसके साथ अगले चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी। यह भी सच है कि मोदी भले ही आज दबाव में हैं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। उनके पास अपनी रेटिंग को फिर से ठीक करने के लिए ज्यादा वक्त भी नहीं है।

Exit mobile version