मुनेश त्यागी
16 फरवरी को भारत के अधिकांश किसान और मजदूरों के संगठनों की ऐतिहासिक हड़ताल होने जा रही है जिसे “ग्रामीण भारत बंद” का नाम दिया गया है। इस देशव्यापी आंदोलन का आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय मजदूर फेडरेशनों ने किया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने एक पत्र लिखकर भारत के प्रधानमंत्री मोदी से वार्ता करके अपनी मांगों को मानने का निवेदन किया है। यहीं पर यह बताना भी जरूरी है कि मोदी सरकार ने किसानों के साथ किए गए दो साल पहले के समझौते को अभी तक लागू नहीं किया है।
संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय मजदूर फेडरेशनों ने कई महीने पहले ही इन मांगों को स्वीकार करने के बारे में भारत सरकार को लिखित पत्र दिया था, मगर सरकार ने इस पत्र पर कोई कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की। उसने मजदूर और किसानों के संयुक्त घोषणा पत्र पर कोई विचार नहीं किया और वह मामले को लगातार टालने की नीति अपनाती रही और आखिरकार भारत के संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की संयुक्त कमेटी को 16 फरवरी 2024 को ग्रामीण भारत बंद का आह्वान करना पड़ा है।
इस देशव्यापी बंद को लेकर जनता में उत्साह है, गांव-गांव और मजदूरों में प्रचार प्रसार जारी है। लोग अचंभित है कि सबका विकास सबका साथ लेकर चलने की बात कहने वाली सरकार, जनता के कल्याणकारी मुद्दों से मुंह मोड़ रही है, उनसे बात नहीं कर रही है और वह जनता को आंदोलन करने को बाध्य कर रही है। इन्हीं सब कारणों से परेशान होकर और इन्हीं सब वजह से 16 फरवरी को भारत के किसानों मजदूरों का ऐतिहासिक आंदोलन होने जा रहा है।
इस बंद के आह्वान में संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ सीटू, एचएमएस, इंटक, एटक और देश की बड़ी-बड़ी राज्य और केंद्रीय मजदूर फेडरेशनें शामिल हैं। सरकार की टाल मटोल की नीतियों के कारण भारत के किसान और मजदूरों को कल राष्ट्रीय स्तर पर हड़ताल पर जाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
यहां पर यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर इस देश के अधिकांश मजदूर और किसान क्या चाहते हैं और सरकार इन मांगों को क्यों स्वीकार करने को तैयार नहीं है, या इन पर क्यों खुले दिल से बातचीत करने को तैयार नहीं है? इन मांगों पर सरसरी नजर डालकर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अगर मोदी सरकार इन मांगों को स्वीकार करके लागू कर दे तो जो मोदी सरकार का नारा है “सबका साथ सबका विकास” तो वास्तव में इस देश का विकास हो जाएगा और यह देश सचमुच में विश्व गुरु बनने की राह पर चल पड़ेगा।
मगर केंद्र सरकार सोची समझी जनविरोधी नीतियों पर चल रही है। सरकार एक तरफ तो विश्व गुरु बनने का नाटक कर रही है, मगर वह विश्व गुरु बनने की नीतियों को अपनाने के रास्ते पर चलने को तैयार ही नहीं है, लोगों का विकास करने को तैयार ही नहीं है, सिर्फ भाषणों में, नारों में, मीडिया और अखबारों में, सबका विकास और सबका साथ की बात हो रही है, मगर इस नारे को धरती पर नहीं उतारा जा रहा है। यह सबकुछ देखकर लगता है कि यह सरकार की सबसे बड़ी नारेबाजी है, और उसका सबका साथ सबका विकास का नारा सिर्फ जुमलेबाजी है, सिर्फ दिखावा है। हकीकत में इसका जनता से कोई लेना-देना नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ चंद पूंजीपति दोस्तों के विकास की नीतियों को ही लागू करने पर आमादा है।
यहीं पर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय मजदूर मोर्चा की मांगे क्या हैं? उनकी मांगों को दो भागों में बांटकर देखा जा सकता है,,,,,,किसानों की मांगें और मजदूरों की मांगें।
किसानों की मांगे इस प्रकार हैं ,,,
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,,,,समस्त किसानों को फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइस दिया जाए,
,,,,कर्जदार किसानों की संपूर्ण रूप से कर्ज मुक्ति की जाए,
,,,, 2020-21 के किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए,
,,,, किसानों के खिलाफ लंबित सारे मुकदमें वापस लिए जाएं,
,,,, सिंधु बॉर्डर पर शहीद किसानों का शहीद स्मारक बनाया जाए,
,,,, लखीमपुर के किसानों के हथियारों को तुरंत सजा दी जाए,
,,,, सभी फसलों का समुचित बीमा किया जाए और बीमे की समुचित राशि किसानों को दी जाए,
,,,, बिजली की बढ़ी हुई दरें वापस ली जाएं और स्मार्ट मीटर लगाने पर रोक लगाई जाए,
,,,, खेतों, दुकानों और घरेलू इस्तेमाल के लिए 300 यूनिट प्रति महीना बिजली मुफ्त दी जाए।
मजदूरों की मांगे
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,,,, मजदूर विरोधी चारों श्रम संहिताएं वापस ली जाएं,
,,,,मजदूर की कैजुअल योजना बंद की जाए और रोजगार को स्थाई किया जाए,
,,,,निर्माण मजदूरों को इएसआई का लाभ दिया जाए,
,,,, प्रवासी मजदूरों के लिए समुचित नीतियां बनाई जाएं,
,,,,नई पेंशन योजना खत्म करके पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए और सभी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए,
,,,,, वैल्थ टैक्स और सक्सेशन टैक्स को पुन चालू किया जाए,
,,,, महंगाई पर रोक लगाई जाए और खाने पीने की सभी चीजों, दवाइयां और मशीनों पर जीएसटी खत्म की जाए,
,,,, राष्ट्रीय स्तर पर प्रति महीना 26,000 रु न्यूनतम वेतन निर्धारण किया जाए,
,,,, पब्लिक क्षेत्र के सरकारी संस्थाओं का निजीकरण बंद किया जाए,
,,,, काम के अधिकार को बुनियादी अधिकार बनाया जाए,
,,,, मनरेगा में 200 दिन प्रतिवर्ष और ₹600 प्रतिदिन वेतन सुनिश्चित किया जाए,
,,,, शहरी रोजगार गारंटी कानून बनाया जाए।
इसी के साथ इसमें और मांगे भी जोड़ी जा सकती हैं,जैसे,,,,,
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,,,, शिक्षा को आधुनिक और मुफ्त करो और दोहरी शिक्षा प्रणाली खत्म करो,
,,,, सभी को मुफ्त इलाज की व्यवस्था करो,
,,,, सभी को अनिवार्य रोजगार मोहिया कराओ अन्यथा बेरोजगारी भत्ता दिया जाए,
,,,, 60 वर्ष से ऊपर वाले सभी पात्र महिलाओं और पुरुषों को राष्ट्रीय स्तर पर बुढ़ापा पेंशन दी जाए,
,,,, सभी मुकदमों का 90 दिन में निस्तारण किया जाए,
,,,, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए मुकदमों के अनुपात में अदालतें स्थापित की जाएं,
,,,,मुकदमों के अनुपात में सभी मुकदमों के निपटारे तक, विशेष जज, स्टेनों एवं कर्मचारीगण नियुक्त किए जाएं,
,,,,केंद्र और राज्य सरकारों पर खाली पड़े पदों को 90 दिन के अंदर भरा जाए और
,,,,सरकार की समस्त नीतियों को कल्याणकारी बनाया जाए।
इन समस्त जायज़ मांगों को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अगर सरकार इन सारी मांगों को मानकर लागू कर दे तो भारत सचमुच विश्व गुरु बन जाएगा और मोदी सरकार का नारा, सबका साथ सबका विकास, असल में धरती पर उतर जाएगा और इसी के साथ-साथ भारत के संविधान को पूर्ण रूप से धरती पर उतारा जा सकेगा और ऐसा करके ही हमारा देश संप्रभुसंपन्न, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, जनवादी, गणराज्य कायम हो सकेगा, सबको न्याय मिल सकेगा, सबका विकास हो सकेगा, भारत में समता और समानता का राज्य कायम हो जाएगा और सारी जनता में भाईचारा कायम हो जाएगा और सारी जनता बिना किसी रोक-टोक और भेदभाव के विकास के मार्ग पर चल पडेगी।