(सेक्स में बुल, घोड़ा, गदहा, कुत्ता, बिलार संस्कृति)
~ प्रखर अरोड़ा
आधुनिकतावादी युवा और प्रौढ़ कपल तक सेक्स मे नयापन लाने की खातिर कुकोल्डिंग, वाइफ स्वैपिंग और कपल स्वैपिंग जैसे खेल, खेल रहे हैं.
समाज के ठेकेदारों क्या कर रहे हो तुम? ऐसे तो संस्कार, लज्जा और मर्यादा सिर्फ शब्द बनकर ही रह जाएंगे.
पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित ऐसे लोगों को इस खेल में बुल कहा जाता है, जो अपने कुतर्क से ब्रेनवाश कर रहे हैं लोगों का. सेक्स में बुल, घोड़ा, गदहा, कुत्ता, बिलार कल्चर का इतना ही मतलब है कि स्त्री को नोंच-खसोट कर भोग लेना.
ऐसे लोग बलात्कार की पैदाइश ही होते हैं. इन बलात्कार की पैदाइश का ‘काम’,’भोग’ और संभोग के आनंद से कोई लेना देना नहीं होता है.
यहां बलात्कार का मतलब रेप नहीं है. दरअसल जब स्त्री की इच्छा नहीं होती है और उस पर पति जबरन चढ़ बैठता है तो ऐसी ही संतान उत्पन्न होती है। इन सब बातों का बच्चे के स्वभाव पर बहुत फर्क पड़ता है.
आपको ऐसे लोग महिलाओं की फेसबुक आईडी पर कभी कमेंट में तो कभी उनके मैसेंजर पर अपना ‘निजी अंग’ दिखाते हुए मिल जाएंगे।
आपको ऐसे लोग मैसेंजर पर अपने निजी अंग का साइज बताते हुए दिख जाएंगे. मेरा इतने इंच का , मेरा उतने इंच का.
ऐसे लोग दावा करते हैं कि ये किसी की भी पत्नी या स्त्री को गैर मर्द के साथ हम बिस्तर होने को राजी कर सकते हैं क्योंकि इनके पास तमाम ट्रिक होती है.
हकीकत में इनसे जब इनकी पत्नी के विषय में पूछेंगे कि उसको कितनों के नीचे सुलाया? तो ऐसे लोग अक्सर एक ही जवाब देंगे कि उनकी पत्नी नहीं राज़ी होती है क्योंकि वो सेक्स के मामलों में रूचि नहीं लेती है.
भले ही इनकी पत्नी शादी से पहले मायके में पूरे मोहल्ले में गंधाए बैठी हो, और ससुराल में भी गुल खिलाए बैठी हो मगर वो अपनी है तो इज्जतदार है. स्वघोषित बुल साफ-साफ नहीं कहेगा कि उसकी पत्नी इनको लुल्ल समझती है और उसके सामने इनकी बोलती तक नहीं निकलती है.
आखिर में मुझे बस इतना ही कहना है कि पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर और गंदी फ़िल्में देखकर ऐसे लोग सेक्स और सम्भोग का फर्क भूल रहे हैं और आए दिन या तो अपराध कर रहे हैं या फिर अपराध का शिकार हो रहे है.
प्रशासन और समाज के ठेकेदार ऐसे लोगों को चिंहित करके सिर्फ काउंसलिंग ही कर सकते हैं और कुछ नहीं, क्योंकि कानून ही कुछ ऐसा है ‘जब मियां बीवी राजी़ तो क्या करें क़ाज़ी.’