संजय रोकड़े
लो जी। विश्व के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल से भारत में हिन्दुत्व के झंडाबरदार प्रधानमंत्री एक बार फ़िर वैश्विक कुटनीति व रणनीति में पिछड़ गये है। नरेंद्र मोदी भारत से नेपाल तक ट्रेन चलाने के लिए सर्वे ही कराते रह गये और चीन ने नेपाल तक रेल सेवा शुरु कर मालगाड़ी दौडा दी।
अब सवाल तो ये भी खड़ा हो रहा है कि आखिर 56 इंच के सीने वाला हिन्दू प्रधानमंत्री हिन्दू राष्ट्र नेपाल से अपने कुटनीतिक रिश्ते कायम करने में पिछड कैसे गया। या कहीं ऐसा तो नही है कि उसे नेपाल की वर्तमान सरकार या सत्ता शासक उतना तवज्जो नही दे रहें है जितनी चीनी सरकार को मिल रही है।
बहरहाल सवाल तो और भी अनेक है जो मौजूदा वक़्त पर खड़े होते है लेकिन ये वक़्त भारत के प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री को शुभकामनाएं और बधाईयां देने का भी है। वो इसलिए कि आखिर इनकी नाक में दम करके रखने वाले चीन ने वो काम कर दिखाया है जो ये दोनों करने की सोचते ही रह गए है।
ये बेहद विचारणीय और चिंतनीय बात है कि आखिरकार कैसे भी चीन ने भूवैज्ञानिक, भूराजनीतिक और तकनीकी समस्याओं को पार करके नेपाल तक रेल चलाने में कामयाबी हासिल कर ही ली।
चीन और नेपाल के लिए ये बड़े ही गर्व की बात है कि आखिर पहली बार चीन से नेपाल के मालगाड़ी रवाना कर ही दी।
चीन नेपाल रेल सेवा के संबंध में चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारी जी रोंग ने मीडिया को बताया कि चीन के गांसु प्रांत के लांझु शहर से दक्षिण एशिया के लिए मालगाड़ी आज याने 24 फरवरी को रवाना हुई है। यह ट्रेन काठमांडू शहर 9 से 10 दिनों में पहुंचेगी। जी रोंग का कहना है कि इस रेल सेवा के शुरु होने से समुद्री रास्ते से नेपाल सामान पहुंचाने में लगने वाले समय में 15 दिनों की बचत होगी।
आपको बता दें कि लांझु से काठमांडू के बीच लगभग 3200 किलोमीटर की दूरी है। यह चीन-नेपाल की संयुक्त परिवहन सेवा है। इस परियोजना पर 2016 से काम चल रहा था।
काबिलेगौर हो कि इस परियोजना का उद्देश्य चीन-दक्षिण एशिया व्यापार को मजबूती प्रदान करना बताया जा रहा है। इस परियोजना का रेलमार्ग चीन के बेल्ट एंड रोड प्रॉजेक्ट का हिस्सा है।
सनद रहे कि नेपाल की भौगोलिक परिस्तिथियों के चलते भारत का नेपाल के साथ व्यापार में एक तरफा राज था। या यूं कहे कि भारत की नेपाल पर व्यापारिक मोनोपाली थी जो चीन से नेपाल तक रेल सेवा शुरु होने के बाद खत्म हो जायेगी।
आप इस बात को ऐसे भी समझ सकते है कि नेपाल एक लैंडलॉक्ड देश है। यानि कि यह चारों तरफ से जमीन से घिरा हुआ है। तीन तरफ से भारत और एक तरफ चीन से घिरा हुआ है।
उत्तर में हिमालय के कारण चीन को नेपाल के साथ व्यापार करने में खासी दिक्कतें आ रही थी। ऐसे में अभी तक केवल भारत का ही नेपाल के साथ व्यापार पर दबदबा था जो अब पूरी तरह से खत्म हो जायेगा।
बड़ी बात तो ये है कि ये रेल परियोजना इसके पूर्व ही शुरु हो जाती गर नेपाल के पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा चीन रेल परियोजना के लिए व्यवसायिक लोन के ऑफर को खारिज न कर देते। शेर बहादुर को ड़र था कि कहीं नेपाल भी श्रीलंका की तरह कर्ज के जाल में न फंस जाएं इसलिए कर्ज लेने से इंकार कर दिया था।
लेकिन हाल ही में नेपाल में वामपंथी विचारधारा वाली पार्टी के सत्ता में आने के बाद से एक बार फ़िर से चीन का नेपाल पर प्रभाव बढ़ा और नेपाल में नई सरकार बनने के बाद चीन ने ऐलान किया कि वह बेल्ट एंड रोड परियोजना को काफी तेजी से आगे बढ़ाएगा।
सच तो ये है कि नेपाल साल 2017 में सबसे पहले प्रचंड के पीएम रहने के दौरान ही बीआरआई में शामिल हो गया था लेकिन किसी कारणवश बात आगे नही बढ़ पाई।
खैर, देर से ही सही लेकिन चीन ने नेपाल तक रेल चला दी है। अब देखना ये है कि भारत के प्रधानमंत्री नेपाल से भारत के अच्छे व्यापारिक संबंध कैसे कायम रखते है।
चीन ने तो नेपाल तक रेल सेवा शुरु करके भारत को घेरने की पूरी पूरी रणनीतिक तैयारी कर ली है। पर हमारे हिन्दुत्व के झंडाबरदार प्रधानमंत्री भारत से नेपाल रेल सेवा कब शुरु करते है।
संजय रोकड़े
पत्रकार