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स्वामी विवेकानंद के विचारों को जीवन में उतारने की जरूरत

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मुनेश त्यागी

      स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति और सभ्यता के एक बहुत बड़े महान स्वामी और संत हुए हैं। उन्होंने देश, दुनिया, समाज और मनुष्य की बेहतरी के बारे में अपने बहुत सारे विचार व्यक्त किए हैं, जैसे उन्होंने ब्रह्मांड के भेद खोलने की बात की है, धर्म की बात की है, वाहियात विचार त्याग कर प्राणी मात्र से प्यार करने की बात की है ,दोष त्यागने की बात की है, गरीबों द्वारा महान कार्य करने की बात की है, धार्मिक झगड़े छोड़ने की बात की है, सबको “भारतवासी” बोलने की बात की है, शांति और प्रेम की ध्वजा लेकर आगे बढ़ने की बात की है। उन्होंने नारी मुक्ति की बातें की हैं।

       आज के समय में जब हमारे देश में भारत की मिली-जुली संस्कृति पर, ज्ञान के साम्राज्य पर, विवेक लॉजिक और तर्क पर, भारत के संविधान पर, भारत के इतिहास पर, भारत की मिली-जुली और साझी संस्कृति पर, हमले किया जा रहा है तो ऐसे में स्वामी विवेकानंद के कुछ मानवीय और रोशन विचारों को जानना बहुत जरूरी है। उन्होंने अपने विमर्श के दौरान ऐसी बहुत सी बातें कही है जिन्हें देखकर और जिन्हें अपने जीवन और कार्यों में उतार कर, हम अपने काम को और अपने मार्क्सवादी लेनिनवादी मिशन को, और मानवीय, प्रभावी और कल्याणकारी बना सकते हैं।

       स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आवश्यकता है ऐसी अदम्य इच्छाशक्ति की जो ब्रह्मांड के सारे रहस्यों को भेद सकती हो। यदि यह कार्य करने के लिए अथवा समुद्र के मार्ग में जाना पड़े, तथा सब तरह से मौत का सामना करना पड़े, तो हमें यह काम भी करना पड़ेगा। हम लोग बहुत रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं है‌। अब अपने पैरों पर खड़ा हो जाओ और मर्द बनो। हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है जिससे हम मनुष्य बन सकें। हमें ऐसे सिद्धांतों की जरूरत है जिससे हम मनुष्य हो सकें, हमें ऐसी सर्वगुण संपन्न शिक्षा चाहिए जो हमें मनुष्य बना सके।

      और यह सत्य की कसौटी है कि जो भी तुमको शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से दुर्बल बनाए, उसे जहर की तरह त्याग दो। सत्य तो वह है, जो शक्ति दे, जो हृदय के अंधकार को दूर कर दे, जो हृदय में स्फूर्ति भर दे। हमें आज खून में तेजी और स्नायुओं में बल की जरूरत है। नीति परायण और साहसी बनने की जरूरत है। अंत:करण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए । पूर्ण तथा साहसी बनो। प्राणों के लिए कभी मत डरो, धार्मिक मत-मतांतरों को लेकर व्यर्थ में माथापच्ची मत करो। कायर लोग ही पाप आचरण करते हैं, वीर पुरुष कभी भी पाप अनुष्ठान नहीं करते, यहां तक कि वे कभी मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणी मात्र से प्रेम करो।

     उन्होंने आगे कहा है कि हमारे जातीय जीवन में एक प्रकार के भयानक रोग का बीज समा रहा है और वह है प्रत्येक विषय को हंसकर उड़ा देना, गाम्भीर्य का अभाव। इस दोष का संपूर्ण रूप से त्याग करो, वीर बनो, श्रद्धा संपन्न बनो। हमारे अंदर विश्वास, सहानुभूति, दृढ़ विश्वास और ज्वलंत सहानुभूति होनी चाहिए। यही महानता का एकमात्र रहस्य है।

      वे आगे कहते हैं कि तुम लोग धनी मानियों और बड़े आदमियों का मुंह ताकना छोड़ दो। याद रखो, संसार में जितने भी बड़े-बड़े और महान कार्य हुए हैं, उन्हें गरीबों ने किया है। इसलिए दृढ़ चित्त बनो और इससे भी बढ़कर पूर्ण पवित्र बनो। उन्होंने कहा है कि हम सब कुछ हैं, हम सब कुछ कर सकते हैं और मनुष्य को सब कुछ करना होगा। अतः भाइयों, तुम अपनी संतानों को उनके जन्म काल से ही इस महान जीवनप्रद और उदात्त  तत्व की शिक्षा देना शुरू कर दो।

       उन्होंने कहा है कि आत्मविश्वास का आदर्श ही हमारी सबसे बड़ी सहायता कर सकता है मानव जाति के इतिहास में सभी महान स्त्री पुरुषों में यदि कोई महान प्रेरणा सबसे अधिक सशक्त रही है तो वह यही आत्मविश्वास है। वे इस ज्ञान के साथ पैदा हुए थे कि वे महान बनेंगे और महान बनें भी।

      धर्म के बारे में उन्होंने कहा था कि धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो। धर्म संबंधी सभी झगड़ा फसादों से केवल यह प्रकट होता है कि यह आध्यात्मिकता नहीं है, धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते हैं। उन्होंने कहा था कि निष्कपट, विश्वास और सउद्देश्य निश्चय ही जय लाभ करेंगे और इन दोनों अस्त्रों से सुसज्जित होने पर अल्पसंख्यक लोग भी समस्त विघ्न बाधाओं को पराजित करने में समर्थ होंगे। जिन लोगों में सत्य, पवित्रता और निस्वार्थपरता विद्यमान है, उन्हें स्वर्ग या पाताल की कोई भी शक्ति, कोई क्षति नहीं पहुंचा सकती। इन गुणों पर, इन गुणों के रहने पर, चाहे समस्त विश्व ही किसी व्यक्ति के विरुद्ध क्यों ना हो जाए, वह अकेला ही उसका सामना कर सकता है, इसलिए उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत।

        उन्होंने कहा था कि तुम मत भूलना कि नीच, अज्ञानी, गरीब, चमार और मेहतर तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं। ऐ वीर! साहस का आश्रय लो। गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूं और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है। बोलो कि अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र भारतवासी, चांडाल भारतवासी, सब मेरे भाई हैं। तु गर्व से पुकार कर कहो कि हर भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं। बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है और भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है।

      उन्होंने कहा था कि भारत भूमि का उद्धार करने के लिए तुम सब के प्रति बस एक ही आदेश है कि चुप बैठने से काम नहीं होगा, निरंतर उन्नति के लिए चेष्टा करते रहना होगा। इसी से भारत का पुनरुत्थान होगा। वह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं, बल्कि शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा, इसीलिए तुम त्याग करो, महान बनो। कोई भी बड़ा कार्य, बिना त्याग के नहीं किया जा सकता।

       भारत की नारियों के बारे में स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि स्त्रियों की अवस्था को बिना सुधारे, भारत और जगत के कल्याण की कोई संभावना नहीं है, इसलिए हमारा आदर्श स्त्रियों की अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता है। प्रत्येक स्त्री के लिए, अपने पति को छोड़कर, अन्य कोई भी पुरुष पुत्र जैसा होना चाहिए। प्रत्येक पुरुष के लिए, अपनी पत्नी को छोड़कर, अन्य सभी स्त्रियां माता के समान होनी चाहिए। पुरुषों के लिए जैसे शिक्षा केंद्र बनाने होंगे, वैसे ही स्त्रियों के लिए भी स्थापित करने होंगे। स्त्रियों को बहादुर बनाना चाहिए। उन्हें आत्मरक्षा करना सिखाना चाहिए। इसके बिना हमारी स्त्रियां अपनी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकतीं।

       उन्होंने कहा था कि प्रतिज्ञा करो कि अपना सारा जीवन इन 30 करोड लोगों के उद्धार कार्य में लगा दो, जो दिन रात अवनति के गर्त में गिरते जा रहे हैं। मैं उसी को महात्मा कहता हूं जिसका हृदय, गरीबों के लिए द्रवीभूत होता है, अन्यथा वह दुरात्मा ही है। जब तक करोड़ों लोग,भूखे और अशिक्षित रहेंगे, तब तक मैं प्रत्येक उस आदमी को विश्वासघातक समझूंगा, जो उनके खर्च पर प्रशिक्षित हुआ है परंतु जो उन पर तनिक भी ध्यान नहीं देता। क्या तुम अपने भाई– मनुष्यजाति –को प्यार करते हो? ईश्वर को ढूंढने कहां चले हो, ये सब गरीब, दुखी, दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं हैं? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नही करते?

      उन्होंने कहा था कि चरित्र की ही सब जगह विजय होती है। ईर्ष्या और अहंभाव को दूर कर दो, संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो, हमारे देश में इसकी बहुत बड़ी आवश्यकता है। धीरज रखो और मृत्यु पर्यंत विश्वास पात्र रहो,  आपस में न लड़, रुपए पैसे के व्यवहार में शुद्ध भाव रखो, जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी। 

      उन्होंने कहा था कि प्रेम ही जीवन का एकमात्र विधान है। जो प्रेम करता है वही जीवित है। जो स्वार्थी है, वह मृतक है। इस बात के लिए कृतज्ञ होओ कि इस संसार में तुम्हें अपनी दयालुता का प्रयोग करने और इस प्रकार पवित्र एवं पूर्ण होने का अवसर प्राप्त हुआ है। हमें उसी मनुष्य जाति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, जिसकी हम सहायता करते हैं। मनुष्य की सहायता करना क्या हमारा परम सौभाग्य नहीं है?

      भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं: त्याग और सेवा। आप इन धाराओं में तीव्रता उत्पन्न कीजिए और शेष सब अपने आप ठीक हो जाएगा। आप कहिए कि मैं अपने साथियों की मदद कर सकूं, बस इतना ही मैं चाहता हूं। यदि भलाई चाहते हो तो घंटा आदि को गंगा जी में सौंप कर,,, मानव देहधारी प्रत्येक मनुष्य की पूजा में तत्पर हो जाओ, क्योंकि सर्वजीव की सेवा ही सबसे श्रेष्ठ है।

        स्वामी विवेकानंद आगे कहते हैं कि ईर्ष्या और अहम भाव को दूर कर दो, संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। हमारे देश में इसकी बहुत बड़ी आवश्यकता है। नि:स्वार्थपरता ही धर्म की कसौटी है, जिसमें जितनी अधिक नि:स्वार्थपरता होगी, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक होगा। समस्त उपासनाओं का यही धर्म है कि मनुष्य शुद्ध रहे और दूसरों के प्रति सदैव भला करे।

       उन्होंने कहा था कि बड़े बड़े काम, बिना बड़े स्वार्थ त्याग के नहीं हो सकते। त्याग ही असली बात है। त्यागी हुए बिना, कोई दूसरों के लिए सोलह आना प्राण देकर काम नहीं कर सकता। त्यागी सभी को समभाव से देखता है, सभी की सेवा में लगा रहता है। उन्होंने कहा था कि प्रेम कभी निष्फल नहीं होता। मेरे बच्चे कल हो या परसों या युगों के बाद, पर सत्य की जय अवश्य होगी। प्रेम ही मैदान जीतेगा। क्या तुम अपने भाई– मनुष्यजाति– को प्यार करते हो?

       रूस में समाजवाद आने से पहले ही स्वामी विवेकानंद अपने को समाजवादी कहते थे। वे कहते थे कि इसलिए नहीं कि यह व्यवस्था पूर्णतया परिपूर्ण है, बल्कि इसलिए कि एक भी रोटी न होने से, आधी रोटी भली है। उन्होंने यह भी कहा था कि मानव जाति को मुक्त करने के लिए अंततः शूद्रों, यानी मेहनतकशों का राज होगा। उन्होंने कहा था कि दुखियों, पीड़ितों, मजदूरों और निर्धनों की सेवा करने से ही असली सुख मिलता है।

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