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क्रांतिकारी स्वरों को और ताकत देने की जरूरत

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मुनेश त्यागी

     मानव इतिहास में दुनिया भर में, पूरी दुनिया की कविताओं ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कविता के इसी कारगर जज्बे को बरकरार रखने के लिए 21मार्च को पूरी दुनिया में विश्व कविता दिवस मनाया जाता रहा है। कविता पूरी दुनिया के स्तर पर शोषण, अन्याय, धर्मांधता, भेदभाव पर सवाल उठाती आई है। विश्व युद्ध प्रथम और विश्व युद्ध द्वितीय के दौरान कविता ने मनुष्यता के विनाश पर सवाल उठाए। मनुष्यता के अकाल पर प्रेमचंद ने सवाल उठाए। समकालीन कविता भी न्याय की पक्षधर है। वह युद्धों का, पर्यावरण विनाश का, लगातार विरोध करती है, रही है, उन पर सवाल उठाती है। नोमान शौक़ लिखते हैं,,,,

बढ़ते रक्षा बजट के साथ
असुरक्षित होती दुनिया में
छतों पर बैठे हुए तेंदुए
देख रहे हैं चुपचाप
जंगलों को उजड़ते हुए।

आज की कविता भूख, गरीबी, कुपोषण प्रदूषण और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाती है। आज की कविता और कवि, मनुष्य को अपना नायक बनाते हैं। वे दुनिया भर में जनसाधारण के साथ हो रही क्रूरताओं, असहिष्णुता, ज्यादतियों और जबरदस्तियों के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं। आज भी बहुत सारे कवि अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेम और करुणा की बात करते हैं। वे दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी, औरत और पिछड़े वर्गों की समस्याओं से अवगत हैं। कविता उनके लिए लड़ती मरती और आवाज उठाती है। वह एक न्याय पूर्ण, समानता, और समतावादी दुनिया बनाने के लिए आवाज उठाती है। अनेक कवि पुरातन काल से ही प्रतिरोधी कविताओं की रचना करते रहे हैं।

     आज की कविता सांप्रदायिक व जातिवाद का प्रतिरोध करती है। वह दुनिया को अपना उपनिवेश बना देने वाले साम्राज्यवाद के षडयंत्रों को बेनकाब करने का काम कर रही है। मुक्तिबोध के शब्दों में आज की कविता एक बेहतर न्याय, समता, समानता और समाजवादी दुनिया के निर्माण की पक्षधर है। वह समाज में बढ़ रही सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूग्णताओं पर सवाल उठाती है। वह पूछती है और,,,” पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?” जैसा बहुत ही जरूरी सवाल उठाती है।

    आज की कविता घनघोर अंधेरों में रोशनी की बात करती है। वह कहती है,,,,

इस अंधकार के मौसम में
हम चंदा तारे दिनमान बने,
यह मारकाट की नगरी है
हम होली और रमजान बने।

आज की कविता जाति धर्म के झगड़े छोड़कर समानता, समता और जन एकता की बात करती है। वह कहती है कि,,,
जात धर्म के झगड़े छोड़ो
समता ममता की बात करो,
बहुत लिए अलग-अलग अब
मिलने जुलने की बात करो।

आज की कविता शोषण, जुल्म, अन्याय और बढ़ती असमानताओं के बीच संगठित होने, एकजुट होने और इंकलाब की बात करती है, प्रेमचंद के शब्दों में “पूरे इंकलाब” की बात करती है। वह कहती है,,,,,
सारे ताने-बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।

आज की कविता सिर्फ पिछलग्गू बनने की बात नहीं करती। वह साथ साथ चलने की बात करती है, वह पिछलग्गू नहीं, बल्कि आगे बढ़कर मशाल वाहक बनने और समाज को बदलने की बात करती है। देखिए वह क्या कहती है,,,,
करेंगे हम शुरुआत जमाना बदलेगा
दे दो हाथों में हाथ जमाना बदलेगा।
तुम आओ मेरे साथ जमाना बदलेगा
हम चलेंगे मिलकर साथ जमाना बदलेगा।

आज की कविता टुकडखोर रचनाकारों की मुखालफत करती है, देश को बर्बाद करने वालों और देश को बेचने वालों की आंख में आंखें डाल कर बात करती है और देश बेचने वालों से जनता को आगाह करती है देखिए वह क्या कहती है,,,,
कसम बेच देंगे शपथ भेज देंगे
ये नेता हमारे वतन बेच देंगे।
सुनो मेरे यारो ये नेता हमारे
शहीदों के सपने, कफन बेच देंगे।

आज की कविता सिर्फ सवाल ही नहीं करती बल्कि वह समाधान की भी बात करती है और इस अन्याय और मक्कारी भरे समाज को भी बदलने का हौसला प्रदान करती है। देखिए जरा,,,,
हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है यह सूरत बदलनी चाहिए।

आज की कविता जातिवादी या हिंदू मुसलमान बनने की बात नहीं करती, बल्कि वह आदमी से इंसान बनने की बात करती है। जरा देखिए,,,,
तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।

आज की कविता नेताओं की पिछलग्गू ही नहीं है, बल्कि वह उनसे आंखें मिलाते हुए उन्हें लुटेरा और राहजन बताती है। देखिए जरा,,,,
मालो दौलत ही नहीं लूट लिए सपने भी
ऐसे तो रहजन भी न थे जैसे ये रहबर निकले

और
वतन को कुछ नहीं खतरा
निजामे जर है खतरे में।
हकीकत में जो रहजन है
वही रहबर है खतरे में।

आज की कविता सिर्फ देश, समाज और मानव की ही बात नहीं करती बल्कि वह सारी दुनिया की बात करती है, सारे मेहनतकशों की बात करती है। देखिए जरा,,,,
हम मेहनतकश जग वालों से
जब अपना हिस्सा मांगेंगे
एक खेत नहीं एक देश नहीं
हम सारी दुनिया मांगेंगे।

वर्तमान दौर में हम कविता के प्रतिरोधी स्वरों में कुछ खामियां और विचलन भी देख रहे हैं। आज कई कवि सेठों और धनपतियों की गोद में बैठ गये हैं। वे सेठों से पैसा लेते हैं और उन्हीं को कविता सुनाते हैं। इन कवियों को समाज में बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता और गरीबी, शोषण, जुल्म, अन्याय, जातिवाद, सांप्रदायिकता, और जनविरोधी होते जा रहे निजाम पर कुछ नहीं कहना है, बल्कि ये इस जनविरोधी निजाम, पैसे वालों और धन्ना सेठों के बगल गीर हो गए हैं। इन्होंने समाज में बढ़ती जा रही गरीबी, आर्थिक असमानता और लगातार बढ़ती जा रही धर्मांधताओं और सांप्रदायिकता की ओर से भी आंखें बंद कर ली हैं। ये आज की जन विरोधी सत्ता और धन्ना सेठों के बगलगीर और पिछलगू हो गए हैं। आज हमें इस सोच को बदलने की जरूरत है और कविताओं के क्रांतिकारी और प्रतिरोधी स्वर देने की विरासत को बचाए और बनाये रखने की बहुत जरूरत है।
वैश्विक कविता दिवस के इस महत्वपूर्ण मौके पर समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन, क्रांतिकारी साहित्य और क्रांतिकारी कविता की बात न की जाए तो बात बेमानी ही होगी। दुनिया के और हमारे देश के बहुत सारे कवियों ने क्रांतिकारी कविताओं की रचना की है। यह हमारा सबसे प्रमुख कार्य होना चाहिए कि हम उनकी कविताओं को पढ़ें, उन पर चर्चा करें और उन्हें जनता के बीच ले जाएं।
कुछ क्रांतिकारी कवियों के नाम इस प्रकार हैं,,,,ब्रतोल्त ब्रेख्त, नाजिम हिकमत, पोल रोब्सन, पाब्लो नेरुदा, मायाकोवस्की, पास्तर निलोमर, कबीर, रहीम, फैज अहमद फैज, हबीब जालिब, कैफी आज़मी, शंकर शैलेंद्र, साहिर लुधियानवी, दुष्यंत कुमार, निराला, ग़ालिब, मीर, गोरख पांडे, शलभ श्रीराम सिंह, अदम गोंडवी, सफदर हाशमी, बृजमोहन, प्रेम धवन, मजाज, बल्ली सिंह चीमा, शील, कांति मोहन, नचिकेता, अवतार सिंह पाश के नाम शामिल है।
वैश्विक कविता दिवस के मौके पर हम दुनिया के जाने-माने क्रांतिकारी कवियों की कुछ कविताओं को यहां उद्धृत करेंगे,,,,,
कांगो के क्रांतिकारी राष्ट्रपति कवि पैटिस लुमुम्बा कहते हैं,,,,,
सूरज उग आया है
उसके फैले हुए निर्मम अग्नि कणों में
सूख जाएगा तुम्हारी आंखों का पानी,
सुख जाएगा तुम्हारे माथे का पसीना
जंजीरों को तोड़ो दोस्त, जंजीरों को तोड़ो।

महान रूसी कवि मायाकोवस्की मनुष्य को ही इस दुनिया का असली रचनाकार बताते हुए कहते हैं,,,
हम इस धरा के वस्तुकार हैं
हम इस गृह के सज्जाकार हैं,
यहां के तमाम चमत्कारों के
हम ही तो सच्चे रचनाकार हैं।

पाकिस्तानी क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब कहते हैं,,,,,
अमन का झंडा लेकर उट्ठो
हर इंसान से प्यार करो,
अपना तो इमान है यारों
सारे जहां से प्यार करो,
खतरा है दरबारों को
शाहों को, गमखारों को
नवाबों को, गद्दारों को,
खतरे में इस्लाम नहीं।

क्रांतिकारी जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेख्त थोडे से शब्दों में क्या कमाल की बात कहते हैं, देखिए जरा,,,,
दुनिया से जाते समय
यह निश्चय भी करते जाना।
तुम अच्छे थे
सिर्फ इतना ही काफी नहीं है,
दुनिया से जाते समय अपने पीछे
एक अच्छी दुनिया भी छोड़ते जाना।

वियतनामी कवि ली तान लय जब आखिरी बूंद तक लड़ने की बात कहके, पूरी दुनिया का हौंसला बढ़ाते हैं तो वे बहुत खूबसूरत और क्रांतिकारी कवि होकर हमारे सामने आते हैं। वे कहते हैं,,,,
सुन ओ दुश्मन उजाले के,,,,,
यहां से तो नहीं होगा शुरू
समझौते का सिलसिला,
खून की आखिरी बूंद तक
जारी रहेगा मुकाबला।

और देखिए तुर्की के क्रांतिकारी कवि नाजिम हिकमत क्या कमाल की बात कहते हैं,,,,,
चीन से स्पेन तक, केप से अलास्का तक,
हर समुद्री मील पर, हरेक किलोमीटर के
फासले पर मेरे दोस्त और दुश्मन हैं,
मेरी ताकत यही है कि इस दुनिया में
मैं अकेला नहीं हूं, मैं अकेला नहीं हूं।

भारतीय क्रांतिकारी कवि शलभ श्रीराम सिंह की क्रांतिकारी कविता की पंक्तियां हैं,,,,
नफस नफस कदम कदम है
एक फिक्र दम बे दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए,
इंकलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद इंकलाब।
जहां आवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
जहां पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहां पे लफ्जे अम्न एक खौफनाक राज हो
जहां कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो
वहां न चुप रहेंगे हम, कहेंगे हां कहेंगे हम
हमारा हक, हमारा हक, हमें जनाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से, हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद इंकलाब।

और आज की कविता सिर्फ़ ब्योरा देने की ही बात नहीं करती है बल्कि इस दुनिया को बदलने की बात करती है और इस दुनिया को बदलने वाले हौंसले और इस हौसले को बनाए रखने की बात करती है। देखिए जरा,,,,,
गंगा की कसम जमना की कसम
यह ताना बाना बदलेगा बदलेगा,
तू खुद तो बदल तू खुद को बदल
बदलेगा जमाना बदलेगा।
रवि की रवानी बदलेगी
सतलज का मुहाना बदलेगा,
गर शौक में तेरे जोश रहा
यह जुल्मी जमाना बदलेगा।

विश्व कविता दिवस के इस मौके पर हम अपनी एक क्रांतिकारी कविता “पूरे इंकलाब की बात करो” प्रस्तुत कर रहे हैं,,,,,

जात धर्म के झगड़े छोड़ो
समता ममता की बात करो,
बहुत रह लिए अलग-थलग
अब मिलने जुलने की बात करो।

हिंसा के पुजारी ठहरे वो
तुम अमनचैन की बात करो,
ठहरे वो अमीरों के चाकर
तुम मेहनतकशों की बात करो।

लूटा और खसोटा जन को
अब तो जन की बात करो,
बहुत पी लिया खून हमारा
अब साहब की बात करो।

हडपते हैं जो मेहनत को
उनको हड़पने की बात करो,
बेनूर सुबह की हामी वो
तुम लाल सुबह की बात करो।

हीरे मोती पर्वत सागर
सारी बहारों की बात करो,
एक खेत नहीं एक देश नहीं
सारी दुनिया की बात करो।

सारे ताने-बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके, आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।

 और जब कविता समझौता न करके आखिरी सांस तक लड़ने की बात करती है तो वह बहुत ही खूबसूरत रूप धारण करके हमारे सामने आती है।

देखिए जरा,,,
तुम छीन सकते हो मेरी जमीन,
तुम जला सकते हो मेरा घर,
निकलवा सकते हो मुझे कालिज से
ब्लैकलिस्टिड करके,
कर सकते हो तबाह मेरा कैरियर
फंसवा सकते हो झूठे केसों में,
भेज सकते हो जेल झूठे आरोपों में ,
पर मैं नहीं करूंगा समझौता और
लडूंगा जीवन की आखिरी सांस तक।

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