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 धन-धुरंधरों और धर्म-धुरंधरों का नापाक गठजोड़

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मुनेश त्यागी 

नौ साल पहले मोदी सरकार के आगमन पर लोगों को उम्मीद बंधी थी कि सरकार के वायदे के अनुसार देश विकास के मार्ग पर आगे बढ़ेगा। किसानों मजदूरों बेरोजगारों गरीबों को समाज में समुचित स्थान मिलेगा, भ्रष्टाचार और महंगाई पर लगाम लगेगी और पूरा देश एवं जनता विकास के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे और हमारा देश सचमुच में एक विश्व गुरु बनेगा।

     मगर पिछले नो साल का मोदी सरकार का इतिहास बता रहा है कि उसके द्वारा की गई सारी घोषणाएं और विकास के नारे आम जनता, किसानों, मजदूरों और बेरोजगारों के लिए सबसे बड़े छलावा ही सिद्ध हुए हैं। साल दर साल भारत के किसानों, मजदूरों और नौजवानों के साथ सबसे बड़ा धोखा सिद्ध हुए हैं। गरीबी में भारत दुनिया का सिरमौर बना हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी के दलदल में फंस गए हैं। अब उन्हें पांच किलो अनाज का भरोसा देकर लगातार छला जा रहा है, जैसे उनकी बुद्धि हर ली गई है। आम जनता की लंगोटी उतारकर उसे ताज का लालच दिया जा रहा है।

     किसान और मजदूर पिछले नो सालों में और भी ज्यादा गरीब हुए हैं। उनकी दुख और तकलीफों में महंगाई ने और ज्यादा इजाफा कर दिया है। आजादी के 75 साल बाद भी उन्हें फसलों का न्यूनतम सपोर्ट प्राइस नहीं मिलता, उनकी फसलों की सरकारी खरीद नही होती है। करोड़ों मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। अखबारों की रिपोर्ट बताती है कि भारत के 85% मजदूरों को मालिकान द्वारा न्यूनतम वेतन भुगतान नहीं किया या जाता है। अब तो हालत यह हो गई है की देश के अधिकांश पूंजीपतियों द्वारा श्रम कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है और उनका सरासर उल्लंघन किया जा रहा है जिस वजह से मजदूरों को गरीबी के गर्त में धकेला जा रहा है।

       किसान और मजदूरों के बच्चों में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगार भारत में है जो किसान और मजदूर के बेटे और बेटियां हैं। रोजगार को लेकर उनका भविष्य अंधकार में हो गया है। आम जनता अपनी और अपने बच्चों की पढ़ाई, लिखाई, दवाई, शिक्षा और रोजगार को लेकर सबसे ज्यादा परेशान हैं। निजी अस्पतालों और निजी विद्यालयों में उनकी लूट जारी है।  सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, नर्सिंग, वार्ड बॉय, दवाइयां नहीं हैं और आधुनिक चिकित्सा उपकरणों का लगभग अभाव है और उन्हें प्राइवेट मालिकों के हाथों में लुटने के लिए छोड़ दिया गया है।

      किसानों, मजदूरों, गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मनरेगा जैसे मुद्दों को लेकर बजट में लगातार कटौती की जा रही है। वर्तमान वर्ष का बजट जनता के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह, जनविरोधी और धोखा देने वाला सिद्ध हुआ है। वहीं दूसरी ओर पूंजीपति वर्ग को तरह तरह की रियायतें देकर लगातार माला माल किया जा रहा है। जैसे वार्षिक बजट की सारी कवायद उन्हीं के हितों को आगे बढ़ाने के लिए की जा रही है। अब तो यह पूरी तरह से सिद्ध हो गया है कि यह सरकार किसानों और मजदूरों की नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ बड़े पूंजीपतियों और अमीरों की सरकार है और यह लगातार उन्हीं के हितों को बढ़ाने का काम कर रही है

      सस्ते और सुलभ न्याय के सपने हवा-हवाई हो गए हैं। पांच करोड़ से ज्यादा केस, भारत में विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं जिनके सस्ते और सुलभ तरीके से निबटने की कोई आशा नही रह गई है क्योंकि न्याय के बजट में कोई इजाफा नहीं किया गया है। न्याय पर जीडीपी का मात्र .08% ही खर्च किया जा रहा है। मुकदमों के अनुपात में न्याय अधिकारी नहीं हैं, हाईकोर्टों में 40 से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं। निचली अदालतों में  25% न्याय अधिकारी नहीं हैं। मुकदमों के अनुपात में न्यायालय नहीं है। 90 फ़ीसदी बाबू, कर्मचारियों और स्टेशनों के पद कई कई सालों से खाली पड़े हुए हैं। सरकार लगातार कोशिशों के बावजूद भी इन पदों को नहीं भर रही है और उसने जैसे इस मामले में सुनना लिखना पढ़ना और करना सब कुछ बंद कर दिया है।

      इसी के साथ साथ पिछले नो सालों में ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति की मुहिम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया है। अंधविश्वासों और धर्मांधता की सबसे बड़ी सुनामी आई हुई है। सरकार और मीडिया इस ओर से आंख बंद किए हुए हैं और जनता को अज्ञान अंधविश्वास और वैज्ञानिकता के भंवर में फंसा दिया गया है। उसे बुद्धि, युक्ति, लॉजिक, अन्वेषण अनुसंधान की सोच और संस्कृति से दूर कर दिया गया है। पूरे देश में धर्म धुरंधरों की बल्ले-बल्ले हो रही है क्योंकि ये  धर्मांध लोग और अंधविश्वासी लोग लगातार बिना किसी रोक-टोक के धर्मांधता,  विवेकहीनता, अवैज्ञानिकता और अंधविश्वास की बातें लगातार कर रहे हैं और जनता को इनके जाल में फंसा दिया गया है।

       पिछले नो सालों में सबसे ज्यादा विकास अगर हुआ है तो वह देश और विदेशों के बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिकों का हुआ है। कोविड महामारी के काल में देखा गया है कि भारत में बड़े बड़े पूंजीपतियों और धन्ना सेठों की आय में अनाप शनाप वृद्धि हुई है। आज भारत में 10% लोग सबसे ज्यादा धनी हुए हैं और इस तथाकथित आधुनिक विकास का सबसे ज्यादा फायदा इन्हीं चंद पूंजीपति घरानों और सरमायेदारों को हुआ है और इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत के किसानों, मजदूरों और छोटे छोटे दुकानदारों को हुआ है, बेरोजगारों को हुआ है, एसी, एसटी और ओबीसी के अरबों से ज्यादा लोगों को हुआ है, अन्याय के मारो को हुआ है। इस प्रकार पिछले नो सालों में देश विदेश के धन धुरंधरों की बल्ले बल्ले हो रही है। उनकी आय में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है, केवल और केवल उन्हीं का विकास किया गया है।

      इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के आलोक में यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि तथाकथित अमृत काल के स्थान पर देश के अरबों की संख्या में किसानों मजदूरों नौजवानों sc.st.obc और अल्पसंख्यकों की विनाश लीला शुरू हो गई है। पिछले नौ सालों में तथाकथित विकास का और अमृत काल सबसे ज्यादा फायदा धन धुरंधरों और धर्म धुरंधरों के गठजोड़ का हुआ है और देश की अधिकांश बाकी जनता को विनाश लीला के गर्त में धकेल दिया गया है।

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