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नमन नीच की अति दुखदाई

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सुसंस्कृति परिहार

यूं तो हमारे देश में नमन करना भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है झुककर प्रणाम निवेदित करना अमूमन सभी जगह होता है। सज़दा में भी यही भाव दृष्टि गोचर होता है।पता नहीं क्यों हमारे पूर्वजों ने यह क्यों कह दिया कि नीच नमन की अति दुखदाई।उनकी नज़र में नीच कौन था दलित बंधु या जिनके कर्म नीच हैं।

जब हम अपने इतिहास को टटोलते हैं तो कोर्निश बजाना,झुक झुक सलाम करना तो होता रहा है किंतु  झुककर नमन करने के बाद बापू पर गोलियां दागने वाला हत्यारा पहला व्यक्ति था।  साधारण तौर पर महात्मा गांधी की इस तरह हत्या करने वाला, कोई नीची सोच वाला नीच ही होगा।इसी भांति देश के युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के पहले उन्हें भी नमन किया गया। इस तरह के कृत्यों से आज नमन करने को संदिग्ध माना जाने लगा है।वह दुखदाई भी हो सकता है।ये सच हमें 1948 से देखने में आया।अब तो यह खूब फल फूल गया है। चुनाव काल में अच्छे भले सफेद पोश किस कदर चरण वंदन में लगते हैं और उसका प्रतिफलन कितना घातक होता है।इसका भुक्तभोगी पूरा समाज है।अब तो सार्वजनिक तौर पर दलितों के चरण धोकर नमन करने का भी पर्दाफाश हुआ है। पर्दाफाश तो उन पहलवान बेटियों ने भी किया है जो अन्तर्राष्ट्रीय खेल क्षितिज में अपना वजूद स्थापित कर चुकी है।वस्तुत: यह एक दिखावा है जिसके ज़रिए लोगों को इस नीच और छद्म विचार ने दुख दिया है।इस चलन से लोकतांत्रिक देश में जनता से कपटपूर्ण व्यवहार हुआ है।

देश की ताज़ा परिस्थितियों में देखा जाए तो इस मामले में हमारे देश के बड़े साहिब जी ने रिकार्ड बनाया है याद कीजिए उन्होंने  संसद की सीढ़ियां चढ़ते हुए 2014 उसे जिस तरह नमन किया वह इसी कड़ी में आता है।यह नमन ही है जिसमें निरंतर गैर असंसदीय  आचरण संसद में देखने मिल रहा है।ये कैसी मृत संसद है जिसमें सांसदों की बात सुनी नहीं जाती और ना ही देशवासियों को सुनने दी जाती हैं।इस नीच नमन का ही परिणाम है कि सदन में सत्ता समर्थक सांसद हंगामा खड़ा कर विपक्ष को बोलने नहीं देते। लोकतंत्र की हत्या सरासर हो रही है।

इसी तरह साहिब के कदम जब पांच साल बाद 2019 में संसद भवन में पड़ते हैं तो वहां रखे संविधान को वे इस तरह झुककर नमन करते हैं जो दिखावा ही होता है वे संविधान की धज्जियां ना केवल वे, बल्कि उनके मंत्री, स्पीकर, उपसभापति और सांसद खुले आम उड़ाते हैं।कहना ना होगा यह संविधान के उस नमन का ही परिणाम है।

पिछले दिनों ताजा घटनाक्रम 28 मई 2023 को देखने मिला जब नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर वे सैंगोल दोनों  हाथों में मजबूती से थामे प्रकट हुए साथ में नंग धड़ंग महात्माओं का जमावड़ा।साहिब जी ने अपने कर कमलों उसे स्पीकर महोदय के आसन के पास स्थापित किया और उसे साष्टांग नमन किया। संसद भवन का उद्घाटन सम्पन्न हुआ। सैंगोल जिसे राजदंड कहते थे। लोकतंत्र की चौखट के अंदर लाकर संसद-भवन का अपमान किया गया।भला जनता का,  जनता के लिए,जनता के द्वारा शासन में इसका क्या औचित्य?

कहते हैं जहां जहां पांव पड़ें संतन के तंह तंह बंटाधार।ऐसे महामना ने अपने गुरु रथयात्रा के हीरो लालकृष्ण अडवाणी के चरण छुए और वे भी राजनीति से मृत पाय हो गए। जिस संस्थान पर भृकुटी टेढ़ी की वह स्वाहा हो गया निजीकरण की भेंट चढ़ गया। रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की बात ने उन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचाया उस रेल मंत्रालय का कीमा बना दिया। दलितों के पैरों का पूजन किया गया वे दलित आज आरक्षण के रक्षण की चिंता में हैं।

लगता है ये कहावत गहरे अनुभवों से तैयार की गई है। आश्चर्यजनक तो यह कि एक कांग्रेस के नेता ने जब ऐसे लोगों को नीच शब्द से नवाजा था तब सबको बुरा लगा था उन्होंने भी इसे अपने ढंग से समझा दिया था लेकिन वह बात आज इस रुप में स्वयं सिद्ध हो रही है तब क्या कीजियेगा। वस्तुत:नीच की नमन नीची जाति से कतई नहीं है वरन् बुरी सोच के साथ सब मटियामेट करने वाले है।ऐसे लोगों की पहचान आसान है जब जहां ज्यादा दिखावे के साथ नमन या प्रेम दर्शाया जाए तो वह खतरनाक ही होता है। राष्ट्रपिता, पुराना संसद भवन, संविधान और अब प्रजातंत्रात्मक शासन इस कुटिल नमन के शिकार हुए हैं।यह संघीय शैली है जो दिखती कुछ है और उसके पीछे सब कुछ उल्टा पुल्टा ही होता है।इस छद्म और जहरीले नमन को पहचानने की ज़रूरत है।सच ही कहा गया है नमन नीच की अति दुखदाई।

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