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बीजेपी पर मोदी की पकड़ ढीली

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हिसाम सिद्दीकी
नई दिल्ली! उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, त्रिपुरा, असम, मध्य प्रदेश और मगरिबी बंगाल बीजेपी में जो उठा-पटख और घमसान मची है उससे यह जाहिर होता है कि पार्टी पर वजीर-ए-आजम मोदी की पकड़ उतनी मजबूत नहीं रह गई है जितनी 2014 से 2019 तक थी और अब मुख्तलिफ प्रदेशों में मोदी की तस्वीर पर वोट नहीं मिलने वाले। इसका अंदाजा मगरिबी बंगाल से ही लगा है, जहां मोदी और अमित शाह वगैरह ने एलक्शन मुहिम में दिन-रात एक कर दिए, बेशुमार पैसा खर्च किया, इसके बावजूद पार्टी सिर्फ सतहत्तर (77) सीटें जीत सकी। जबकि दावा दो सौ से ज्यादा सीटें जीतने का था।

उत्तर प्रदेश में महज सात महीने बाद असम्बली का एलक्शन होना है। वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ मोदी के काबू से बाहर हैं। मोदी ने तकरीबन चार महीने तक उनसे मुलाकात नहीं की, इसका योगी पर कोई असर नहीं पड़ा। जून के शुरू में आरएसएस और बीजेपी के आला लीडरान की कई मीटिंगें हुई। उसके बावजूद आदित्यनाथ मोदी के खास अरविंद कुमार शर्मा को अपनी वजारत में शामिल करने और उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी सौंपने के लिए तैयार नहीं हुए। ऐसी खबरें खूब गश्त करती रहीं कि वजीर-ए-आजम मोदी, वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ को हटाना चाहते हैं। लेकिन आरएसएस ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। थक-हार कर अरविंद कुमार शर्मा को उत्तर प्रदेश बीजेपी का नायब सदर बनाकर कुछ आंसू पोछे गए। नायब सदर की कितनी अहमियत और हैसियत होती है यह सभी जानते हैं। असम्बली एलक्शन में वह क्या कर सकेंगे अब खबरें यह भी आ रही हैं कि शायद असम्बली का एलक्शन नरेन्द्र मोदी की तस्वीर के बजाए मोदी और योगी दोनों की तस्वीरें दिखा कर लड़ा जाएगा। बहरहाल यूपी में अब वही होना है जो योगी आदित्यनाथ चाहेंगे।राजस्थान में बीजेपी की सबसे बड़ी लीडर वसुंधरा राजे को भी नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं करते। वह वहां किसी दूसरे को लीडर बनाना चाहते हैं लेकिन पार्टी में एक भी लीडर ऐसा नहीं है जो वसुंधरा का मुकाबला कर सके, इसी लिए वसुंधरा मोदी का हुक्म मानने के बजाए अपनी मर्जी मुताबिक पार्टी चलाना चाहती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि राजस्थान में सिर्फ दो ही लीडर हैं एक कांग्रेस के अशोक गहलौत और दूसरी बीजेपी की वसुंधरा राजे। मोदी हर बार यह कोशिश करते हैं कि वह वसुंधरा को नीचा दिखा दें, लेकिन अमली तौर पर यह हो नहीं पाता। हाल ही में बीजेपी के जो पोस्टर आए उनमें वसुंधरा की तस्वीर गायब थी या गायब की गई। इससे वसुंधरा नाराज हैं। उनकी नाराजगी बीजेपी के लिए अच्छा शगुन नहीं है।त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार बनी तो मोदी ने अपनी मर्जी से वहां एक जिम ट्रेनर विप्लव देव को चीफ मिनिस्टर बना दिया। वह चूंकि गैर सियासी शख्स हैं इसलिए उन्होने अपने हिसाब से सरकार चलाने का काम किया। नतीजा यह कि पार्टी में बगावत जैसी सूरतेहाल पैदा हो गई। उधर मगरिबी बंगाल में मोदी का जादू न चलने की वजह से त्रिपुरा बीजेपी के लीडरान ने समझ लिया कि अब मोदी के इशारों पर नाचने से काम नहीं चलेगा। आज हालत यह हो गई है कि अगर विप्लव देव को हटाया न गया तो शायद बीजेपी के मेम्बरान असम्बली ही उनकी सरकार गिरवा देंगें। बीजेपी जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष त्रिपुरा सरकार बचाने की भरपूर कोशिशें कर रहे है। तो बीजेपी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में वापस जाने वाले मुकुल राय सरकार गिरवाने की कोशिशों में लगे हुए है।

त्रिपुरा में बीजेपी के जो मेम्बरान असम्बली हैं उनमें ज्यादा ऐसे हैं जो पुराने बीजेपी या आरएसएस से ताल्लुक रखने वाले नहीं हैं इसलिए भी वह अपने हिसाब से चलना चाहते हैं।कर्नाटक में लिगायत लीडर बीएस येदुरप्पा ने ही पार्टी खड़ी की है। इसलिए बीजेपी ने मजबूर होकर उन्हें दोबारा वजीर-ए-आला बनाया। अब उन्हें हटाने की मुहिम में ईश्वरप्पा और बीएल संतोष वगैरह लगे है। वहां जो घमासान मची हुई है उसकी वजह से सरकार का चलना मुश्किल हो रहा है। यह मुमकिन नहीं है कि वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी को वहां के हालात की इत्तेला न हो। लेकिन उनकी खामोशी दो ही बातों की तरफ इशारा करती हैं एक यह कि अब उनकी कोई सुनता नहीं दूसरे वह भी चाहते हैं कि अपनी मर्जी के मालिक बीएस येदुरप्पा कुर्सी से हट ही जाएं तो बेहतर है।

जिस वक्त उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को हटाए जाने की चर्चा गरम थी ठीक उसी वक्त मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ कैलाश विजय वर्गीय की सरगर्मियां तेज थी। कैलाश विजय वर्गीय मोदी और अमित शाह के नजदीकी बताए जाते हैं तकरीबन दो साल तक वह मगरिबी बंगाल का इंचार्ज बनकर कोलकाता और दूसरी जगहों पर रहे उसका कोई नतीजा तो नहीं निकला, लेकिन खुद को मध्य प्रदेश के वजीर-ए-आला की कुर्सी का दावेदार जरूर मानते हैं। गुजिश्ता दिनों उन्होने मध्य प्रदेश के कई मेम्बरान असम्बली और कुछ वजीरों से मुलाकातें कीं और ऐसा तास्सुर (आभास) दिया कि जैसे वह वजीर-ए-आला बनने जा रहे हों।भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की जितनी भी मीटिंगे इधर कुछ दिनों में हो गईं उतनी सात साल में कभी नहीं हुई थीं। कहा यह जा रहा है कि मोदी वजारत की तौसीअ (विस्तार) के सिलसिले में यह मीटिंगें हुई क्योकि असम में सर्वानंद सोनेवाल की कयादत में पार्टी दोबारा जीत कर आई लेकिन मोदी ने हेमंत बिस्वा सरमा को नया वजीर-ए-आला बना दिया। इसलिए सोनेवाल को मरकज में वजीर बनाने की बात चल रही है। शिवराज सिंह चौहान के लिए भी कहा जा रहा है कि उन्हें दिल्ली लाने की बात चल रही है। लेकिन वह खुद इसके लिए तैयार नहीं हैं। सोनेवाल को दिल्ली लाने में ताखीर हो गई तो उनके सब्र का बांध टूट गया और अब वह नए चीफ मिनिस्टर के खिलाफ सरगर्मियांं में लग गई हैं। मतलब असम में सर मुढाते ही ओले पड़े।

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