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एमआरपी बन रहा ग्राहकों को ठगने का जरिया

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 विजय गोयल ।।

सब कहते हैं महंगाई का जमाना है। मैं कहता हूं कि एमआरपी के जरिये ठगी हो रही है, इसलिए चीजें महंगी हैं। अगर एमआरपी की व्यवस्था पर अंकुश लगा दिया जाए, तो सभी पैक्ड सामान सस्ते हो जाएंगे। एमआरपी यानी मैक्सिमम रिटेल प्राइस, यानी वह कीमत, जो किसी पैक्ड सामान पर छापी जाती है, यानी वह मूल्य जिससे ज्यादा पर कोई सामान ग्राहक को नहीं बेचा जा सकता। अगर मैं दावा करूं कि बाजार में कई सामान ऐसे हैं, जिन पर छापी गई एमआरपी उनकी असल कीमत से बीस गुना ज्यादा है, तो क्या आप यकीन करेंगे?

सत्तर परसेंट डिस्काउंट

क्या आप मानेंगे कि अगर कुल लागत के आधार पर किसी सामान की कीमत एक रुपया बैठती है तो उसे बनाने वाली कंपनी उस पर 20 रुपये तक एमआरपी छापती है? जी हां, यह पूरी तरह सही है। हाल में मैं बिजली के पाइप खरीदने दिल्ली के चावड़ी बाजार गया। एक दुकानदार ने मुझे 30 फीसदी डिस्काउंट की पेशकश की। दूसरे दुकानदार के पास गया तो वह बोला- गोयल साहब, आप खुद चलकर आए हैं तो चलिए आपको 50 फीसदी डिस्काउंट दे दूंगा। तीसरा 70 परसेंट डिस्काउंट पर आ गया। साफ है कि एमआरपी से 70 प्रतिशत कम पर बेचकर भी वह मुनाफा ही कमा रहा था।

एक रुपये की चीज की एमआरपी अगर 20 रुपये छापी गई हो तो कोई ग्राहक दुकानदार से कितनी बार्गेनिंग करेगा? एक-दो या हद से हद पांच रुपये की। यानी 20 रुपये की एमआरपी पर वह अगर 15 रुपये देकर सामान खरीदता है, तो भी दुकानदार का मुनाफा घटाने के बाद भी 10-12 रुपये ज्यादा ही देकर आएगा। जो पेंट का डिब्बा साउथ दिल्ली में एमआरपी यानी 100 परसेंट दाम पर बिकता है, वही यमुनापार के बाजार में 50 फीसदी पर बिकता है। तो क्या यमुनापार का दुकानदार घाटे में व्यापार कर रहा है, समाजसेवा कर रहा है? हरगिज नहीं। मैंने राज्यसभा में यह मसला जोरदार ढंग से उठाया था। अब वक्त आ गया है कि आम आदमी को जगाया जाए, ताकि पूरे देश में धड़ल्ले से चल रहे इस गोरखधंधे के विरोध में मुहिम चलाई जा सके।

एमआरपी छापना जरूरी करते वक्त सरकार की सोच थी कि इससे लोगों के हित सधेंगे, लेकिन यही एमआरपी ठगी का जरिया बन गई है। इसके जरिए सामान बनाने वाली कंपनियां और दुकानदार दिनोंदिन मालामाल होते जा रहे हैं, लेकिन सख्त कानून नहीं होने से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है। कहने को तो हमारे यहां ग्राहकों के हक की रक्षा के लिए उपभोक्ता फोरम हैं, लेकिन इंसाफ पाना हर किसी के लिए आसान नहीं है। और जब एमआरपी पर सामान बेचने का सरकारी नियम बना हुआ है तो फिर उसके खिलाफ फोरमों में भी आवाज बुलंद नहीं की जा सकती।

दूसरी तरफ लोगों को कुछ सामान तो एमआरपी से भी ज्यादा कीमत पर खरीदने पड़ते हैं। देश भर के रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और ढाबों पर कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की बोतलें, नमकीन, बिस्कुट व चिप्स वगैरह के पैकेट एमआरपी के मुकाबले पांच से दस रुपये महंगे बेचे जाते हैं। ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय है। इसके बावजूद एमआरपी के नाम पर ठगी धड़ल्ले से चल रही है।

तमाम आलोचनाओं के बाद केंद्र सरकार के निर्देश पर उपभोक्ता मंत्रालय ने मान्य माप पद्धति कानून बदलने की प्रक्रिया शुरू की है। संशोधित ड्राफ्ट में एमआरपी से ज्यादा वसूली का दोषी पाए जाने पर ज्यादा जुर्माना वसूलने और जेल भेजने तक के प्रावधान हैं। एमआरपी के नए नियमों के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर पांच से 20 हजार का जुर्माना रखा गया है। दूसरी बार में जुर्माना बढ़कर 20 हजार से एक लाख रुपये हो जाएगा। अगर कोई दुकानदार या डिस्ट्रीब्यूटर तीसरी बार दोषी पाया जाता है, तो उसे जुर्माने के साथ एक साल की कैद भी हो सकती है। मान लीजिए, ये संशोधन हो भी गए, तो भी एमआरपी सिस्टम की खामियां तो दूर नहीं होने वाली।

मैंने पिछले साल उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को एमआरपी व्यवस्था में बदलाव करने की मांग करते हुए एक पत्र लिखा था, जिसका जवाब इस साल 8 अप्रैल को आया। इसमें बताया गया है कि केरल हाईकोर्ट के निर्देश पर 2007 में सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाई थी। कमेटी ने एमआरपी व्यवस्था को जायज करार दिया था, जिसे सरकार ने मान लिया। इसलिए नई व्यवस्था की जरूरत नहीं है। आठ साल पहले सरकार ने अगर किसी कमेटी की सिफारिश मान ली, तो क्या उसमें सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं है?

जागो सरकार जागो

मंत्रालय के जवाब में सबसे दिलचस्प बात मुझे यह नजर आई कि कमेटी ने ग्राहकों के हित साधने के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का सुझाव दिया था। अब सवाल यह है कि एमआरपी का झोल किस तरह प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है? जब एमआरपी पर 70-80 फीसदी तक बार्गेनिंग की गुंजाइश होगी, तो इससे बाजार में मुकाबला बढ़ेगा या बाजार अस्थिर हो जाएगा? मेरी अपील है कि मोदी सरकार एमआरपी के मामले में सख्त कदम उठाए, ताकि सरकारी नियमों पर आधारित यह धांधली बंद हो सके।

(लेखक बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं)

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