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*नंबूदिरीपाद: जिनके चुने जाने पर अमेरिका में बज गई घंटी*

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सुनील सिंह

भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक, देश के प्रमुख मार्क्सवादी चिंतक और आधुनिक केरल के निर्माता एलमकुलम मनक्कल शंकरन नम्बुदिरीपाद का जन्म 13 जून को मल्लापुरम ज़िले में पेरिंथलामन्ना तालुक के एलमकुलम गाँव में हुआ था।उनके पिता परमेश्वरन बड़े जमींदार थे। युवावस्था में नम्बूदिरीपाद जाति प्रथा के ख़िलाफ़ चलने वाले सुधार आन्दोलन की तरफ आकर्षित हुए। प्रगतिशील नम्बूदिरीपाद ने युवक संगठन ‘वाल्लुवानाडु योगक्षेम सभा’ के पदाधिकारी के रूप में जम कर काम किया।

जिस काल में अधिकांश कम्युनिस्ट सिद्धान्तकार भारतीय इतिहास को किताबी मार्क्सवादी खाँचे (आदिम साम्यवाद- दास प्रथा – सामंतवाद – पूँजीवाद) में फ़िट करके देखने की कोशिश कर रहे थे, नम्बूदिरीपाद ने अनूठी मौलिकता का प्रदर्शन करते हुए केरल की सामाजिक संरचना का विश्लेषण ‘जाति -जनमी -नेदुवाझी मेधावितम’ के रूप में किया। अपनी पहली उल्लेखनीय रचना ‘केरला: मलयाली कालुडे मातृभूमि (1948) में ईएमएस ने दिखाया कि सामाजिक संबंधों पर ऊँची जातियाँ हावी हैं, उत्पादन संबंध जनमा यानी ज़मींदारों के हाथों में हैं और प्रशासन की बागडोर नेदु- वाझियों यानी स्थानीय प्रभुओं के कब्ज़े में है। ईएमएस की निगाह में अधिकांश जनता की ग़रीबी और पिछड़ेपन का कारण यही समीकरण था। 

अपने इसी विश्लेषण को आधार बना कर नम्बूदिरीपाद ने 1952 में ‘द नैशनल क्वेश्चन इन केरला’, 1967 में ‘केरला : यस्टरडे, टुडे ऐंड टुमारो’ और 1984 में ‘केरला सोसाइटी ऐंड पॉलिटिक्स : अ हिस्टोरिकल सर्वे’ की रचना की। अपने इसी विश्लेषण के आधार पर ईएमएस ने केरल में’जाति -जनमी -नेदुवाझी  मेधावितम’ का गठजोड़ तोड़ने के लिए वामपंथ का एजेंडा भी तैयार किया , जिसके केंद्र में समाज सुधार और  जाति विरोधी आंदोलन था। 

ईएमएस ने ज़ोर दे कर कहा कि जातिगत शोषण ने केरल की नम्बूदिरी जैसी शीर्ष ब्राह्मण जाति तक का अमानवीकरण कर दिया है। उन्होंने ‘नम्बूदिरी को इनसान बनाओ’ का नारा देते हुए ब्राह्मण समुदाय के लोकतंत्रीकरण की मुहिम चलाई। इसी दौरान प्रचलित राष्ट्रवादी रवैये से हटते हुए ईएमएस के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने एक तरफ़ तो जाति-सुधार आंदोलनों और सवर्णविरोधी आंदोलन को समर्थन दिया और दूसरी तरफ़ जातिगत दायरे से परे जाते हुए वर्गीय और जन -संगठन खड़े किये.इस तरह सामंतवाद विरोधी लोकतांत्रिक जन संघर्षों की ज़मीन तैयार हुई।

कम्युनिस्ट आन्दोलन में नबूदरीपाद का पदार्पण कांग्रेस -समाजवादी आन्दोलन के रास्ते हुआ था.1931 कॉलेज शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाले सत्याग्रह में कूद पड़े और जेल-यात्रा की.केरल में कांग्रेस-सोसलिस्ट पार्टी की नींव रखने के बाद 1934 में उसके अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने.केरल प्रदेश कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम करते समय उनका परिचय मार्क्सवाद से हुआ.1936 में उन्होंने अपने चार साथियों के साथ मिल कर केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की.जमींदार परिवार में पैदा होने के कारण नम्बूदिरीपाद ने उत्तराधिकार में मिली सारी सम्पत्ति पार्टी को सौंप दी.

1957 में हुए केरल विधान सभा के लिए पहले आम चुनाव में नम्बूदिरीपाद के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने ज़बरदस्त जीत हासिल की। देश के पहले ग़ैरकांग्रेसी मुख्य  मंत्री की हैसियत से उन्होंने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को बदल  डाला। उनके  नेतृत्व  में  हुए  भूमि सुधारों, भूमि सुधारों , जन-स्वास्थ्य और वितरण प्रणाली की पुनर्रचना, न्यूनतम वेतन के प्रावधान और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था ने केरल समाज की तस्वीर बदलने की शुरुआत कर दी।

1959 में नेहरू की केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 356 का विवादास्पद इस्तेमाल करते हुए ईएमएस की सरकार को भंग कर दिया। लेकिन 1967 में सात पार्टियों के गठजोड़ के नेता के तौर पर ईएमएस दोबारा सत्तारूढ़ हुए। भारतीय संसदीय राजनीति में आम तौर पर और कम्युनिस्ट आंदोलन में ख़ास तौर पर संयुक्त मोर्चे की रणनीति विकसित करने का पहलू उनके प्रमुख योगदान के तौर पर याद रखा जाएगा। 

1939 में मद्रास प्रांतीय विधान परिषद् के सदस्य का चुनाव जीतने के बाद कम्युनिस्ट-सक्रियता के कारण उन्हें दो बार (1939-42 और 1948-50) भूमिगत जीवन व्यतीत करना पड़ा। नम्बूदिरीपाद 1941 में कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के सदस्य चुने गये और 1950 में पोलित ब्यूरो के। पार्टी के भीतर होने वाली बहसों में भाग लेते हुए उन्होंने भारतीय समाज और राज्य के प्रति पार्टी के रवैये का सूत्रीकरण किया। 1962 में उन्हें पार्टी का महासचिव चुना गया। 1964 में पार्टी का विभाजन होने पर वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)  के साथ गये और सातवीं कांग्रेस में पार्टी की केंद्रीय कमेटी और पोलित ब्यूरो की सदस्य चुने गए। 1977 में वे माकपा के महासचिव बने और 1992 की चौदहवीं कांग्रेस में ख़राब स्वास्थ्य के कारण पद छोड़ने से पहले लगातार इसी पद पर काम किया।

1966 में उन्होंने ‘इकॉनॉमिक ऐंड पॉलिटिक्स ऑफ़ इण्डियाज़ सोशलिस्टिक पैटर्न’ और 1967 में ‘इण्डिया अंडर कांग्रेस रूल’ ग्रंथ की रचना की। 

नम्बूदिरीपाद की अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं : ‘द महात्मा ऐण्द द इज्म’ (1958), ‘कान्फ्लिक्ट्स ऐंड क्राइसिस’ (1974), ‘इण्डियन प्लानिंग इन क्राइसिस’ (1974), ‘नेहरू: आइडियॉलॅजी ऐंड प्रेक्टिस (1988) और अस्सी के दशक में चार खण्डों में प्रकाशित ‘कम्युनिस्ट पार्टी केरालिथल’ (केरल में कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास)। 1998 में देहांत के ठीक पहले ईएमएस अपना महाग्रन्थ (MAGNUM  OPUS) ‘अ हिस्ट्री ऑफ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया फ़्रॉम 1920 टू 1998’ पूरी करने में व्यस्त थे। बाद  में  यह  रचना पार्टी  के  पत्र ‘देशाभिमानी’ में धारावाहिक प्रकाशित हुई.

बेमिसाल ईमानदारी के परिचायक ईमानदारी बेमिसाल ने 19 मार्च, 1998 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन आज भी लोग उनके संघर्षों से सीख लेने का उदाहरण देते हैं.

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