Site icon अग्नि आलोक

*माँ महान तो आपके बच्चों की माँ क्यों नहीं ?*

Share

        पुष्पा गुप्ता 

भारतीय समाज में अब से 50 साल पहले तक 90 फिसदी घरों में एक लड़की की शादी एक अनजान आदमी से केवल उसकी आय और पारिवारिक स्थिति जानकर कर दी जाती थी, जिसमें उनकी रजामंदी कोई मायने नहीं रखती थी.

     कभी-कभी तो शायद रजामंदी होती ही नहीं थी और शादी के बाद शुरू होती थी उसकी नई जिंदगी जहां हर पल उससे उपेक्षाएं रखी जाती है.

     त्याग और समर्पण की क्योंकि नारी तो त्याग की मूरत होती है कभी किसी ने उसके मन को टटोला ही नहीं फिर समय बदला और घरों में लड़कियों की राय को भी महत्व दिया जाने लगा किंतु विवाह के पश्चात स्थिति वही रही।

    जो स्त्री अपने समाज अपने परिवार इनको साथ में लेकर चलती उसे महान और सुघड़ स्त्री की परिभाषाएं दी गई किंतु जो स्त्री अपने मन को और अपनी ख्वाहिशों को वरीयता देती उसे कुलक्षणी कुल्टा आदि नाम दिए। कहीं-कहीं तो डायन करार दे जला भी दिया गया।

     जो जला ना पाए उन्होंने किताबों में कुल्टा और बेवफा लिख दिया। कुछ तो यहां तक कहते हैं कि पत्नी के सीने में दिल ही नहीं, ऐसे विद्वान जनों का मानना है पत्नी पति का दिल नहीं उसकी जेब देखती है। 

    वही पति जब बाहर अशिकी करे तो उसे उसकी जरूरत का नाम दे दिया जाता है क्या करें जब पत्नी समय नहीं देगी तो पति बाहर मुंह मारेगा ही घर में खाना मिलेगा तो आदमी बाहर क्यों जाएगा. कुछ ऐसे तमगो से नवाजा जाता है मतलब यहां भी गलती है उस बेचारी पत्नी की.

     मेरा प्रश्न समाज के उन्हें विद्वानों से हैं : क्या वह पत्नी का दिल देखते हैं यह केवल पत्नी को एक शरीर मात्र मानकर उसकी खूबसूरती को देखते हैं? कभी किसी विद्वान ने यह प्रश्न नहीं उठाया. अधिकतर मर्द बच्चे होने के बाद ही औरत से बेवफाई क्यों करते हैं. हालांकि बेवफाई की कोई उम्र नहीं होती वह कभी भी और किसी भी उम्र में की जा सकती है पर पुरुष पत्नी के साथ बेवफाई करने में किसी भी समय काल में पीछे नहीं हटते।

     धर्म कहता है जो आपकी शरण में आया है जिसे आपने आश्रय दिया है उसकी सभी जरूरतों को पूरा करना ही आपका सर्वप्रथम कर्तव्य है जब स्त्री अपने पिता का आश्रय छोड़कर आपका आश्रय ग्रहण करती है तो पिता से ज्यादा कर्तव्य आपका हो जाता है. उसे स्त्री की मान मर्यादा और उसकी ख्वाहिशों को ध्यान रखना चाहिए.

   कितने लोग ऐसा कर पाते हैं और कितनी महिलाओं ने अपने पतियों को बेवफा कुलक्षण आवारा कहा है? शायद किसी ने भी नहीं। 

     धर्मपत्नी बनाने का अर्थ केवल अपनी शारीरिक भूख को शांत करना नहीं होता अपितु एक जिम्मेदारी होती है जिसे जिसे मैंने सदियों से केवल स्त्री को निभाते हुए देखा है। 

     पत्नी की सारी मन्नतें, दुआएं अपने पति को लेकर होती है और पति की अपने पत्नी  से छुटकारा पाने को लेकर, क्यों ऐसा होता है आखिर क्यों पत्नी का प्यार प्यार नहीं होता एक जंजाल होता है और क्यों पत्नी बोझ नजर आती है चाहे वह आपकी पूरे परिवार का बोझ अपने कंधों पर ले ले।

     भारतीय समाज के परिवार परिवार ना रहे अगर पत्नियों ने बगावत करनी शुरू कर दी पतियों की बेवफाई पर। एक आदमी के मां-बाप का उनके बच्चों का उसके रिश्तेदारों का पास पड़ोस का सारा ठेका एक औरत पत्नी बनाकर रखती है लेकिन उसका ठेका लेने वाला कोई नहीं उल्टा कुछ शब्द ही सुनने को मिलते हैं क्या यही सिला है एक पत्नी बनने का।

    अक्सर मैंने कवियों और लेखकों को मां को महान कहते देखा है और निश्चित तौर पर मां महान होती है लेकिन अक्सर वह मां आपकी ही क्यों होती है, आपके बच्चों की क्यों नहीं ?

Exit mobile version