Site icon अग्नि आलोक

*नेताजी ने समाजवादी पार्टी की स्थापना कर, समाजवादी आंदोलन को पुनर्जीवन दिया*

Share

– डॉ सुनीलम*

  नेताजी मुलायम सिंह यादव की आज दूसरी पुण्यतिथि है। देशभर में आज समाजवादी पार्टी के कार्यालयों में कार्यक्रम आयोजित किए गए । जिसे भी नेताजी के साथ काम करने का मौका मिला था उसने अपने संस्मरण सांझा किए, जिनसे नेताजी के बहुआयामी व्यक्तित्व को जाना समझा जा सकता है।

 जब भी मैं नेताजी के बारे में सोचता हूं तब मुझे लगता है कि यदि व्यक्ति दृढ़ संकल्पित हो तो सभी रूकावटों को दूर कर अपने उद्देश्य की ओर बढ़  सकता है। सैफई गांव के एक साधारण परिवार में जन्म लेकर शिक्षक की नौकरी और पहलवानी करते हुए देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश का तीन बार मुख्यमंत्री, एक बार देश के रक्षा मंत्री बनना  कोई साधारण बात नहीं है।

     यह सर्वविदित है एक बार ऐसा समय आया जब  प्रधानमंत्री के तौर पर उनका  नाम लगभग तय हो गया था।

इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारतीय लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में अभी भी समाजवादी विचार के लिए संभावनाएं बाकी है।

 17 मई 1934 को आचार्य नरेंद्र देव, लोकनायक जय प्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया आदि 100 समाजवादियों ने नासिक जेल में लिए गए निर्णय के अनुसार कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन कांग्रेस पार्टी के भीतर 90 वर्ष पहले किया था। समाजवादी  आजादी के बाद 1948 में  कांग्रेस पार्टी से अलग हुए  तब से लेकर 1977 तक सोशलिस्ट पार्टी देश में अलग अलग नाम से काम करती रही। जयप्रकाश जी की प्रेरणा से लोकतंत्र की बहाली के लिए जनता पार्टी के गठन होने के बाद सोशलिस्ट पार्टी का पृथक अस्तित्व समाप्त हो गया। 

जनता पार्टी के टूटने के बाद जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी बना ली लेकिन समाजवादियों ने सोशलिस्ट पार्टी को पुनर्जीवित नहीं किया। लेकिन 1992 में यानी 32 वर्ष पहले मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया।  यह पार्टी देश के सबसे बड़े उत्तर प्रदेश में अब तक चार बार सरकारें बना चुकी है।     

     समाजवादी पार्टी आज देश में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है।जिसके लोकसभा में 37 और राज्य सभा में 4 सदस्य है।

     समाजवादियों का मजाक लगातार यह कहकर उड़ाया जाता है कि वे न तो ज्यादा समय एक रह सकते हैं और न ही अलग , लेकिन नेताजी की समाजवादी पार्टी ने पिछले 32 वर्षों में बिना बड़ी टूट के पार्टी चलाकर इस मिथक को खत्म करने का काम किया है, जिसमें मुलायम सिंह यादव की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

 डॉ लोहिया ने पिछड़े वर्गों के लिए एक नारा दिया था जिसे देश भर के समाजवादी लगभग रोज दोहराते हैं – *’सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ’* । मुलायम सिंह यादव आजीवन इस सूत्र पर चलते रहे। उन्होंने सामाजिक न्याय की राजनीति को हर स्तर पर न केवल स्थापित किया बल्कि विस्तार भी किया। 

मंडल कमीशन की सिफारिशों को  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 

संविधान सम्मान बताए जाने के  बाद लोगों को लगा था कि अब सामाजिक न्याय पर बहस समाप्त हो जाएगी लेकिन नेताजी ने दलितों की आवाज बनकर उभरे काशीराम को इटावा से चुनाव जितवाकर सामाजिक न्याय की राजनीति को एक नया आयाम दिया। नेताजी के इस प्रयोग से सांप्रदायिक ताकतों को रोका जा सका।

 अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी समझौता कर दूसरी बार इसे आगे बढ़ाया। अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की एकजुटता पर आधारित राजनीति को व्यापकता प्रदान करते हुए डॉ लोहिया के विचारों के आधार पर बनी समाजवादी पार्टी को बाबा साहब के विचारों  के साथ जोड़ने का महत्पूर्ण कार्य किया,  उन्होंने बाबा साहेब के साथ  काशीराम को भी समाजवादियों के बीच स्थापित किया।

 आज समाजवादी पार्टी द्वारा डॉ लोहिया के साथ-साथ बाबा साहब अंबेडकर, नेताजी और काशीराम  को विशेष स्थान दिया जाता है। इसके नतीजे भी निकले हैं।

 समाजवादी पार्टी के 41 सांसदों में अधिकतर सांसद सामाजिक न्याय की धारा का प्रतिनिधित्व करते  हैं।

 नेताजी ने फूलन देवी को चुनाव लड़वाकर और जितवाकर अपनी प्रतिबद्धता जिस तरह साबित की थी उसी तरह अखिलेश यादव ने अयोध्या की सामान्य सीट से दलित नेता अवधेश प्रसाद को चुनाव लड़वाकर और जितवाकर अपनी प्रतिबद्धता साबित की है।

नेताजी पर तमाम लोग जातिवादी होने का आरोप लगाते हैं लेकिन यह सर्वविदित है कि उनके नजदीकी साथियों में जनेश्वर मिश्र, कपिल देव सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान, भगवती सिंह, रामशरण दास, माता प्रसाद पाण्डेय ,

 बृजभूषण तिवारी, मोहन सिंह, किरणमय नंदा , राजेंद्र चौधरी, अंबिका चौधरी, रामगोविंद चौधरी, अमर सिंह जैसे गैर यादव समाजवादी साथी रहे हैं ।

   नेताजी का एक बड़ा योगदान सांप्रदायिक ताकतों का पूरी ताकत लगाकर बिना सत्ता की चिंता किए मुकाबला करना था। उन्हें मुल्ला मुलायम  और हिंदुओं का हत्यारा कह कर समाज में अलग-थलग करने का प्रयास हुआ लेकिन वे न डरे, न झुके और न ही उन्होंने कोई समझौता किया। संविधान की पुस्तक को बिना प्रदर्शित किये उन्होंने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सत्ता को लात मार दी।

 तमाम लोग यह कहते हैं कि वे सैफई केंद्रित है। सही भी है इसके साथ उन्हें  यह भी कहना चाहिए कि नेताजी ने  सैफई जैसे गांव में जो सुविधाएं उपलब्ध कराई  वैसा सुविधायुक्त गांव देश का कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आज तक नहीं बना सका। सैफई में वे सालाना कवि सम्मेलन कराया करते थे और रात भर कवियों के साथ मंच पर भी बैठते थे।

  पहली बार नेताजी ने यूपीएससी की परीक्षाओं में जब हिंदी को जोड़ दिया तब बड़े पैमाने पर वंचित वर्ग के लोगों को अफसर बनने का मौका मिला जैसा अवसर कर्पूरी ठाकुर ने अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर बिहार के वंचितों को दिया था। 

  समाजवादी चिंतक अरुण त्रिपाठी जी कहते है कि नेताजी ने समाजवाद के दर्शन को समाजवादी कार्यक्रमों के माध्यम से सगुण रूप देकर जनता के बीच ले जाने का काम किया।

विशेष तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य और वंचित वर्गों के लिए

विभिन्न योजनाएं लागू की।

 उन्होंने जब समाजवादी पार्टी बनाई तब से लेकर उनके देहांत होने तक कई बार मैंने उनसे कहा कि समाजवादी पार्टी का किसान फ्रंट होना चाहिए । उनका हर बार एक ही जवाब रहा, समाजवादी पार्टी ही किसानों की पार्टी है। जब भी मुख्यमंत्री बने उन्होंने किसानों के लिए उल्लेखनीय फैसले किए।

  नेताजी की खासियत उनका कार्यकर्ताओं से आत्मीयता थी। तीन बार मुख्यमंत्री बनने पर तथा अधिकतर समय विपक्ष में रहने के बावजूद भी उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं का साथ नही छोड़ा। यही कारण है कि एक बार नेताजी से जो भी कार्यकर्ता मिला वह उनका होकर रह गया। उदाहरण के तौर पर मैं दो अनुभव साझा करना चाहता हूं- एक बार जब बैतूल में मुझे जान से मारने के इरादे से टक्कर मारी गई तब नेताजी ने बुलाकर मुझसे सिर पर हाथ रखवा कर यह कसम दिलवाई कि मैं कभी मोटरसाइकिल या डिब्बानुमा कार पर नहीं बैठूंगा। मैंने शरारत करते हुए उनसे कहा यदि गाड़ी न हो तब ? उन्होंने गंगाराम जी को बुलाकर कहा कि इन्हें अभी शोरूम ले जाकर  गाड़ी दिलाओ। मैं तब दूसरी बार  विधायक बना  था। मैंने कोऑपरेटिव बैंक से गाड़ी खरीदी थी। मैंने यह बता दिया लेकिन अपने कार्यकर्ताओं की मदद वे किस स्तर पर जाकर करते थे, यह इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है।

   इसी तरह जब मुलताई गोली चालन के प्रकरणों की सुनवाई के  अंतिम दौर में उन्होंने मुझे बार-बार चेताया कि उन्हें सूचना है कि मुझे सजा दिलाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। उनकी आशंका सही साबित हुई। जमानत के लिए उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह से बात की और अखिलेश यादव जी ने आर्थिक सहयोग भी किया।

  कई बार जब मेरी पुलिस से भिड़ंत हो जाती थी तब वे मुझे हाथ पकड़ कर कहा करते थे कि मैंने बहुत साथियों को खोया है तुम्हें खोना नहीं चाहता। क्यों पुलिस से ज्यादा भिड़ते हो कभी भी एनकाउंटर करवा देंगे।

 मदद करने में उन्होंने कभी भी पार्टी के आधार पर भेदभाव नहीं किया। इन्हीं दोनों कारणों के चलते उनकी अंत्येष्टि में 

सैफई में लाखों कार्यकर्ता और लगभग सभी पार्टी के दिग्गज नेता शामिल हुए।

  मैं भी वहां मौजूद था, कार्यकर्ताओं को नम आंखों से नेताजी को विदा करते देख रहा था। कई बार ऐसी स्थिति बनी की भारी भीड़ में कुचल जाने का डर  मुझे लगा  परंतु जो कुछ देखा वह स्थाई स्मृति बनकर  जीवन भर मेरे साथ रहने वाला है।

डॉ सुनीलम, पूर्व विधायक 

पूर्व राष्ट्रीय सचिव, समाजवादी पार्टी 

8447715810

Exit mobile version