मुख्तार अंसारी का खौफ और वर्चस्व किसी जमाने में इतना था कि उसकी पत्नी आफ्शा अंसारी जेल में न सिर्फ रोज मिलने जाती थी, बल्कि कई बार पति के साथ जेल की सलाखों के पीछे भी रह लेती थी। लेकिन, समय का चक्र ऐसा बदला कि आफ्शा अपने पति की मौत के बाद शव का आखिरी दीदार तक नहीं कर पा रही है।मुख्तार की दोस्ती महरुपुर निवासी अतिउर रहमान उर्फ बाबू से थी। घर से पांच किमी दूर अतिउर रहमान के घर मुख्तार का आना जाना होता था। इसी समय मुख्तार की अतिउर रहमान की भतीजी आफ्शा अंसारी से दोस्ती हो गई। बाद में दोनों ने लव मैरिज शादी कर ली। मुख्तार अंसारी जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया और आखिरकार पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
आफ्शा भी पति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी। 2005 में मुख्तार के जेल जाने के बाद अफ्शा ने उसके धंधे को टेकओवर कर लिया। बच्चों के बड़े होने के बाद मुख्तार के गैंग आईएस-191 की कमान उसने अपने हाथों में ले ली। स्थिति यह हो गई कि उसके खिलाफ गंभीर आरोपों में कुल 13 मुकदमे दर्ज हो गए। गाजीपुर पुलिस ने 50 और मऊ पुलिस ने 25 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया। आफ्शा की धरपकड़ के लिए जनपद से लेकर राजधानी तक की पुलिस लगी है।
वाहनों के नंबर माफिया के काफिले की थे पहचान
मुख्तार के काफिले के वाहनों के नंबर से ही माफिया के काफिले की पहचान हो जाती थी। लोगों का हुजूम दर्द सुनाने के लिए वहां पहुंच जाता था। उनके दर्द को सुन और मरहम लगाकर मुख्तार गरीबों का मसीहा बन गया था। लोगों ने बताया कि मुख्तार के काफिले में शामिल लग्जरी वाहनों का एक ही नंबर था 786, जिससे देखते ही काफिले की पहचान हो जाती थी। त्योहार पर ईदगाह से नमाज पढ़कर निकलता था तब उससे हाथ मिलाने और फोटो खिंचवाने वालों युवाओं की लंबी कतार लग जाती थी।