पीएम मोदी के भाषण से तो यही समझ आता है कि नेहरू एक अमीर बाप मोतीलाल नेहरू की औलाद थे, नरेंद्र मोदी कहते हैं जो विलायत से पढ़ाई करके आये थे, और अंग्रेजी में ही सोचते थे। उनके कपड़े स्त्री होने के लिए फ़्रांस जाया करते थे, यह अफवाह भी कोई आज की नहीं बल्कि पिछले 50 वर्षों से देश में जारी है, जिसकी असलियत यह है कि उस जमाने में इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में पेरिस ड्राइक्लीनर नाम से दुकान हुआ करती थी, जहां से नेहरू जी के कपड़े स्त्री/ड्राइक्लीन हुआ करते थे।
मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गाहे-बगाहे देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का उद्धरण देते रहते हैं, जिसमें कहीं न कहीं उनकी भूमिका को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है। 5 फरवरी, 2024 को भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला, जब पीएम मोदी को राष्ट्रपति के लोकसभा में दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देने के अवसर पर करीब 100 मिनट संबोधित करने का मौका आया।
इस मौके को 2024 आम चुनाव के लिए लॉन्चिंग पैड की तरह इस्तेमाल करते हुए पीएम मोदी ने अपने भाषण को पूरी तरह से कांग्रेस के खिलाफ केंद्रित रखा, और चुन-चुनकर एक के बाद एक निशाना साधा। उनके निशाने पर देश के पहले प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि इस बार इंदिरा गांधी सहित 2014 में यूपीए शासनकाल के वित्त मंत्री तक रहे।
भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में 370+ का उनका दावा भी कम मजेदार नहीं था। उनके कहे हर शब्द के पीछे कोई न कोई छिपा संदेश तो होता ही है, इसीलिए कई लोग 370 सीट को कश्मीर में धारा 370 हटाने से जोड़कर देख रहे हैं।
लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि 370 सीट का उनका यह सपना 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हासिल 371 सीट से भी जुड़ा हुआ है। तब 1957 में आज के 545 लोकसभा सीटों के स्थान पर 505 सीटें हुआ करती थीं। 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को जहां 44.99% वोट और 364 सीटें हासिल हुई थीं, दूसरे आम चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी बेहतर हुआ था।
पंडित नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.79% बढ़कर 47.78% हो चुका था, इसे देखकर ही आभास हुआ कि हो न हो, पीएम मोदी को नेहरू के दूसरे कार्यकाल की फाइलों को पलटते हुए कहीं उनके लाल किले से देश को संबोधन और 371 सीटों का आइडिया आया हो।
बहरहाल, कल के अपने भाषण में पीएम मोदी ने कांग्रेस की मानसिकता का हवाला देते हुए कहा कि, “कांग्रेस की जो मानसिकता है, उससे देश को बहुत नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने देश के सामर्थ्य पर कभी भी विश्वास नहीं किया है। वे अपने आपको शासक मानते रहे, और जनता-जनार्दन को हमेशा कमतर आंकते रहे। कांग्रेस देश के नागरिकों के बारे में कैसा सोचती थी, मैं जानता हूं कि नाम लेते ही उन्हें कुछ चुभन होगी।”
पीएम मोदी ने इसके बाद अपने भाषण में कहा कि, “15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नेहरू ने जो कहा, उसे मैं पढ़ता हूं। लाल किले से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने कहा था कि हिंदुस्तान में काफी मेहनत करने की आदत आमतौर से नहीं है। हम इतना काम नहीं करते जितना कि यूरोप वाले या जापान वाले या चीन वाले या रूस, अमेरिका वाले करते हैं। यह बात नेहरू जी लाल किले से बोल रहे थे।”
पीएम मोदी एक बार फिर पंडित नेहरू के भाषण को कोट करते हुए आगे कहते हैं कि, “यह न समझिये कि वे कौमें कोई जादू से खुशहाल हो गईं, वे मेहनत से हुई हैं, और अक्ल से हुई हैं।” इसके बाद पीएम मोदी नेहरू के वक्तव्य की व्याख्या कुछ इस प्रकार से करते नजर आते हैं कि “नेहरू जी ये उनको सर्टिफिकेट दे रहे हैं, और भारत के लोगों को नीचा दिखा रहे हैं।” मोदी फिर आगे कहते हैं, “यानि नेहरू जी की भारतीयों के प्रति सोच थी कि भारतीय आलसी हैं, नेहरू जी की भारतीयों के लिए सोच थी कि भारतीय कम-अक्ल के लोग होते हैं।”
पीएम मोदी यहीं पर नहीं रुके बल्कि उन्होंने अगली ही सांस में इंदिरा गांधी को याद करते हुए कहा, “आदरणीय अध्यक्ष जी, इंदिरा जी की सोच भी उससे ज्यादा अलग नहीं थी। लाल किले से 15 अगस्त को इंदिरा जी ने कहा था- “दुर्भाग्यवश हमारी आदत यह है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने को होता है, तो हम आत्म-तुष्टि की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं, और जब कोई कठिनाई आ जाती है तो हम नाउम्मीद हो जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता है कि पूरे राष्ट्र में ही पराजय भावना को अपना लिया है।”
उन्होंन कहा कि “आज कांग्रेस के लोगों को देखकर लगता है कि इंदिरा जी ने भले ही देश के लोगों का आकलन सही न किया हो, लेकिन उन्होंने कांग्रेस का आकलन बेहद सटीक किया था।”
लेकिन क्या नेहरू जी के बारे में मौजूदा पीएम ने जैस प्रकार का खाका संसद में पेश किया, क्या सच में नेहरू देशवासियों के बारे में ऐसी ही राय रखते थे? क्या वे जापानियों, रूसियों, चीनियों और अमेरिकियों को अपने देशवासियों से ज्यादा बेहतर, उन्नत नस्ल का समझते थे?
कल के पीएम मोदी के भाषण से तो यही समझ आता है कि नेहरू एक अमीर बाप (संयोगवश आज ही उनके पिता मोतीलाल नेहरू का जन्मदिन है) की औलाद थे, जो विलायत से पढ़ाई करके आये थे, और अंग्रेजी में ही सोचते थे। उनके कपड़े स्त्री होने के लिए फ़्रांस जाया करते थे, यह अफवाह भी कोई आज की नहीं बल्कि पिछले 50 वर्षों से देश में जारी है, जिसकी असलियत यह है कि उस जमाने में इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में पेरिस ड्राइक्लीनर नाम से दुकान हुआ करती थी, जहां से नेहरू जी के कपड़े स्त्री/ड्राइक्लीन हुआ करते थे।
लेकिन गांधी-नेहरू-इंदिरा गांधी के खिलाफ इतनी ज्यादा अफवाह आजादी के बाद से आज तक हवा में तैर रही हैं, उनके खिलाफ खुद कांग्रेसियों को पता नहीं है। हालत यह है कि अफवाहों के बाजार में उनमें से अधिकांश की खुद इस बारे में कोई ठोस राय नहीं है।
इसी को ध्यान में रखते हुए जनचौक अपने पाठकों के समक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरु के दारा सन 1959 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर दिए गये भाषण को जस का तस अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर प्रस्तुत कर रहा है। नेहरू जी के मूल भाषण की अंग्रेजी प्रति को The Nehru Blog के From the Red Fort: Nehru’s Independence Day Speech, 1959 से हासिल कर सकते हैं-
1959 में लाल किले से नेहरू का स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिया गया भाषण
बहनों, भाइयों और साथियों,
आज हम सभी एक बार फिर यहां पर आज़ाद भारत की वर्षगांठ मनाने के लिए एकत्र हुए हैं। आज के दिन, हम अतीत की अपनी उपलब्धियों एवं भविष्य की ओर पर थोड़ा निगाह डालते हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में अगर देखें तो ये 12 वर्ष बेहद छोटी अवधि है। दिल्ली की मिट्टी और पत्थरों ने हजारों वर्षों के साथ-साथ पिछले बारह वर्षों को भी देखा है, जब भारत के लोग अपने देश को गरीबी की पुरानी लीक एवं उससे उत्पन्न होने वाली मुश्किलों से उबारने की जद्दोजहद में जुटे हुए थे।
यह आज़ादी के संघर्ष से भी कहीं अधिक कठिन कार्य है क्योंकि इसमें अपनी कमज़ोरियों एवं अपने अतीत के बोझ से छुटकारा पाना शामिल है, जिसके नीचे हम सदियों से कराह रहे हैं। पिछले बारह वर्षों में हम क्या कुछ हासिल कर पाए हैं, इसका लेखाजोखा हम सबके सामने है। बहुत सारी अच्छी चीजें हुई हैं और कुछ बुरी भी। ऐसी बहुत सी चीज़ें हुई हैं जो मुझे लगता है कि भविष्य में भारत के इतिहास में अपना स्थान बना पाने में सफल रहेंगी। लेकिन इसी के साथ ही कुछ ऐसी भी चीजें भी घटी हैं, जिन्होंने हमें कमजोर किया है और हमारी कमियों को उजागर किया है।
हम सभी लोग यहां लाल किले के निकट इकट्ठा हुए हैं और एक बार फिर से तिरंगा फहरा रहे हैं। भविष्य को लेकर आपके मन में क्या विचार उत्पन्न हो रहे हैं? पिछले बारह वर्षों में हमें आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही प्रकार से अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। हमें व्यापक राष्ट्रीय आपदाओं, बाढ़, सूखे सहित फसलों के नुकसान को झेलना पड़ा है, और हमारी कमजोरियां लगातार हमारे कदमों को बाधित करती रही हैं।
ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने लालच में आकर अपने संकीर्ण स्वार्थों के लिए देश हित को भुला दिया, और एक बार पुनः महान राष्ट्र बनाने के जिन महान कार्यों में हम लगे हुए हैं, उसके आगे अपने स्वयं के लिए तात्कालिक लाभ की आशा में उसे भुलाकर ऐसे लोगों ने अपने देश को बड़ा नुकसान पहुंचाया है।
यहां तक कि आज भी आप सबको महंगाई सहित कई अन्य चीजों में बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, और कुछ हद तक हम इन मामलों को पूरी तरह से नियंत्रित कर पाने में असमर्थ हैं। आंशिक रूप से यह इंसान के संकीर्ण स्वार्थ का ही परिणाम है। खैर, जो भी है इस सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। आज के दिन हमें विशेष रूप से जिस बात को याद रखना चाहिए, वह यह है हम विचार करें कि कि हम क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं और किस दिशा की ओर जा रहे हैं।
हमें एक बार फिर से बारह साल पूर्व की उन घटनाओं की यादों ताज़ा करना चाहिए जब हमारे प्रिय नेता महात्मा गांधी हमारे साथ मौजूद थे और हम अपने मार्गदर्शन के लिए उनकी ओर देखा करते थे। कई वर्षों तक हमने मार्गदर्शन के लिए उनकी ओर देखा और उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलने की कोशिश की और ऐसा करके सफलता हासिल की। आज हम उन दिनों को कितनी मात्रा में याद करते हैं?
हम एक पल के लिए भी इस बात को नहीं भूल सकते कि हमारे सामने सबसे जरूरी काम देश में एकता को स्थापित करना है, क्योंकि अगर हम भाषा, प्रांत, धर्म या जाति के आधार पर अलग-अलग हिस्सों में बंट गए, तो हम अपनी सारी ताकत को खो देंगे और पतन का शिकार हो जायेंगे। ऐसे में हम प्रगति नहीं कर सकते और उज्ज्वल एवं सुनहरे भविष्य के बजाय भारत का इतिहास आपस में ही संघर्ष करने वाले छोटे-छोटे समुदायों का होकर रह जाने वाला है।
इसलिए पहली बात जिसे हमें याद रखना चाहिए, वह है आपस में एकता। हमें अपने बीच की नई-पुरानी असंख्य बाधाओं को तोड़ना चाहिए और हमेशा देश के एक हिस्से के रूप में समझने से पहले देश को रखना होगा, चाहे आपका वह हिस्सा कितना भी अच्छा क्यों न हो। यदि भारत के किसी हिस्से में कोई महानता है तो वह इस बात में है कि वह भारत का हिस्सा है। इसके बगैर देश के विभिन्न हिस्सों की कोई महानता या महत्व नहीं है।
इसलिए हमें हर हाल में इस बात को याद रखना चाहिए, क्योंकि अतीत में वर्ण व्यवस्था के चलते हम छोटे-छोटे कोठरों में बने रहने के इतने आदी हो चुके हैं कि यह आदत अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकी है। हमें इससे हर हाल में छुटकारा पाना होगा और इस पर जीत हासिल करनी होगी।
दूसरी बात, भविष्य के लिए हमारे लक्ष्य क्या हैं? हमारे सामने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्य हैं और हम भारत से गरीबी को दूर करना चाहते हैं। ये सब सच है। लेकिन इन सब चीज़ों को मापने का हमारा पैमाना क्या है? एक पैमाना महात्मा गांधी द्वारा दिखाया गया था, जिसमें यह देखना था कि भारत में आम इंसान को इस सबसे कितना लाभ हासिल हुआ।
हमें मुट्ठी भर अमीरों की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वे अपना ख्याल खुद रखने में सक्षम हैं। ये आम लोग हैं जो अक्सर अपनी कठिनाइयों के बारे में खामोश बने रहते हैं, खासकर वे लोग जो ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जिन्हें असल में देखभाल की जरूरत है। कृपया इस बात को याद रखें कि भले ही दिल्ली भारत सहित विश्व का एक बेहद खास शहर है, और हम सभी लोग जो दिल्ली के नागरिक हैं, एक मायने में बेहद भाग्यशाली हैं, लेकिन दिल्ली भारत नहीं है।
भारत लाखों गावों से बना है, और जब तक वे प्रगति नहीं करते, तब तक भारत का विकास संभव नहीं है, भले ही दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता या मद्रास शहर कितना भी तरक्की क्यों न कर ले। इसलिए हमें हमेशा अपने ध्यान में भारत के गांवों की तस्वीर को रखना चाहिए, और उनके विकास के लिए राहों और साधनों को तलाशते रहना चाहिए। हम सब तरह से मदद कर सकते हैं, लेकिन अंततः उन्हें अपने प्रयास, साहस एवं आत्मनिर्भरता से ही आगे बढ़ना होगा।
आज देश में सबसे बड़ी आपदा यह हुई है कि हमारे लोग आत्मनिर्भर बनना भूल रहे हैं, और वे दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि वे उनके लिए काम करें। हमारे गांव के लोग बेहद दृढ एवं अच्छे लोग हैं। लेकिन उन्हें पावों पर खड़े होने के बजाय उनमें अपने लिए काम करने के लिए सरकारी अधिकारियों की ओर देखने की आदत हो गई है।
इन योजनाओं का मकसद उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। अगर सामुदायिक परियोजनाएं एवं राष्ट्रीय विस्तार योजनाएं सुचारू रूप से तरह से काम करती हैं, तो यह भारत ही नहीं बल्कि विश्व के लिए एक क्रांतिकारी बात होगी, क्योंकि यह भारत के साढ़े पांच लाख गांवों का पुनर्जागरण होगा। अगर सरकारी अधिकारी इन चीजों को चलाएंगे तो कोई क्रांति नहीं होगी, यह एक साधारण एवं बेजान मामला साबित होगा। किसी भी राष्ट्र में जीवन भीतर से प्रवाहित होना चाहिए, इसे कृत्रिम रूप से प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है।
इसलिए, इस देश के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन गई है कि, शहरों के साथ-साथ गांवों में रहने वाले लोगों को भी अपने पैरों पर खड़ा होना सीखना होगा और आपसी सहयोग के साथ काम करना होगा। सरकार को हर तरह से इसमें मदद करनी होगी। लेकिन सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के प्रयासों से कोई राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। इसे अपने पैरों पर खड़ा होना सीखना होगा। यह बात खासतौर पर गांवों के मामले में लागू होती है।
इसलिए हमने तय किया है कि लोगों को मजबूत बनाने एवं उन्हें आपस में मिलकर काम करने और एक-दूसरे पर भरोसा करने की बात को सिखाने के लिए सहकारी समितियां स्थापित करनी होंगी। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार की ओर से निरंतर हस्तक्षेप होता रहे। मैं चाहता हूं कि सरकारी हस्तक्षेप कम से कम हो, और लोगों को सरकार की बागडोर अपने हाथों में कैसे रखा जाये, इस बात को सीखना चाहिए। सरकार की ओर से सिर्फ बुनियादी नीतियों को तय किया जा सकता है।
इसके साथ ही एक और बात है, जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए, वह है भारत की प्रगति को मापने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पैमाना। चालीस करोड़ भारतीयों की प्रगति ही एकमात्र पैमाना है कि कोई राष्ट्र कैसे प्रगति करता है? इसे केवल अपने प्रयासों से ही संभव बनाया जा सकता है। आप एक गरीब देश को किस तरह से समृद्ध बना सकते हैं? एक बार फिर याद दिला दूं कि इसे सिर्फ लोगों के प्रयासों से संभव बनाया जा सकता है।
कोई भी राष्ट्र दूसरों के दान पर निर्भर रहकर प्रगति नहीं कर सकता। अतः हम अपनी कोशिशों एवं देश में धन के उत्पादन को बढ़ाकर ही प्रगति कर सकते हैं। पश्चिम के देश कैसे आगे बढ़े हैं? वो चाहे यूरोप हो, चाहे अमेरिका हो, ये सभी अपने पुरुषार्थ के बल पर ही धनवान बने हैं। इनमें से प्रत्येक की संपत्ति और प्रगति के पीछे जबरदस्त कड़ी मेहनत और एकता छिपी हुई है। इन दोनों चीजों के बगैर कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता।
हमारे देश में कड़ी मेहनत करने की आदत विकसित नहीं हुई है। इसमें हमारी गलती नहीं है। परिस्थितियों की वजह से हममें ऐसी आदतें पड़ गई हैं। लेकिन यह सच है कि हम यूरोप, जापान, चीन, सोवियत संघ या संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों जितनी मेहनत नहीं कर सकते। कृपया यह बात विचार में न लायें कि ये राष्ट्र किसी जादुई चमत्कार के बल पर समृद्ध हो गये हैं। यह उनकी कड़ी मेहनत और बुद्धिमत्ता ही है, जिसके बल पर वे इस हद तक आगे बढ़े हैं।
इसलिए हम भी कड़ी मेहनत और अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर प्रगति कर सकते हैं। इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। किसी जादुई शक्ति से हम प्रगति नहीं कर सकते। समूचा विश्व इंसानों के पुरुषार्थ से चल रहा है। समूची विश्व की संपत्ति इंसानों की कड़ी मेहनत के बल से उत्पन्न होती है, वो चाहे खेत पर काम करते हों, या कारखानों, या दुकानों, या किसी हस्तशिल्प पर काम करते हों। कुछ मुट्ठी भर अधिकारी अपने कार्यालयों में बैठकर किसी प्रकार की संपत्ति को नहीं पैदा करते। यह तो किसान या कारीगर ही है जो अपने काम के बल पर धन का उत्पादन करता है।
मुझे यह देखकर खुशी हुई कि हाल ही में पंजाब सरकार ने अपने काम के घंटे बढ़ा दिए हैं। इससे पंजाब की सम्पत्ति में अवश्य ही इजाफा होगा और जनता को इसका लाभ होगा। इस देश में इतने अवकाश हैं कि इस मामले में कोई हमारा मुकाबला नहीं कर सकता। छुट्टियां अच्छी चीज हैं और यह इंसान को तरोताजा कर देती हैं। लेकिन बहुत ज्यादा छुट्टियां अच्छी नहीं होतीं क्योंकि इससे लोगों की काम करने की आदत छूट जाती है।
तो, जैसा कि आप जानते हैं, आज हम तीसरी पंचवर्षीय योजना की दहलीज पर खड़े हैं। दो योजनाएं पूरी हो चुकी हैं और उनसे हमें बड़े पैमाने पर लाभ हुआ है। हम जितना आगे बढ़े हैं, हमारी समस्याएं भी उसी अनुपात में बढ़ी हैं। हम हर तरफ से समस्याओं से घिरे हुए हैं, और कभी-कभी यह बोझ बहुत भारी लगने लगता है। लेकिन हमने प्रगति हासिल की है और ये सभी समस्याएं उसी प्रगति की निशानी हैं।
जो लोग गतिशील नहीं होते, उन्हें न ही किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और न ही उन्हें किसी प्रकार के जवाब को ढूंढने की जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है। आज भी जब हम समस्याओं और कठिनाइयों से घिरे हैं, तो यह एक विकसित हो रहे राष्ट्र की समस्याएं हैं, एक ऐसे राष्ट्र की समस्याएं हैं जो बेहद मजबूत नींव के साथ आगे बढ़ रहा है। जल्द ही विशाल इस्पात संयंत्र एवं अन्य परियोजनाएं तैयार हो रही हैं। वे किस चीज का पर्याय हैं?
उन्हें मात्र उद्योग-धंधे समझना उचित नहीं है, बल्कि वे एक नए जीवन का प्रतीक हैं, जिसे वे भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रदान करने जा रहे हैं। जो भी बड़े उद्योग-धंधे शुरू होने जा रहे हैं, वे हमारी प्रगति की नींव बनेंगे। इनसे लाखों लोगों को रोजगार मुहैया होने जा रहा है, जो देश में नई संपत्ति का उत्पादन करेंगे। तो इस प्रकार, पंचवर्षीय योजनाएं सिर्फ संयंत्रों एवं उद्योगों को ही स्थापित नहीं कर रही हैं, वरन एक स्वतंत्र एवं समृद्ध भारत की इमारत का भी निर्माण कर रही हैं।
ऐसे में अच्छी तरह से नींव को रखना बेहद आवश्यक है। हम नींव नहीं देख सकते हैं, हालांकि दो पंचवर्षीय योजनाओं में इस काम को किया गया है। अब हम तीसरी योजना की दहलीज पर खड़े हैं, जिसके लिए हम अभी से तैयारी कर रहे हैं।
मैं चाहता हूं कि आप इस बात को समझें, क्योंकि तीसरी योजना में भी अवकाश एवं आराम करने के युग का सूत्रपात नहीं होने जा रहा है। इसे पूरा करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। कोई भी राष्ट्र कड़ी मेहनत और कुछ कष्ट सहे बगैर प्रगति नहीं कर सकता है। जो लोग कठिनाइयों का सामना कैसे किया जाए को नहीं सीखते, वे सुस्त एवं निस्तेज पड़ जाते हैं और उनके साथ राष्ट्र की गति भी मंद पड़ने लगती है।
ऐसे में, हमारे सामने एक बेहद बड़ी चुनौती है, और विश्व की निगाहें हम पर टिकी हैं। वे देखना चाहते हैं कि भारत जैसा महान देश, जिसने ऐसे दौर में भी महात्मा गांधी जैसी सख्शियत को जन्म दिया, अब क्या करने वाला है। यहां सवाल सिर्फ उद्योग-धंधे लगाने, खाद्य उत्पादन बढ़ाने, सामुदायिक परियोजनाओं का विस्तार करने इत्यादि का नहीं है। मुख्य बात यह है कि हम इन चीजों को किस तरह से अंजाम देते हैं, और क्या यह सब हम अपने मस्तक को ऊंचा रखते हुए संपन्न करने में सफल होते हैं, अथवा गलत राह को अपना लेते हैं।
हमें इस बात को याद रखना होगा, क्योंकि गांधीजी ने हमें जिस सबसे खास सबक को सिखाया था, वह था अपने मस्तक को ऊंचा रखना, गलत तरीकों को न अपनाना, झूठ न बोलना एवं अपने स्वार्थ की पूर्ति की खातिर देश को नुकसान नहीं पहुंचाना।
यह वह मूल पाठ था जिसे उनके द्वारा वयस्कों और बच्चों सहित सभी को सिखाया था, और जिस क्षण हम इस पाठ को भुला देंगे, हमारा पतन हो जायेगा। इसलिए जैसा कि हम तेरहवें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं, आइए हम अपने मस्तक को ऊंचा रखते हुए इन बातों को अमल में लायें, और दृढ़ निश्चय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें ताकि हम निर्धारित समय पर अपने लक्ष्य के करीब पहुंच पाएं।
जय हिंद।
कृपया मेरे साथ तीन बार जय हिंद कहें।
जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद!
जनचौक से साभार