-मंजुल भारद्वाज
बड़े मासूम और भोले हैं
वो लोग
जो कहते हैं
राजनीति को
धर्म से अलग रखो !
बहुत शातिर
मूर्ख
अज्ञानी
या
अनंत ज्ञानी हैं
वो लोग
जो कहते हैं
धर्म के नाम पर
राजनीति मत करो !
ऐसा कहने वाले लोग
कभी मन्दिर
कभी मस्जिद
कभी चर्च
कभी गुरूद्वारे
कभी अग्यारी
कभी मठ में नज़र आते हैं !
बड़े मीठे बोल
बोलकर
परशुराम जयंती की बधाई देते हैं !
थोडा मनन करिए
धर्म पहली
पाषाण युगीन राजनैतिक सत्ता है
और आज भी
दुनिया की महासत्ता के संविधान
धर्म को समर्पित हैं
न्याय व्यवस्था में
गवाही के पहले
धर्म ग्रंथों की कसम दिलाई जाती है !
थोडा शांत होकर सोचिए
पाषाण युग बीत गया
पर धर्म अभी भी ज़िन्दा है
क्यों ?
क्योंकि धर्म ही राजनीति है
या राजनीति का अखाड़ा है
यह ऐसे अवस्था है
जैसे कोई बच्चा
सदियाँ बीत जाने के बाद भी
बड़ा ही ना हो
और बिस्तर में नित्यकर्म करता रहे
ऐसी अवस्था बीमार होती है
इसलिए धर्म
एक बीमारी है
इस बीमारी से सब पीड़ित हैं
चाहे वो वैज्ञानिक हो
राजनेता हो
अमीर हो
गरीब हो
सब धर्म की ला इलाज बीमारी से ग्रस्त हैं !
मनुष्यता के विध्वंसक
आत्मघाती धर्म नामक
मानसिक रोग का निवारण है
ईश्वरीय सत्ता को नकार कर
प्रकृति के घटनाक्रम को साधना !
हमारी समग्र सृष्टि
पंचतत्व से बनी है
छठा तत्व है काल
जिसको नियति कह सकते हैं
सारी समस्या की जड़ है
काल को नहीं समझने की जहमत
हम काल को समझने का कार्य
आउटसोर्स कर देते हैं
जिनको आउटसोर्स करते हैं
वो इसी काल को ईश्वर बनाकर
हमारा सदियों से शोषण करते हैं
होई वही जो राम रची राखा
मतलब आप भूखे रहोगे
ग़रीबी में रेंगते रहोगे
आप पर बलात्कार होता रहेगा
क्योंकि ईश्वर की इच्छा यही है !
सवाल यहाँ से शुरू कीजिये
सब ईश्वर की इच्छा है
तो मनुष्य की क्या इच्छा है ?
काल को समग्रता से समझिये
काल की व्यापकता से भागिये मत
उसे साधिये
आप धर्म मुक्त हो जायेंगे
और मनुष्य के विवेक
विचार, बुद्धि , ज्ञान से
मनुष्यता को शोषण से बचाते हुए
मानवता का राज स्थापित करेंगे !