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 प्रकृति प्रेमी किशोर सन्त विचारों से समाजवादी व गांधीवादी थे

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हिम्मत सेठ

पिछले दिनो किशोर संत जिनका पूरा नाम चन्द किशोर संत है, का 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उदयपुर और विशेष तौर पर पर्यावरण व स्वंय सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं के लिए उनका निधन बड़ा आघात है। मेरा परिचय तो किशोर संत साहब से बहुत बाद में हुआ लेकिन उनके बारे में हमने परिचय के पहले ही बहुत सुना था। हमारे कई दोस्त जो विद्या भवन रूरल इंस्टीट्युट में काम करते हैं ने उनके बारे में बहुत सी बातें बताई। हुआ यूं कि विद्या भवन इन्स्टीट्यूट के संस्थापक मोहन सिंह जी महता ने किषोर जी को रूरल इन्स्टीट्यूट का निदेशक नियुक्त किया। जिसका इंस्टीट्यूट के छात्रों ने विरोध किया। विरोध इतना बढ़ा कि उन्हें हटाना पड़ा। तब किशोर जी को सेवा मन्दिर में महासचिव बनाया। सेवा मन्दिर एक स्वंयसेवी संस्था है जो प्रकृति की रक्षा, पर्यावरण, आदिवासी समाज के विकास, उनकी संस्कृति और अनौपचारिक शिक्षा पर काम करती है। किशोर जी ने लगभग 8 साल सेवा मन्दिर में काम किया और काम करने के दौरान ही उन्होंने उबेश्वर विकास मण्डल के नाम से एक दूसरी संस्था का गठन किया। उस समय सेवा मन्दिर में असन्तोष फैल रहा था और कुछ ऐसे कारण रहे कि बहुत से कार्यकर्ताओं ने सेवा मन्दिर से त्याग पत्र देकर अपने एन.जी.ओ. बनाये या दूसरी संस्थाओं में गये। आस्था संस्थान, जागरण जन विकास समिति, सजीव सेवा समिति, गांधी मानव कल्याण सोसायटी, सहयोग आदि ऐसी संस्थाएं है जो सेवा मन्दिर से निकल कर बनाई गई। कुछ लोग मजाक में कहते थे ‘‘सेवा मन्दिर से प्रशिक्षण लो और अलग संस्था बनालो’’। सेवा मन्दिर में असन्तोष फैलने का बड़ा कारण यह था कि ग्रामीण और आदिवासियों की समस्याओं की जब प्रशासन नहीं सुन रहा था और कोई समाधान नहीं हो रहा था तो किशोर जी ने अन्य साथियों और आदिवासियों के साथ कलक्ट्री कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया और कलक्टर को समस्या समाधान के लिए बाध्य किया। इससे सेवा मन्दिर प्रशासन विशेष रूप से डॉ. मोहन सिंह मेहत्ता नाराज हो गये। विचारों में मतभेद इतना हो गया कि उन्हें सेवा मन्दिर छोड़कर उबेश्वर विकास मण्डल बनाना पड़ा। किशोर भाई ने उबेश्वर विकास मण्डल में निर्माण और संघर्ष का रास्ता अपनाया। यही गांधी जी का मॉडल था, संघर्ष और रचनात्मक काम। किशोर जी ने आदिवासी जीवन ज्ञान तंत्र को पुर्नजीवित करने का प्रयास किया, वनों के कटाव और अरावली की पहाड़ियों को बचाने के लिए संघर्ष किया वहीं उन्होंने प्लॉन्टेशन, खेती बाड़ी में सुधार, रोजगार के साधनों, सिंचाई के लिए एनिकट व धोरा का निर्माण भी कराया। किशोर भाई जल, जंगल, जमीन के आन्दोलन से भी जुडे़ रहे।़

किशोर संत ने उबेश्वर विकास मण्डल के माध्यम से बहुत से काम किये। आदिवासी समाज के लोगों में चेतना फैलाने का काम किया। सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर महिलाओं में बचत और आवश्यकता अनुसार निवेश का शिक्षण दिया। उसमें बैंक की मदद से आत्म निर्भर होने में बहुत काम हुआ।

किशोर जी से मेरा विशेष परिचय 1988 में हुआ जब हम एक आन्दोलन में साथ-साथ काम कर रहे थे। आन्दोलन था बिछड़ी गांव के किसानों और आम नागरिकों का। वहां के लोगों ने हमारे मित्र एडवोकेट मन्नाराम डांगी जो स्वयं भी प्रकृति प्रेमी था और पर्यावरण के क्षण के विरूद्ध काम करते हैं, को सूचित किया कि गांव में बहुत समस्या है। हुआ यूं कि उदयसागर की तहलटो में फतहनगर के एक सेठ ओम अग्रवाल ने 5 फैक्ट्रियाँ लगाई जिसमें एक सुपर फास्फेट बनाने की थी और एक गंधक का तेजाब बनाने की थी। इसमें सबसे घातक फैक्ट्री थी एच. एसीड की। एच एसीड का उत्पादन विदेशों में कई जगह बन्द है। एच एसीड से बिछड़ी और आसपास के बहुत से गांवों की जमीन खराब हो गई। कुए व हैण्डपम्प का पानी भी खराब हो गया। आम और अमरूद के बहुत से पेड़ सूख गये। कुल मिलाकर प्रकृति व पर्यावरण खराब हो गया। आम आदमी का रहना दूभर हो गया। वकील सा. ने हम सब लोगों की मीटिंग बुलाई और तय किया कि इसके विरूद्ध संघर्ष करेंगे। गांव वाले भी तैयार थे लेकिन उद्योगपति और प्रशासन की मिली भगत के चलते सब गोरख धन्धा चल रहा था। किशोर संत की अध्यक्षता में यह आन्दोलन 21 दिन चला। इन दिनों में ही मैं किशोर संत साहब के सम्पर्क में आया और जाना कि काम के प्रति उनका कितना समर्पण है। 21 दिन रोज सवेरे घर से निकलकर बिछड़ी गांव जो 22-23 किलोमीटर दूर है जाना, लोगों को तैयार करना, गांवों का दौरा करना और शाम को घर आना यही रूटीन बन गया था हमारा। हमने फैक्ट्री बंद करवाई, कलक्टर कार्यालय पर भी धरना प्रदर्शन किया। बाद में वकील साहब ने कोर्टों में केस लड़ा, सुप्रीम कोर्ट से भी जीते। गांव के लिए मुआवजा भी तय हुआ जो करोड़ों में था। लेकिन आज तक उसका भुगतान जिला कलक्टर नहीं करवा पाया है। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कम्पाउण्ड इन्टरेस्ट के लगाकर 200 करोड़ रू. दिलवाने को आदेश दिया लेकिन लचर न्याय व्यवस्था और मिली भगत के चलते अभी तक कुछ नहीं हुआ। विशेष बात यह है कि इस संघर्ष में किशोर सन्त साहब ने प्रो. जी.डी. अग्रवाल जो एक जाने माने पर्यावरण विद थे। उनके साथ सुनिता नारायण, जो सेन्टर फार साइन्स एण्ड एनवायरमेन्ट की निदेशक थी और अनिल अग्रवाल से सम्पर्क किया और जांच और सर्वे करवाकर सुप्रीम कोर्ट में मामले को पुख्ता किया। लोकल लेवल पर सर्वे करने में डॉ. आर.एम. लोढ़ा ने भी अपनी टीम के साथ पूरा सहयोग किया। यह किशोर संत का ही जलवा था कि इस विवाद को राष्ट्रीय स्तर पर ले गये। उसके बाद तो किशोरसंत के साथ बहुत से आन्दोलन में साथ-साथ रहे। ऐसा ही एक विवाद उदयपुर की पेयजल समस्या के समाधान के लिए एक बांध बनाने के विरोध का था। वस्तुतः बांध का विरोध नहीं था लेकिन उपयुक्त जगह को लेकर विरोध था। हमारे मित्र है गणेश पुरोहित। उनका गांव है झाड़ोल पंचायत समिति में चन्दवास। उदयपुर की पेयजल समस्या को हल करने के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने एक पेयजल परियोजना बनवाई-देवास जल परियोजना, देवास योजना चार चरणों में पूरी होने वाली योजना थी। एक चरण 1972 के पहले पूरा हो गया लेकिन बाकी चरणों पर काम होता उसके पहले ही उदयपुर के विधायक व राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया को कर्नाटक का राज्यपाल बनाकर भेज दिया और काम अधूरा रह गया। इसलिए इस बीच इस योजना से छेड़छाड़ हुई और एक नई योजना बनी मांसी-वाकल योजना। इस योजना में भी नदी वही है। लेकिन बांध के स्थान बदल दिये अब जो बांध बनना है उसमें विस्थापन ज्यादा है पानी भी पम्प करके लाना पड़ता था। इसका विरोध किया। इसमें भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और डूब क्षेत्र में आने वाले गांव और नागरिकों की समस्याओं को उठाया किशोर संत साहब ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर से सम्पर्क किया और उदयपुर लाए। उनकी प्रेस कान्फ्रेंस हुई और तहसील झाड़ोल के एसडीओ कार्यालय पर आम सभा हुई। वार्ता हुई, काम रूका। मैं कहना चाहता हूं कि किशोर संत के राष्ट्रीय स्तर पर प्रगाढ़ सम्बन्धों का लाभ उदयपुर के गांवों के लोगों को भी प्राप्त हुआ। एक थे बी.डी. शर्मा साहब। उनसे भी मैं किशोर संत साहब के साथ ही मिला था। बी.डी.शर्मा साहब ने ग्राम सभा के माध्यम से गांव में जनता का राज का अभियान चला रखा था। बी.डी. शर्मा साहब आई.ए.एस. अधिकारी थे। एक विश्व विद्यालय में कुलपति भी रहे। आदिवासी विकास आयोग के अध्यक्ष भी रहे। उनका नारा था। दिल्ली, जयपुर में हमारी सरकार, हमारे गांव में हम सरकार। पूरे देश में घूम घूम कर उन्होंने कई गांवों में स्वायत्त गांव का अभियान चलाया। पहले उन्होंने संसद से संविधान में संशोधन कराकर आदिवासियों के हित में कानून बनवाया। 

उसके बाद पैसा कानून लागू करवाने के लिए आन्दोलन चलाया गांव-गांव जाकर पैसा कानून के मुख्य बिन्दुओं को शिलापट्ट पर लिखवाकर पत्थर गड़ी करवाई और ग्राम सभाओं की शक्ति का एहसास करवाया। ग्राम सभा की शक्ति के चलते ही नियमगिरी की पहाड़ियों के खनिज की भूमि वेदान्ता को आवंटित होने से बचा लिया। मामला उच्चतम अदालत तक गया और फैसला ग्राम सभा के पक्ष में आया। इस आन्दोलन को बी.डी. शर्मा साहब के साथ मिलकर किशोर जी ने उदयपुर जिले में फैलाया और लोगों में आस्था जगाने का काम किया। किशोर संत ने उदयपुर में कोई प्रगतिशील आन्दोलन हो उसके समर्थन में अवश्य अपनी आवाज उठाते थे। ऐसा ही एक आन्दोलन था बोहरा यूथ का आन्दोलन। बोहरा इस्लाम धर्म के शिया शाखा का एक छोटा सा हिस्सा है। उसके धर्मगुरू सैयदाना सा. धर्म के नाम पर बहुत सारे जुल्म कर रहे थे और बोहरा यूथ संस्था ने उनके विरूद्ध बड़ा आन्दोलन खड़ा किया था।

किशोर संत साहब के साथ हम सब लोग उस आन्दोलन में भागीदार थे। इस आन्दोलन में महिलाओं की उपस्थिति काबिले गौर थी इसमें भी संत साहब ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। उदयपुर में पत्रकार रहे मदन मोदी ने स्वयंसेवी बनकर संस्थाओं में काम करने की शुरूआत किशोर संत की प्रेरणा से उबेश्वर विकास मण्डल से ही की। बाद में उन्होंने कोटड़ा के आदिवासियों के साथ एकी आन्दोलन का गठन किया। यह आन्दोलन वास्तव में कोल्यारी में क्रान्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी स्व. मोतीलाल जी तेजावत सा. ने आजादी के पहले आदिवासियों को साथ लेकर चलाया था। मोतीलाल तेजावत के नाम से महाराणा मेवाड़ ही नहीं अंग्रेज रेजिडेन्ट के भी सुरसुरी पैदा हो जाती थी। उस ऐतिहासिक संस्था के नाम से काम किया तो उसे भी किशोर सन्त साहब ने सहयोग किया। किशोर संत साहब महावीर समता सन्देश को भी बहुत गंभीरता से पढ़ते थे और इसके प्रकाशन के लिए भी कई सुझाव देते रहते थे। अखबार में भी उनका आग्रह स्थानीय खबरों को अधिक स्थान देने का होता था। 

महावीर समता सन्देश के सभी कार्यक्रमों में बड़े उत्साह से भाग लेते थे। बहुत से कार्यक्रमों में तो अतिथियों को बुलाने के सुझाव व उनको बुलाने में सहयोग भी मिलता था। कुल मिलाकर किशोर सन्त विचारों से समाजवादी गांधीवादी व्यक्ति थे। जो हर गरीब और जरूरत-मंद को सहयोग करने को तत्पर रहते थे। वे पर्यावरण को शुद्ध रखने, प्रकृति का अंधाधुध दोहन के विरूद्ध थे। जंगल, पहाड़, नदियों व वनों से उन्हें प्यार था। हर हालत में उनकी हिफाजत करना चाहते थे। हम किशोर जी के निधन पर उन्हें शत् शत् नमन् करते हैं और श्रद्धांजलि पेश करते हैं।

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