अग्नि आलोक

निसर्ग बुद्धिहीन नेताओं/जनता को समझ दे ताकि जंगल, खेत और ईको सिस्टम बचे

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 पुष्पा गुप्ता

    _अगर आपको ये समझना है कि ईको सिस्टम यानि हमारी प्रकृति का पारिस्थितिकी तंत्र कैसे काम करता है तो आपको अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क के उदाहरण से इसे समझना होगा._

      हमारा ईको सिस्टम एक जटिल कार्यप्रणाली है जिसे आप अपनी आखों से देखकर कभी समझ नहीं सकते हैं. आप ये कभी नहीं समझ पायेंगे कि जंगल, मैदान, नदी, पेड़ पौधे और जानवर कैसे मिलकर हमारे पारिस्थितकी तंत्र का निर्माण करते हैं.

     _इसलिए इसे आपको इस उदाहरण से समझना होगा :_

           अमेरिका का येलोस्टोन नेशनल पार्क दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षित वन्य जीवन का स्थान है.. लगभग नौ हज़ार स्क्वायर किलोमीटर के दायरे में फैला ये वन्य जीवन क्षेत्र पच्चीस साल पहले तक अपने जर्जर होते पारिस्थितिकी तंत्र से जूझ रहा था.

       अमेरिका में बर्फ़ में रहने वाले सफ़ेद भेड़ियों के शिकार पर कोई रोक नहीं थी इसलिए लोगों ने इन भेड़ियों को मार मार के लगभग ख़त्म कर डाला.. येलोस्टोन नेशनल पार्क से भेड़ियों समेत तमाम प्रजातियाँ धीरे धीरे समाप्ति के कगार पर पहुँच रही थीं

     तभी वहां की जनता की तमाम मांग और विरोध पर अमेरिकी सरकार ने भेड़ियों को संरक्षित प्राणी की सूची में सम्मिलित किया.

फिर 1995 में कनाडा से महज़ 31 भेड़िये येलो स्टोन नेशनल पार्क में ला कर छोड़े गए.. सरकार ने ये सोचकर भेड़ियों को वहां छोड़ा ताकि अपनी जनता को दिखा सकें कि वो भेड़ियों को दुबारा बसा रहे हैं.. मगर इन भेड़ियों की वजह से पार्क में जो कुछ भी हुआ उससे प्रकृति वैज्ञानिकों की आखें खुली की खुली रह गईं

       भेड़िये दुनिया के सबसे समझदार शिकारियों में से एक माने जाते हैं. भेड़ियों ने पार्क में आते ही अपना काम शुरू कर दिया.. बेतहाशा बढ़ चुकी “शाकाहारी” प्रजातियों के लिए भेड़िये एक मुसीबत की तरह आये.

        येलोस्टोन में बारहसिंघों की आबादी इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि उसकी वजह से तमाम अन्य जीवों के लिए भोजन की उपलब्धता में भारी कमी हो गयी थी.. इन भेड़ियों ने पहले  बीमार, और कुपोषित बारहसिंघों को मारना शुरू किया.

      क्यूंकि ये आसानी से उपलब्ध थे. भेड़िये इतने समझदार जीव होते हैं कि सर्दी के मौसम में जब खाने की कमी होती है तो वो गायों की जगह भैसों को मारना शुरू करते हैं और गायों को अपनी आबादी बढ़ाने देते हैं.

    ये मौसम के हिसाब से अपना खाना चुनते हैं जिसकी वजह से जंगल में शाकाहारी जीवों की आबादी का संतुलन बना रहता है.

      येलोस्टोन में जब भेड़िये आये तो उनकी वजह से बारहसिंघे नदी के किनारों को छोड़कर जंगल के बीच भाग गए.

अन्य शाकाहारी भी सुदूर जंगलों में भाग गए.. उस से हुआ ये कि नदी के किनारों पर जो वनस्पति और पेड़ शाकाहारियों द्वारा पूरी तरह से ख़त्म कर दिए गए थे वो उग कर बड़े होने लगे.

      पेड़ बड़े हुवे तो तमाम चिड़ियाँ वापस आयीं.. नदी किनारे के पेड़ बड़े हुवे तो ठन्डे वातावरण वाले उदबिलाव वापस आये.. उदबिलाव (Beaver) सर्दियों में शिकारियों से अपने खाने को बचाने के लिए नदी में एक बाँध का निर्माण करते हैं.. जिसे Beaver Dam बोला जाता है.

       उसमें ये नदी किनारे लगे वृक्षों से टहनियां तोड़ तोड़ कर लाते हैं और पेड़ के लट्ठों का पूरा जाल बना कर ऊपर से कीचड़ लगा कर नदी का बहता पानी रोककर एक तालाब जैसा बना देते हैं.. इस तालाब में ये उदबिलाव सर्दियों के लिए अपना खाना सुरक्षित रखते हैं.

        उदबिलाव जो बाँध बनाते हैं उस से तमाम तरह की मछलियों के प्रजनन में आसानी होती है.. जिन मछलियों के अंडे नदी की तेज़ धारा में बह जाते थे वो उदबिलाव के बाँध से रुक गए और नदियों में मछलियों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई.. जब मछलियाँ बढीं तो भालू वापस आ गए.

ऐसे तमाम वो जीव जो वापस दूसरी जगह चले गए थे सब वापस आ गए क्यूंकि नदी के किनारों के क्षेत्र हरे भरे हो गए.

      उन 31 भेड़ियों की वजह से येलो स्टोन नेशनल पार्क का ईको सिस्टम जो पूरी तरह तबाह होने की कगार पर था.. वापस लौट आया.. और ये सब सिर्फ 25 साल के भीतर हो गया.. अब वहां भेड़ियों की तादात 500 के आसपास हो चुकी है और बारहसिंघे, गाय, भैंस और बाक़ी सारे शाकाहारियों की जनसंख्या नियंत्रण में है जिसकी वजह से वो पार्क अब पूरी तरह से फल फूल रहा है.

       हमारा पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे काम करता है.. खूंखार माँसाहारी जानवर जिस भी क्षेत्र से गायब हो जाते हैं, वहां का पर्यावरण संतुलन पूरी तरह से बिगड़ जाता है.. क्यूंकि ये जानवर ही पारिस्थितिकी तंत्र के शिखर पर बैठकर वनस्पतियों और नदियों की रक्षा करके दूसरे अन्य जीवों को पनपने का अवसर प्रदान करते हैं.

       कितनी अजूबी है हमारी प्रकृति. मगर इसे हम अपनी मानव भावनाओं के द्वारा कभी समझ नहीं सकते हैं.

        पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए हमें प्रकृति के हिसाब से सोचना होगा. जो जैसा है उसे हमें वैसा देखने की समझ विकसित करनी पड़ेगी. भारत के तमाम इलाके इस समय भयंकर रूप से अपने ख़राब और दम तोड़ते ईको सिस्टम से जूझ रहे हैं. 

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