अग्नि आलोक

संगीत की महफिल और अंबानी का तमाशा

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प्रो.राजकुमार जैन

इन दिनों तमाम सोशल मीडिया, टेलीविजन चैनलों, अखबारों में एक ही खबर देखने और पढ़ने को मिल रही है कि धन कुबेर दौलतशाह अंबानी के शहजादे की शादी से पहले का  जश्न गुजरात के जामनगर में  शबाब पर है। और उसकी सबसे बड़ी आंख चुंधियाती रोशनी, अमेरिका की गायिका रिहाना जो कि तकरीबन 70 करोड रुपए वसूल कर अर्धनग्न पारदर्शी पोशाक में स्टेज पर गाने, व जिमनास्टिक के साथ नाचने की अपनी अदाओं से महफिल में शामिल लोगों की आंखों की पुतलियों को फैलाकर  टकटकी के साथ दिखला भी रही है।

    किसी को क्या एतराज हो सकता है? और वह अरबो खरबो का मालिक है, अपने बेटे की खुशी में जितना भी पैसा खर्च करें, जैसा भी मजमा जमाये आप कौन होते हैं, उस पर सवालिया निशान लगाने वाले? अपनी दौलत की ताकत पर धन कुबेर ने एक और समा बांधा है कि जितने भी हिंदुस्तान के मशहूर मारूफ, नामी गिरामी है, वे सब उसकी ताबेदारी में खड़े हैं।

 मगर सवाल फिर भी उठता है, क्या यह जायज है? गुरबत के मारे इस मुल्क में जहां करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं, रोजी-रोटी की तलाश में मारे मारे दर-दर की ठोकरे खाते, हांफते दौड़ते लाखों नौजवानों को क्या यह चिढ़ाना नहीं है? 

    इसके साथ एक दूसरा पहलू भी जुड़ा हुआ है कि मनोरंजन भी कैसा? क्या सचमुच में संगीत को देखने वाले हिंदुस्तानियों में आनंद की हिलोर उठती है, वे इसके बोल भाषा सुरो इसकी ग्रामर और रिदम को समझते हैं? जाहिर है यह केवल गुलामी वाली जहनियत में बड़े साहबों की महफिल में दूसरों की  ही हां हूं मे अपने हाथ पैर गर्दन हिलाकर हम भी आधुनिक हैं, का क्या नकलची प्रदर्शन नहीं है?      इससे उलट एक और तस्वीर भी है। दो दिन से मैं ग्वालियर  स्थित आईटीएम यूनिवर्सिटी की ओर से आयोजित संगीत समारोह में हाजिर हूं। पहाड़ी की ओट में बने पेड़ पौधों फूलों लताओं से घिरे, महकते कैंपस में हल्की-हल्की बूंदो, गुलाबी सर्दी, बीच-बीच में थोड़ी तेज हवा के  झोंकों से पेड़ों के साथ आलिंगनबद्ध लताएं  झूम झूम कर सरसराहट 

 से अपने आनन्दोत्सव की अनुभूति को भी व्यक्त करती रही है। आईटीएम यूनिवर्सिटी वैसे तो एक  प्रोफेशनल साइंस, टेक्नोलॉजी, मेडिकल साइंस, एग्रीकल्चर, जर्नलिज्म वगैरा की  तालीम देने का मरकज है, परंतु यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलाधिपति रमाशंकर सिंह ने अपनी मान्यतानुसार नई पीढ़ी के मुकम्मल  शख्सियत  निर्माण के लिए कला, साहित्य, संगीत, स्थापत्य, कवि सम्मेलन, मुशायरों,  शास्त्रीय नृत्य वगैरा का आचमन छात्रों को करवाने की भी पहल की है।

  मेंने पिछले 50 सालों से ज्यादा  समय से दिल्ली की सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम, कमानी हाल, श्री राम सेंटर, संगीत कला अकादमी, नेशनल स्कूल आफ ड्रामा, जैसे सांस्कृतिक आयोजन  केंद्रो के  साथ-साथ मूल्क के अन्य इलाकों में आयोजित प्रोग्रामो में भी रसास्वादन किया  है। दिल्ली के दर्शकों तथा वहां के  रसिको में एक बड़ा फर्क पाया। दिल्ली की संगीत महफिलों में संभ्रांत, खास तरह की पोशाको, रंगे पुचें  अदाओं  से लैस दर्शक कितना रसिक है कहना मुश्किल है? बड़े लोगों के शौक भी आम लोगों से अलग ही होते हैं, इसलिए शास्त्रीय संगीत की महफिल में जाना भी एक अभिजात्य प्रतीक है। परन्तु यह बात सभी पर लागू नहीं होती। संगीत के असली रसिक पारखी भी आते हैं।

         परंतु आईटीएम का मंजर अलग ही था। रात्रि की संगीत सभा में जहां एक और ग्वालियर, जो कि शास्त्रीय संगीत का बड़ा केंद्र रहा है। वहां के दर्शक जो की संगीत के व्याकरण, राग, शास्त्रीय पक्ष की गहरी जानकारी रखते हैं, वे तो पहुंचते ही हैं। परंतु मुझे जो खासियत देखने को मिली कि कैंपस में रहने वाले छात्र-छात्राओं जो की मूल्क के मुख्तलिफ इलाकों से आकर यहां तालिम हासिल कर रहे हैं, अपनी आम दिनों में आरामदायक पहनने वाली अति साधारण अनौपचारिक ड्रेस पहने हुए सैकड़ो की तादाद में हाल में अंत तक जमे रहे। शास्त्रीय संगीत की कठिन विद्या से अपरिचित होते हुए भी आनंद से सराबोर  होते हुए उनकौ देखा जा सकता है।

  अंबानी रईस के संगीत तमाशे जिसमें आंतरिक रस नहीं, भोंडा दिखावा दौलत की बदोलत  इसको इवेंट बना दिया। तमाशा खत्म या आंख से ओझल होने पर सिवाय खालीपन के और कुछ हासिल नहीं। वहीं  भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य जिसमें कबीर  रहीम, रसखान, सूरदास, मीरा के भजन के साथ-साथ  त्यागराजा पुरंदादासा, मुत्तुस्वामी दीक्षित, श्यामा शास्त्री की कर्नाटक संगीत की कृतियां। गालिब मीर की शायरी गजलों नजमो और शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम कुचिपुड़ीं ओडिसी, कत्थक जैसी नृत्य शैलीयो से नयी नस्ल को परिचित करवाना एक मायने में अपने  सांस्कृतिक राष्ट्रीय फर्ज की अदायगी भी है।

     शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधक  कालजयी गायक पंडित कुमार गंधर्व को समर्पित इस संगीत सभा में  पहले दिन श्री एस आकाश का बांसुरी वादन तथा सुश्री कलापनी कोमकली का गायन हुआ। दूसरे दिन की सभा मे पूर्वायन चटर्जी का सितार वादन तथा पंडित अजय पोहनकर का गायन संपन्न हुआ। सुश्री कोमकली ने अपने गायन से  सुनने  वालों को भक्ति रस की धारा में नहला दिया। यही नहीं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित गायिका होने,तथा  संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजे जाने के बावजूद, आईटीएम ग्लोबल स्कूल के नन्हे मुन्ने बालकों  के बीच प्राथमिक संगीत शिक्षक के रूप में गाकर तथा बालको से समवेत स्वर में गवाकर शास्त्रीय संगीत के अंकुर रोंप दिए। वहीं सितार तथा बांसुरी वादन  ने नई पीढ़ी को उसके उतार चढ़ाव की छवियों को दिखाकर अपना रंग जमांए रखा। अंत में वरिष्ठ गायक पंडित अजय पोहनकर ने गायन के साथ-साथ उसके शास्त्रीय पक्ष और इतिहास पर भी प्रकाश डाला।

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