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*पौराणिक विश्व : मिलिए पाँच प्रकृतियों  से*

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         ~ सुधा सिंह

1. पार्वती :

    सबसे पहली प्रकृति दुर्गा हैं जो गणेश की माता हैं। शिवा, नारायणी और विष्णुमाया इनके नाम हैं। ये परब्रह्मस्वरूपा हैं। ये सनातनी देवी देवताओं की अध्यक्ष है और सदैव से ही ब्रह्मा, ऋषियों, मनीषियों और देवताओं के द्वारा पूजित हैं। देवी दुर्गा शोक, पीड़ा और दुर्भाग्य का नाश करती हैं।

      अपने शरणागत को ये देवी धर्म, अर्थ और यश प्रदान करती हैं। ये सर्वज्ञ देवी सदैव कृष्ण के साथ निवास करती हैं। सिद्ध पुरुषों के द्वारा ये सदा से पूज्य हैं और प्रसन्न होने पर ये भक्त को मनवांछित सिद्धि देती हैं।

2. लक्ष्मी :

     दूसरी प्रकृति का नाम पद्मा (लक्ष्मी) है। ये शुद्ध सत्व स्वरूपा हैं और ये कृष्ण की धन और यश की देवी हैं। ये लक्ष्मी देवी सभी इन्द्रियों की स्वामिनी हैं। ये शांतस्वभाव, प्रसन्नचित और शुभ फल दायनी हैं। जिनका स्वरूप अत्यंत ही सुंदर है।

     ये लालच, क्रोध, भय, अहंकार आदि गुणों से रहित हैं और अपने पति और भक्तों के लिए सदैव समर्पित रहती हैं। ये अन्न और वनस्पति में निवास करती हैं और संसार में जीवन का संचार करती हैं। जिनका निवास स्थान बैकुंठ हैं जहां ये महालक्ष्मी रूप में रहती हैं।

     स्वर्ग में ये स्वर्गलक्ष्मी हैं और घर में गृहलक्ष्मी इनका ही रूप है।  यही राज्यलक्ष्मी भी हैं। जो कुछ भी यश और बैभव इस संसार में है वो इनके द्वारा है।

3. सरस्वती :

ज्ञान, वाणी, बुद्धि और अध्ययन की देवी सरस्वती तीसरी प्रकृति हैं। ये ब्रह्मांड के सभी ज्ञान का स्रोत है और मनुष्यों में ये मेधा रूप में रहती है। यही  काव्य करने की शक्ति है। यही स्मृति है और यही वाक्चातुर्य देने वाली हैं।

    इन्हीं के द्वारा वेदों के गूढ़ रहस्यों को जाना जाता है। ये सभी शंकाओं का शमन करने वाली हैं। ये वाद्यों की देवी हैं। यही वाणी की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ये शांत स्वभाव की और अपने हाथ में वीणा और पुस्तक धारण करने वाली हैं। ये आपनी माला पर सदैव कृष्ण नाम का जाप करती हैं।

4. सावित्री :

     ये चार वर्णों की माता हैं, इनसे ही छह वेदांगों का उद्भव हुआ है। इन्हीं से संध्या के स्रोत और वेदों के छंद प्रकट हुए हैं। यही देवी तप हैं और इनसे ही संस्कार और पवित्रता प्रकट होती है। इनका एक नाम गायत्री है और इनका  निवास स्थान ब्रह्मा का लोक सत्यलोक है।

     सभी देवता और तीर्थ इनके चरणों को प्राप्त करके पवित्र होना चाहते हैं।

5. राधा :

     पांचवी देवी स्वयं राधा हैं। ये पांचों प्राणों की अधिष्ठात्री देवी, प्राण स्वरूपा और कृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। ये बाकी सभी प्रकृतियों से अधिक सुंदर और श्रेष्ठ हैं। इन्हें अपने सौभाग्य का मान है। इनकी महिमा अनंत है। ये कृष्ण की अर्धांगिनी और उनका आधा स्वरूप हैं।

     ये तेज और गुणों में कृष्ण से भी श्रेष्ठ हैं। ये सर्वेश्वरी, सनातनी, आनंदस्वरूपिणी और बैभवशालिनी हैं। कृष्ण की रासलीला की ये अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हीं से गोलोक के रासमंडल का उद्भव हुआ है और ये सदैव रासमंडल में विहार करती हैं।

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