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मानसून ,चुनाव ,स्कूल , परीक्षाएं और अब ये हंगामे!

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सुसंस्कृति परिहार

ये हिंदुस्तान है यहां सब कुछ एक साथ चलता है।खुशी और ग़म का सही गठजोड़ यहीं देखने मिलता है इसीलिए हमारा देश अजब गजब देश के नाम से भी ख्यात है।इधर समय पर दक्षिण पश्चिम और दक्षिण पूर्व मानसून ने जोरदार दस्तक दे दी है। आंधी-तूफान बिजली पानी की धूमधाम के बीच बच्चे स्कूल जा रहे हैं मां बाप क्या करें वे तो पिछले दो साल से बच्चों की सुव्यवस्थित पढ़ाई के लिए व्यथित हैं फिर आग पानी से कैसा डर? सरकार भी भली-भांति जानती है ये मौसम बीमारियों का मौसम होता है निमोनिया, डायरिया ,मलेरिया ,डेंगू की कीमत तो हर साल चुकानी होती है। लेकिन कोरोनावायरस भी जगह जगह जोर आजमाइश में लग गया है। लेकिन बच्चे स्कूल जा रहे हैं।मामा पर अटूट भरोसा लिए। गांव के लोग तो जून जुलाई को कोरोना मास कहते हैं।

इधर चुनावी रणभेरी भी बज चुकी है।बिना चुनाव काफ़ी समय यूं गुज़र गया लेकिन अब लोकतांत्रिक व्य्वस्था की याद हो आई और अब भरी बरसात में जब मानसून शबाब पर होगा वोटिंग होगी।कितनी और कैसी होगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।देश लोकतंत्रात्मक है  उसमें चुनाव ज़रुरी है।भले कश्मीर जैसे दो या तीन प्रतिशत वोट पड़ें लेकिन सभी वोट डाल पायें इसकी कोई चिंता नहीं।पहले चुनाव होते थे तो खेती किसानी के समय ,वर्षा भीषण ठंड त्यौहार वगैरह का बराबर ध्यान रखा जाता था। इस समय किसान बड़ी तादाद में खरीफ फसल की है तैयारी में अपने खेत खलिहानों में होंगे।वारिश से जगह जगह रास्ते भी बंद होंगे। चुनाव बराबर प्रभावित होगा।देखना यहां बहुत ज़रुरी होगा कि अनुपस्थित लोगों का वोट इधर उधर ना डाल दिया जाए। मतदान कम होना ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है।पर क्या कीजेगा हुकुम हुआ है तो चुनाव होंगे ही।

ऐसे चुनावी दौर में आमतौर छुटपुट हंगामे होना स्वाभाविक है। लेकिन इस बार बेरोजगार जिस तरह अग्निपथ पर चलने विवश और आक्रोशित हैं उससे एक डर बराबर बन रहा है कि वे चुनाव में शामिल शामिल होंगे या चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न होने देंगे।इसी के साथ उनके हंगामे के चलते बहुत सी परीक्षाएं भी बेरोजगार के लिए आयोजित होने जा रही है जिनमें 19जून महत्त्वपूर्ण तिथियां है।जिस तरीके से  बस ,रेल आदि फूंकी जा रही हैं।जगह जगह जाम चल रहे उससे परीक्षाएं,स्कूल,चुनावी गतिविधियां  भी प्रभावित होंगी।19जून राहुल गांधी जी का जन्म दिन भी है वे मनीलांडि्ग मामले में रोजाना ई डी आफिस  बुलाए जा रहे  हैं।अगर कहीं उन्हें धोखे से भी गिरफ्तार किया गया तो हंगामा जबरदस्त रुप ले सकता है। बेरोजगार उत्तेजित युवाओं का साथ इसे नया स्वरुप दे सकता है।

इसलिए अपेक्षा यही है कि हालात सुधार जाने चाहिए। बेरोजगार अब समझदार हो गए हैं वे झांसे में आने वाले नहीं है।किसान आंदोलन और पड़ौसी देश लंका के आंदोलन को उन्होंने करीब से देखा है। स्थिति दुष्कर ना बने इससे पहले सर्वदलीय बैठक कर उनके मुद्दे पर सहानुभूतिपूर्वक विमर्श ज़रूरी है। जहां कहीं सुधार की गुंजाइश है वहां व्यवस्था दुरुस्त करें।वरना हमारा जुगाड़मेंट खोजी देश  समस्या का तत्काल हल तो निकाल लेता है पर वह संतोषजनक और हितकर नहीं होते।

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