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सवा सौ से अधिक संविधान संशोधनों की विस्तृत समीक्षा की जानी चाहिए ….!

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ओमप्रकाश मेहता

हमारे आजाद भारत के संविधान के इस पचहत्तरवें साल में हर तरफ से सवाल उठाया जाने लगा है कि हमारा संविधान काफी पुराना है और सामयिक नही रहा, आज की कई संवैधानिक समस्याओं का हल इसमें नही मिलता, अब इसे महज राजनीतिक सवाल मानकर इसकी उपेक्षा तो नहीं की जा सकती किंतु कई बार आम बुद्धिजीवी नागरिक तक को यह महसूस अवश्य होता है कि अब मौजूदा स्थिति-परिस्थितियों के अनुरूप फिर से एक संविधान सभा का गठन कर समय के अनुसार नए संविधान का प्रारूप तैयार करवाया जाना चाहिए और इस संविधान में अब तक किए गए सवा सौ से अधिक संशोधनों की विस्तृत समीक्षा की जानी चाहिए और इसके पूरे गुण व खूबियों को हमारी भावी पीढ़ी को भी बताया जाना चाहिए, यह इसलिए भी अब जरूरी हो गया है क्योंकि हमारा संविधान दुनिया के कई देशों का प्रेरणा स्त्रोत रहा है।
हमारा मौजूदा संविधान भारत की आजादी के करीब ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था, अर्थात् करीब पचहत्तर साल पहले और इन पचहत्तर सालों में आई सरकारों ने हमारे संविधान को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपनी सुविधा के लिए इसमें इतने संशोधन किए कि आज इसकी हालत महाभारत काल में शरशैय्या पर पड़े भीष्म पितामह जैसी हो गई है और यह बुरी तरह कराह रहा है, यद्यपि इसमें कोई दो राय नही कि हमारा संविधान कई अन्य आजादी प्राप्त देशों का प्रेरणा स्त्रोत रहा है तथा आज भी पूरा विश्व इसे ‘आदर्श संविधान’ मानता है, किंतु अब हमारा हर देशवासी यह महसूस करने लगा है कि अब पचहत्तर साल बाद आज देश की राजनीतिक दशा-दिशा और संवैधानिक खतरों को दृष्टिगत रखते हुए, इस संविधान को अब और संशोधनों की जरूरत नहीं, बल्कि नई संविधान सभा का गठन कर नया संविधान ही मौजूदा परिस्थितियों के अनुरूप लिखा जाना चाहिए।
यद्यपि मेरे इस विचार पर चिंतन के लिए सबसे पहली आवश्यक्ता केन्द्र में स्थायी व मजबूत सरकार जरूरी है, जो फिलहाल नही है और निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना भी नजर नही आ रही है, किंतु मेरा यहां इस दलील का तात्पर्य यह है कि अब हमारे संविधान को लेकर देश की स्पष्ट राय बन जाना चाहिए और मौजूदा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति-परिस्थिति को दृष्टिगत रखते हुए अब नया संविधान तैयार करना जरूरी हो गया है, क्योंकि संविधान से हमारी आजादी की ‘दीर्घायु’ जुड़ी हुई है, इसके लिए केन्द्र में स्थाई और मजबूत सरकार बनना चाहिए और भारत के हर जागरूक मतदाता को इस सवाल पर गहन चिंतन कर इसका जवाब खोजा जाना चाहिए और इसके अनुरूप आगे भी बढ़ना चाहिए, यह आज देश के हर जागरूक मतदाता के लिए गंभीर चिंतन का विषय है, खासकर युवा पीढ़ी का, चूंकि इसमें अहम् भूमिका है, वे ही भारत का भविष्य है, इसलिए उन्हें आज तुच्छ व मटमैली राजनीति की नही, मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्री संविधान व उनके अधिकार व कर्तव्यों का ज्ञान देना जरूरी है।
किंतु आज का माहौल देखकर मैं काफी निराश हूं और स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक के रूप में चिंतित भी हूं, आज हमारे देश में राजनेतओं और उनकी राजनीति का स्तर, रसातल की कितनी गहराई को छू रहा है, हम अपनी सत्ता की ललक और स्वार्थ से ऊपर ही नही उठ पा रहे है, ‘जनसेवा’ शब्द का लोप हो चुका है, अब ऐसे में उस ‘मसीहा’ की ही तलाश व इंतजार है, जो हमारे देश को रसातल से ऊपर ला सकें।

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