सुसंस्कृति परिहार
हमारे प्रधानमंत्री जी ने पिछले दिनों यह कहा था कि विदेशी ताकतें उन्हें सत्ता से हटाने का कुचक्र रच रही हैं।अब ब्रिटेन कोर्ट से आई इस खबर ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि कोरोना संक्रमण के समय लगने वाली कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के स्वीकारोक्ति ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया है। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने यह स्वीकार करके खलबली मचा दी है कि वैक्सीन से दुर्लभ दुष्प्रभाव हो सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके साथ भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कंपनी जुड़ी हुई है जिसने तकरीबन 175करोड़ टीके भारत में दिए।
विदित हो जब देश में टीकाकरण की शुरुआत हुई तो इसकी कीमत 800 से 1000₹ में थी किंतु विपक्ष के दबाव के कारण कि आज तक देशवासियों को टीकाकरण का कोई शुल्क नहीं लगा इसे नि: शुल्क किया गया फिर भी लोग इसे लगवाने में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे तो भारत सरकार ने इसके निशुल्क लगाने का भरपूर प्रचार किया और इसे अनिवार्य कर दिया गया यह भी कहा जाता रहा कि जो अभी नहीं लगवाएगा बाद में उसे फिर भारी शुल्क देना होगा। प्रचार और दबाव के असर से टीका केंद्रों पर भीड़ टूट पड़ी प्रधानमंत्री ने खुद अपनी टीका लगवाते फोटो प्रचारित करवाई ये बात और है कि उन्होंने कोवेक्सिन लगवाई जबकि हम सब ने कोविशील्ड। कोविशील्ड के साथ कोवेक्सीन और रशिया से आए वैक्सीन भी जब खत्म होने लगे तो सीरम इंस्टीट्यूट पूना वाले ने ब्रिटेन जाकर इस कारोबार में तेजी लाई विदित हो इस वैक्सीन की विदेशों की डिमांड पूरी करते करते भारत में कमी जब तब बनी रही। चूंकि यह कोराना बीमारी यूरोपीय देशों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार चुकी थी इसलिए वहां बहुत ऊंचे दाम में वैक्सीन जा रही थी। भारत सरकार को भी इसकी कीमत पेट्रोल, डीजल,गैस के दाम बढ़ाकर कहा जाता है चुकाती रही।वह टैक्स अब तक जारी है यानि इसका सारा खर्च जनता ने अप्रत्यक्ष तौर पर चुकाया है और अडानी अंबानी अब तक जनता को लूट रहे हैं।
कोरोना की दहशत के बावजूद सरकार को इसे अनिवार्य घोषित कर, मोबाइल पर रजिस्टर भी किया ताकि यह प्रमाण साथ रहे। यह भी किया गया ट्रेन,बस हवाई सफर आदि में इसे मोबाइल में दिखाना होगा।पहले दौर के बाद फिर दूसरा दौर भी दहशत का चला। कुल मिलाकर छोटे बच्चों को छोड़कर लगभग 80% लोगों ने ये वैक्सीन लगवाई।इसका श्रेय बराबर भारत सरकार ने लिया एक तो मुफ्त टीका तिस पर देश में बीमारी की रोकथाम। सरकार ने इतनी लाखों मौतों के तांडव के बाद बराबर यश लिया। चुनाव में इसका उल्लेख किया गया।
कहते हैं कि जब बुरे दिन आते हैं तो विपदाएं चारों तरफ से घेरती हैं अब हर भारतवासी भाजपा सरकार को अपने लोगों की मौत का जिम्मेदार मान रहा है। क्योंकि ब्रिटिश फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार अदालती दस्तावेजों में स्वीकार किया है कि कोविड-19 के खिलाफ उसके टीके में टीटीएस पैदा करने की क्षमता है, जो रक्त के थक्के जमने से जुड़ा एक दुर्लभ दुष्प्रभाव है। टीटीएस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के साथ थ्रोम्बोसिस रक्त के थक्कों का कारण बनता है और रक्त में प्लेटलेट काउंट कम हो जाता है। यह कंपनी इस वक्त 51 मुकदमों का सामना कर रही है, जिनमें दर्जनों मामले उसके वैक्सीन से हुई मौतों और गंभीर साइड इफेक्ट्स वाले हैं।
ब्रिटेन में एक रिपोर्ट के मुताबिक फ्रीडम आफ इंफर्मेशन के ज़रिए प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन ने 167 लोगों को मुआवजा दिया है इनमें 158 लोगों को एस्ट्राजेनेका यानि कोविशील्ड का टीका लगा था। ब्रिटेन की अदालत में इस कंपनी के ख़िलाफ़ 1000 मिलियन डॉलर का मुक़दमा चल रहा है। भारत में भी सीरम कंपनी के ख़िलाफ़ कई आवेदन लगे हैं अब देखना यह कि भारत में इस मामले में सरकार का क्या रवैया रहता है।कोविशील्ड टीके के किसी भी संभावित दुष्प्रभाव और जोखिम के कारणों की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग करते हुए बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। बहरहाल यह तो तय है कि कोविशील्ड के टीके के हुई मृत्युओं के उपजा सारा रोष भारत सरकार के विरुद्ध जा रहा है। चुनावी बेला में इस रिपोर्ट के ब्रिटेन से आ जाने के बाद अब कहने कुछ नहीं बचता।यदि मामला पूना वाले का ही होता तो सब निपट चुका होता।
वस्तुत:भाजपा पर आई यह नई आपदा है इसे कैसे अवसर में बदला जाएगा वह वक्त बताएगा।