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मोदी श्रीलंका, मालद्वीव, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और अब बांग्लादेश से भी रिश्ते बिगाड़ की ओर ले जा रहे हैं

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मोदी सरकार और निर्मला सीतारमण की लाख गुहार लगाने के बावजूद देश का कॉर्पोरेट अपने मुनाफे को देश में लगाने को तैयार ही नहीं है, बल्कि बड़ी संख्या में जो नौकरियां भी थीं, उससे छंटनी कर रहा है। मजबूरन मोदी सरकार चीनी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए रेड कारपेट वेलकम कर रही है, लेकिन हम हैं कि श्रीलंका, मालद्वीव, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और अब बांग्लादेश से भी रिश्ते बिगाड़ की ओर ले जा रहे हैं।यूक्रेन की ऐतिहासिक यात्रा से भारत को नफा की जगह नुकसान ही हो सकता है, लेकिन हमार्री विदेश नीति की बलिहारी जो पहले पीएम मोदी की रूस यात्रा कराकर अमेरिका और पश्चिमी देशों को नाराज कराती है, फिर उसके कुप्रभाव को खत्म करने के लिए एक महीने बाद यूक्रेन का दौरा करने की नौबत आन पड़ती है। जबकि पड़ोस में भारत विरोधी शक्तियाँ तेजी से माहौल को बिगाड़ रही हैं, जिसे हर समझदार भारतीय महसूस कर सकता है।

दो दिन पहले बांग्लादेश में अचानक से भारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। असल में पिछले कुछ दिनों से त्रिपुरा में बाढ़ की स्थिति बेहद भयावह बनी हुई थी। 22 घंटे पहले की स्थिति यह थी कि 23 लोगों के मारे जाने की सूचना थी। 23,000 लोग राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं और लगभग 17 लाख त्रिपुरावासी बाढ़ से पीड़ित बताये जा रहे हैं। एनडीआरएफ की टीम राहत और बचाव कार्य में लगी हुई है।

NDRF के DIG मोहसेन शाहिदी के अनुसार, “21-22 अगस्त को त्रिपुरा राज्य में भारी वर्षा हुई जिसमें 200 मिमी से अधिक वर्षा हुई है। 23 लोगों के मारे जाने की सूचना है। हजार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं… वर्षा को लेकर 9000 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है…NDRF की कुल 11 टीमें त्रिपुरा में तैनात हैं.. कल रात तक बचाव अभियान चलाया जा रहा था। तकरीबन 900 लोगों को एयरलिफ्ट किया जा चुका है। राहत सामग्री और खाद्य सामग्री को भी उन क्षेत्रों तक पहुंचाया जा रहा है जहां एयरलिफ्ट की जरूरत नहीं है लेकिन सामान पहुंचाने की जरूरत है।”

लेकिन देश के सामने सिर्फ बंगाल में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और पीएम नरेंद्र मोदी का यूक्रेन और पोलैंड दौरा और उसकी उपलब्धियों को गिनाने पर देश की मीडिया अपना समय लगा रही है। चलिए, भारत के एक पूर्वोत्तर के राज्य में भयानक बाढ़, वो भी भाजपा शासित राज्य की कुव्यवस्था को दिखाना तो वैसे भी देश की मीडिया के लिए पाप समान है। लेकिन, भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में आये बदलाव के कारण अब स्थिति सामान्य नहीं रह गई है। इस बाढ़ के दूसरे सिरे पर बांग्लादेश है। 22 अगस्त को बांग्लादेश अचानक से जलमग्न हो गया। पूर्वोत्तर बांग्लादेश के शहरों में कमर और गले तक पानी-पानी हो गया, जिसके लिए वहां की मीडिया और प्रशासन भारत को दोषी करार दे रही हैं।

22 अगस्त को छात्रों की ओर से इसके खिलाफ मार्च भी निकाला गया। कई बांग्लादेशी नागरिकों ने हवाई यात्रा से इस पूरे इलाके का वीडियो भी साझा किया है। बांग्लादेश में नैरेटिव चलाया जा रहा है कि 31 वर्षों बाद भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ बदले की कार्रवाई की है। इतना ही नहीं, बांग्लादेश में दक्षिणपंथी शक्तियों का बोलबाला लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी तमाम मिसालें देखने को मिल रही हैं। इसमें से भारत-बांग्लादेश व्यापार में बांग्लादेश को घाटे की स्थिति में दिखाए जाने की भावनाओं को भड़काया जा रहा है, जैसे भारत-चीन व्यापार संबंधों में हम अपने यहाँ देखते हैं। वास्तविक स्थिति तो यह है कि बांग्लादेश लगभग तीन तरफ से भारतीय थल सीमा से घिरा है, और व्यपार संबंधों के लिए भारत उसका स्वाभाविक मित्र देश है।

ऐसा नहीं है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश में उठते इस आक्रोश का जवाब नहीं दिया। 22 तारीख को ही विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन करते हुए अपने पत्र में लिखा था कि त्रिपुरा के गुमटी नदी पानी छोड़े जाने के संदर्भ में हमारा कहना है कि पिछले दो दिनों से गुमटी नदी के आसपास के क्षेत्रों में असाधारण बरसात इसके लिए जिम्मेदार है। जिस दमबुर बाँध से पानी छोड़े जाने का आरोप लगाया जा रहा है, वह बांग्लादेश की सीमा से करीब 120 किमी की दूरी पर मात्र 30 मीटर अपस्ट्रीम पर स्थित है। 21 अगस्त को दोपहर 3 बजे तक हमने बांग्लादेश को हालात के बारे में अवगत कराया था, लेकिन बाद में संचार प्रणाली बाधित हो जाने के कारण संचार व्यवस्था बहाल न हो सकी।

खैर, ये सब तो आधिकारिक बयानबाजी है, जिसे दोनों देशों का नेतृत्व आपसी बातचीत से सामान्य कर सकता है। लेकिन उनका क्या करें तो भारत में बांग्लादेशियों को जिहादी बताकर भयानक बाढ़ से अपनी मानसिक जुगुप्सा को शांत करने में लगे हुए हैं?

बांग्लादेश में बाढ़ के हालात पर हिन्दुत्वादी शक्तियों की टिप्पणियां आत्मघाती हैं

उदाहरण के लिए तथागत रॉय का ही उदहारण काफी रहेगा, क्योंकि आप कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। आप पूर्व में त्रिपुरा के राज्यपाल थे। आजकल राईट विंग के विचारक के भूमिका में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। उनका कंपटीशन वर्तमान उपराष्ट्रपति से था, लेकिन बेचारे पीछे रह गये, क्योंकि उनके ट्वीट और बयान बेहद खतरनाक स्तर को भी पार कर जाते थे, जैसे प्रज्ञा ठाकुर या तेलंगाना के विधायक की तरह।

अभी उन्होंने सोशल मीडिया पर एक ट्वीट साझा किया है कि एक सप्ताह पहले जो बांगलादेशी भारत की सेवेन सिस्टर पर कब्जा करने का दावा कर रहे थे, आज बाढ़ में उनकी हालत चींटियों सरीखी हो रखी है। आज बांग्लादेशियों की हालत यह हो चुकी है कि वे इंडिया से अपने बाँध का पानी न खोलने की अपील कर रहे हैं। उनका यह ट्वीट भारतीय विदेश विभाग की सफाई से जरा भी मेल नहीं खाता है। क्या भारतीय प्रशासन को तथागत रॉय जैसे लोगों पर भारत के खिलाफ भावनाओं को और भड़काने के लिए कार्यवाही छोड़िये, डांट-डपट भी नहीं लगाई जा सकती? रॉय कोई आम ट्रोल नहीं हैं, बल्कि राज्यपाल रह चुके हैं, और अभी भी उनकी हसरत बहुत ऊंचाइयों को छूने की बची हुई है।

विवाद का मुद्दा यह है कि त्रिपुरा और अन्य राज्यों में भारी बारिश के कारण बाढ़ और कई लोगों की मौत हो चुकी है। बांग्लादेश का आरोप है कि बिना पूर्व सूचना दिए ही बाढ़ का पानी भारत ने छोड़ दिया है, लेकिन भारत की ओर से कहा जा रहा है कि जलस्तर अचानक से इतनी तेजी से बढ़ गया कि गेट खोले बिना ही आस पास के क्षेत्रों से इतना पानी बहा कि बांग्लादेश जलमग्न हो गया। दूसरा, बांग्लादेश कह रहा है कि भारत बांग्लादेश को करीब 25 बिलियन डॉलर का माल बेचता है, और मुनाफा कमाता है। बायकाट इंडिया के नारे लगाये जा रहे हैं, जो कि बिल्कुल भी सही स्थिति नहीं है।

हर बड़े पड़ोसी मुल्क की यह जिम्मेदारी होती है कि वह अपने से छोटे पड़ोसी मुल्कों को एक धागे में पिरो कर रखे और उसके बल पर एक क्षेत्रीय शक्ति बनने के अपने सपने को भी पूरा कर सकता है। लेकिन भारत में राइट विंगर बांग्लादेश के मौजूदा हालात पर खुशियाँ मनायेगा तो इसमें नुकसान किसका होगा? क्या बांग्लादेश में रह रहे हिंदू इससे लाभान्वित होंगे? पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ होने और भारत में शरण लेने से वैसे ही मौजूदा बंगलादेशी दक्षिणपंथी भारत से नाराज हैं। बांग्लादेश ने आधिकारिक तौर पर शेख हसीना को स्वदेश भिजवाने के लिए भारत सरकार को कह दिया है। उनका डिप्लोमैटिक पासपोर्ट रद्द कर दिया गया है।

शेख हसीना पर भारत को विचार करना होगा

शेख हसीना यदि, भारत की जगह यूरोप या अमेरिका जैसे सुदूर देश में रह रही होतीं, तो उनके देश के लोगों का गुस्सा इतना अधिक न उफनता। लेकिन भारत-बांग्लादेश की पारंपरिक दोस्ती की बुनियाद यदि बांग्लादेश और भारत की जनता न होकर दो राष्ट्राध्यक्ष या कॉर्पोरेट हो जायें, तो मामला भारत के विरुद्ध जा सकता है। निश्चित रूप से विदेश मंत्रालय इस विपदा से निपटने के उपाय तलाश रहा होगा। लेकिन भारत में भी तो वैसे ही बहुसंख्यकवादी विचारधारा का आधिपत्य है, जैसा इस महीने से बांग्लादेश में हो गया है।

अभी तक भारत में धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों के ऊपर होने वाले अत्याचार को वहां का शासक वर्ग चेक करने में कामयाब रहता था, लेकिन आज यदि हमारे यहाँ साइबर सेल और तथागत रॉय जैसे लोग अपनी दिमागी खुजली को शांत करने के लिए जितना तूफ़ान मचाएंगे, उसका सबसे बुरा असर तो बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यकों अर्थात हिन्दुओं पर होगा। भारत कोशिश करे तो आसानी से उनके लिए यूरोप या दक्षिणी अमेरिका में सुरक्षित ठिकाना तलाश सकता है।

इस साधारण सी बात को समझने के लिए कॉमन सेन्स का होना बेहद जरुरी है, लेकिन आजकल नैरेटिव और काउंटर-नैरेटिव में घिरा हम सबका दिमाग कुंद कर दिया गया है। आसियान देशों का उदाहरण आज पूरी दुनिया देख रही है। मात्र दो दशक के भीतर पांच देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर और फिलीपींस) ने जितनी प्रगति आपस में मिलकर की है, उतनी समूचा यूरोप 2010 से 2020 के बीच नहीं कर सका।

आज इस संगठन की सफलता ने 5 और पड़ोसी देशों वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, ब्रूनेई और लाओस को समाहित कर लिया है। इसके उलट, सार्क देशों का संगठन का नेतृत्व भारत के पास था। 2015 से हमने सार्क संगठन को लगभग उपेक्षित छोड़ दिया था, क्योंकि हमें दिखाया गया कि हम तो विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर हैं। आज सारे सार्क देश बिखर चुके हैं, किसी को भी बिग ब्रदर से उम्मीद नहीं रही। ये किसी छोटे देशों ने खुद नहीं किया है, इसे कोई भी स्वंय देख सकता है।

अभी भी समय है। हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां अब टॉप कॉर्पोरेट एक दूसरे के जिस्म को नोचने की तैयारी में जुट चुके हैं। अनिल अंबानी का समय खत्म हुआ, उसे कल दूध में मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जा चुका है। रोजगार और अपने विकास की बात तो भूल ही जाइये, आपका रोजागर और विकास तो तब होगा जब भारत सरकार की नीतियां ठीक उलट दिशा में काम करने के लिए बनाई जाएँगी, जिसके बारे में ठोस रूप से भाजपा छोड़िये, कोई भी दल स्पष्ट आर्थिक नीति पेश करने की स्थिति में नहीं खड़ा है, जिसके पीछे देश गोलबंद हो। मनमोहन सिंह की नवउदारवादी अर्थनीति का सार ही यही था कि कॉर्पोरेट का विकास होगा तो रिस-रिसकर वह नीचे तक अपने आप आम लोगों तक पहुंचेगा, जो एक बड़ा छलावा साबित हुआ। मोदी सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में भारी छूट देकर इसमें कील ठोंक थी।

आज स्थिति यह है कि मोदी सरकार और निर्मला सीतारमण की लाख गुहार लगाने के बावजूद देश का कॉर्पोरेट अपने मुनाफे को देश में लगाने को तैयार ही नहीं है, बल्कि बड़ी संख्या में जो नौकरियां भी थीं, उससे छंटनी कर रहा है। मजबूरन मोदी सरकार चीनी कंपनियों को भारत में निवेश के लिए रेड कारपेट वेलकम कर रही है, लेकिन हम हैं कि श्रीलंका, मालद्वीव, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और अब बांग्लादेश से भी रिश्ते बिगाड़ की ओर ले जा रहे हैं।यूक्रेन की ऐतिहासिक यात्रा से भारत को नफा की जगह नुकसान ही हो सकता है, लेकिन हमार्री विदेश नीति की बलिहारी जो पहले पीएम मोदी की रूस यात्रा कराकर अमेरिका और पश्चिमी देशों को नाराज कराती है, फिर उसके कुप्रभाव को खत्म करने के लिए एक महीने बाद यूक्रेन का दौरा करने की नौबत आन पड़ती है। जबकि पड़ोस में भारत विरोधी शक्तियाँ तेजी से माहौल को बिगाड़ रही हैं, जिसे हर समझदार भारतीय महसूस कर सकता है।

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