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ग्रीन फ्यूल : ठगवाबाजी का नया ट्रेंड

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पुष्पा गुप्ता 

   _धरती को बचाना है, आइये बचायें। खरीदें नई बैटरी वाली कार, बैटरी वाला सामान, बैटरी का तामझाम, खुली हुई है दुकान।_

      नए जमाने की ठगवाबाजी का शिकार बनिये। धरती को बचाने के नाम पर धरती की तेजी से हत्या कीजिए। वैसे ही जैसे अच्छे दिन के आस में, आम सुकून भरे दिन कत्ल कर दिए गए, और अब आप, आपका धर्म, देश, सोसायटी औऱ भावना.. सब थोक मे खतरे में है। 

        इंजन नाम की जो चीज है, उसकी एफिशिएंसी होती है कोई 1%, जी हां.. सिर्फ एक प्रतिशत। ग्यारहवीं की फिजिक्स में पढ़ा था। 

100 कैलोरी फ्यूल जलेगा तो महज 1 ही कैलोरी मैकेनिकल ऊर्जा में कन्वर्ट होगी। डायनमो उसी इंजन का रूप है। इसमें इंजन के चक्के में रोटर लगे होते हैं, जो स्टेटर के गिर्द घूमता है। बिजली बनती है। 

     ज्यादा फिजिक्स समझने की जरूरत नही। इतना जान लीजिए कि 100 कैलोरी वैल्यू का कोयला जला, तो 1 कैलोरी वैल्यू की बिजली बनेगी। ये बिजली बनी, बिजलीघर में … 

ट्रांसमिशन लाइन से बिजली आपके घर तक आएगी। ट्रांसमिशन लॉस होगा एवरेज 30%, तो जो 100 कोयले से 1 बिजली बनी, आप उसका 0.70% ही इस्तेमाल करते हैं। अब तक तो यही टेक्नोलॉजी थी। 100 जले कोयले का 0.70 वैल्यू ही लाइट, बल्ब, गीजर में यूज होती थी। 

कार लाये आप, बिजली से चलने वाली। क्योकि वो  डीजल खाती थी, धुआं फेंकती थी। लेकिन इंजन के सिद्धांत के अनुसार 100 डीजल खाती, तो 1 ऊर्जा से कार का चक्का घुमाती थी। 

लेकिन अब आप उसे बिजली से चलाएंगे। बिजली आपके घर आई है 0.70% …  (0.30 ट्रांसमिशन लॉस) इससे पहले कार की बैटरी में चार्ज करेंगे। है न?

     किसी भी बैटरी, में 100 बिजली घुसती है, तो 60-70% ही निकलती है। पुरानी बैटरी हुई तो और कम निकलेगी, स्टेंडर्ड 50% ले लीजिए। 

      अब 0.70% ऊर्जा आपके इलेक्ट्रिक कार की बैटरी में घुसी, तो निकलेगी आधी, याने 0.35%… (उस कोयले का जो बिजलीघर में जलाया गया था).

     आप अगर सीधे डीजल से कार चलाते, तो फॉसिल फ्यूल की 1% ऊर्जा आपके मलतब में इस्तेमाल होती। अब होगी 0.35% …  याने पहले से 65% कम। 

     लेकिन आपको जाना था 100 किमी, तो बैटरी कार से 35 किमी जाकर सन्तोष तो करेंगे नहीं। आप कार फिर चार्ज करेंगे। 

      याने बिजली घर दोबारा कोयला जलाएगा।याने दूर झारखंड का बिजलीघर दोगुना पॉल्युशन फैलाएगा,  धुआं फेंकेगा, इसी धरती पर, आप दिल्ली मे ग्रीन फ्यूल का गीत गाऐंगे। 

अब तक बल्ब औऱ गीजर के लिए बिजली बनती थी, अब कार के लिए बनेगी, ये एक्स्ट्रा जरूरत पैदा हुई। ज्यादा बिजली चाहिए, पावर प्लांट चाहिए, ज्यादा कोयला चाहिए। 

       इन सबमे गोदी सेठ की मोनोपॉली है। सेठ का सेल्समैन, हमारा प्रधान सेवक जीरो एमिशन, ग्रीन फ्यूल के लिए कृतसंकल्प है। नए भारत में डीजल को सोने के भाव बिकेगा, बिजली की कार पर छूट मिलेगी, सड़कों पर गडकरी बाबू चार्जिंग स्टेशन बनाकर देने का सपना दिखा ही रहे हैं।

      आप मजबूरी में बिजली वाली कार खरीदोगे। नई टेक्निक, नई बिजनेस ऑपर्च्युनिटीज, पुराने कम्पटीशन का तम्बू उखड़ना, उनके अच्छे दिनों के लिए बहुत जरूरी है। 

    लेकिन एक और एंगल भी है – इंटरनेशनल पॉवर पॉलिटिक्स। 

बैटरी के लिए लगता है लिथियम। रेयर मेटल है। दुनिया का 70% रेयर मेटल चींन में मिलता है। 15% ऑस्ट्रेलिया। बाकी दुनिया मे कितना बचा, हिसाब कर लीजिए। सुनते है लिथियम के भंडार, अफगानिस्तान में भयंकर है। सो वहां कब्जे के लिए होड़ है। कौन जाने.. हम इतना पक्का जानते है कि लिथियम से बैटरी बनाने की प्रकिया में जो जहरीले तत्व निकलते है, एटॉमिक वेस्ट के बराबर का खतरनाक होता है। इससे पीछा छुड़ाने का कोई पुख्ता तरीका नही है। बस खड्डा खोदकर कहीं कहीं गाड़ देते है।

तो आप चले है, पर्यावरण बचाने। बिजली डबल खपत होगी, कोयला डबल जलेगा, बैटरी नाम की शै जहर फैलाती रहेगी।

     लेकिन आप तो ग्रीन फ्यूल से चलने का भ्रम पाले रहेंगे। तो जैसे आपने इस देश को 2014 में बचाया है, मेरा यकीन है, एक दिन धरती को बचाने में भी सफल होंगे।

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