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मुसलमानों पर हमले की नई बौछार, घृणा और नफरत के पतवार का ही सहारा बीजेपी को

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महेंद्र मिश्र 

देश में मुसलमानों पर हमले की नई बौछार आ गयी है। और खास कर मौजूदा और आगामी विधानसभा चुनाव वाले राज्य इसकी जद में हैं। आज ही मुसलमानों के प्रति घृणा और नफरत भड़काने के मकसद वाली दो नई खबरें सामने आयीं हैं। महाराष्ट्र का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के पुत्र और बीजेपी एमएलए नितेश राणे एक सभा में खुलेआम मुसलमानों को मस्जिदों में घुस कर मारने की धमकी देते दिख रहे हैं। 

वीडियो में आगे उन्होंने क्या-क्या जहर उगला उसको यहां देना भी ठीक नहीं है। क्योंकि गाली गलौज और नफरत-घृणा जितनी प्रचारित की जाएगी वह उतनी ही बढ़ती जाएगी। इसी कड़ी में छापेमारी और गिरफ्तारी के दर्जनों बार शिकार हो चुके दिल्ली से आप विधायक अमानुल्ला खान को आज एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया। अब की बार यह कार्रवाई ईडी की तरफ से की गयी है।

इसके पहले महाराष्ट्र में कल्याण जाने वाली एक ट्रेन में एक मुस्लिम बुजुर्ग के साथ कुछ युवकों की बेइंतहा बदतमीजी और बदसलूकी का वीडियो वायरल हो चुका है। हालांकि देशव्यापी दबाव के बाद पुलिस अब इस मामले में कार्रवाई के लिए मजबूर हुई है। इसी तरह से दो दिनों पहले ही हरियाणा के चरखी दादरी में बीफ का आरोप लगाकर एक प्रवासी मजदूर शब्बीर मलिक की सामूहिक तौर पर लिंचिंग की जा चुकी है। ये घटनाएं अनायास नहीं हो रही हैं। इनके पीछे एक राजनीतिक मकसद है। वरना ये चुनाव वाले राज्यों में ही क्यों केंद्रित हैं? 

वैसे तो चार राज्यों हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने थे। लेकिन सरकार के दबाव में चुनाव आयोग ने एक साथ कराने की जगह पहले केवल दो राज्यों को चुना है। क्योंकि उसे पता है कि अगर सारे राज्यों में एक साथ चुनाव करा दिए गए और सबके नतीजे खिलाफ आ गए तो उन्हें एक तरह का जनमत संग्रह माना जाएगा। जिसका असर सीधा केंद्र और उसकी सरकार पर पड़ेगा। जो पीएम मोदी के लिए ठीक नहीं होगा। और फिर इस बात की प्रबल आशंका है कि विपक्ष मोदी से इस्तीफे की मांग शुरू कर दे। उस शर्मनाक स्थिति से बचने के लिए केंद्र ने यह रास्ता ढूंढा है।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर को एक साथ कराने के पीछे एक और मकसद था। बीजेपी को लग रहा है कि जम्मू-कश्मीर से वह मुस्लिम विरोधी राष्ट्रवाद की नई बहस शुरू करवा सकती है। चूंकि हरियाणा उसके नजदीक है लिहाजा उस सूबे के एजेंडे को भी उससे प्रभावित किया जा सकता है। आपने देखा होगा कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का जब गठबंधन हुआ तो बीजेपी की ओर से नेशनल कांफ्रेंस के मैनिफेस्टो में धारा 370 और 35ए की बहाली के वादे को पूरे देश में मुद्दा बनाने की कोशिश की गयी और उसे राष्ट्रवाद से जोड़कर कांग्रेस के खिलाफ खड़ा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा गया। और इसकी अगुआई खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की। 

इसके लिए देश में एक साथ और एक दिन पचासों स्थानों पर प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। लेकिन इसकी न तो कोई जुंबिश हुई और न ही किसी ने नोटिस लिया। वैसे भी गठबंधन में हर पार्टी का अपना-अपना एजेंडा होता है। और सत्ता में आने के बाद फिर कॉमन एजेंडे को लागू करने पर बात होती है। बीजेपी और अमित शाह को यह समझना चाहिए कि देश में पिछले तीस सालों से या उससे भी ऊपर से गठबंधन की राजनीति हो रही है। और जनता इस मामले में बेहद परिपक्व हो चुकी है। लिहाजा उसे मूर्ख बनाने या फिर समझने की कोई भी चालाकी अब काम नहीं आएगी।

झारखंड को छोड़ दिया जाए तो जितने भी राज्य हैं सभी में बीजेपी का शासन है। जम्मू-कश्मीर में भले सूबे की सरकार नहीं है लेकिन एलजी के जरिये वहां भी बीजेपी ही राज कर रही है। और इन सारी जगहों पर बीजेपी के पास देने के लिए कुछ नहीं है। हरियाणा में तो पिछले चुनाव में ही जनता ऊब गयी थी। और बीजेपी को बहुमत भी नहीं मिला था। वह तो बीजेपी के खिलाफ लड़े दुष्यंत चौटाला का भला हो उन्होंने बीजेपी को समर्थन दे दिया और पांच साल चली लंगड़ी सरकार हर तरीके से जनता और खासकर किसानों के निशाने पर रही।

खट्टर साहब एक से एक तुगलकी फैसले लेते रहे जिसका न तो जनता से कोई वास्ता था और न ही सूबे के हितों से। और अंत में इतने अलोकप्रिय हो गए कि खुद बीजेपी को ही उन्हें हटाना पड़ा। और नायब सिंह सैनी जैसा एक ऐसा चेहरा सामने करना पड़ा जिसके नाम पर चुनाव लड़ा जा सके। लेकिन जो खबरें आ रही हैं उसमें बीजेपी की नैया डूबती दिख रही है। और कहीं से भी बीजेपी की सरकार दूर-दूर तक बनती नहीं दिख रही है। कांग्रेस के पक्ष में अपने किस्म की हवा चल रही है। 

यही हाल कमोबेश महाराष्ट्र का है। वहां पिछले पांच सालों के दौरान जिस तरह से उद्धव ठाकरे की सरकार को तोड़कर अपनी सरकार के गठन का तांडव चला है। उसको जनता ने बेहद बुरा माना है। लोकसभा चुनाव में भी उसने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। जिसमें बीजेपी को कुछ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा और बड़ी बाजी पवार, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के हाथ लगी। 

मुख्यमंत्री शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार बिल्कुल पैदल हो गए। आलम यह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में अंतरविरोध इतने बढ़ गए हैं कि रोजाना तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गयी है। और चुनावी सर्वे में अघाड़ी गठबंधन डंके की चोट पर सत्ता में आता दिख रहा है।

हरियाणा और कश्मीर की हार एकबारगी बीजेपी पचा लेगी। लेकिन महाराष्ट्र हारी तो यह उसकी कमर पर चोट होगा। और इस बात को बीजेपी और उसके नेता बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। यह बात सबको पता है कि बांबे देश की आर्थिक राजधानी है। महाराष्ट्र हाथ से जाने का मतलब होगा कारपोरेट के एक बड़े हिस्से का चला जाना। और इस मामले में भला मोदी से ज्यादा होशियार कौन होगा। जहां पैसा देखते हैं उनकी निगाह वहीं जाती है। क्योंकि खुद उनके ही मुताबिक उनके खून में व्यापार है। और खून की यह सप्लाई महाराष्ट्र से अगर रुक गयी तो फिर उनका भला क्या होगा? 

अनायास नहीं घोषित चुनाव वाले राज्यों में मोदी साहब अभी तक एक बार भी नहीं गए। लेकिन इस बीच महाराष्ट्र का उन्होंने दो बार दौरा कर लिया। जहां कि चुनावों की अभी घोषणा भी नहीं हुई है। क्योंकि उनको लग रहा है कि सारे सूबे अगर हाथ से चले भी जाएं और महाराष्ट्र अकेले हाथ आ जाए तो उन सब की भरपाई हो जाएगी। लिहाजा उन्होंने महाराष्ट्र में ताबड़तोड़ अपने कार्यक्रम लगाए हैं। चूंकि सूबे की सरकार का इकबाल खत्म हो गया है और उसके चेहरे की चमक फीकी पड़ गयी है। इसलिए केंद्रीय योजनाओं की रेवड़ियां वहां बांटी जा रही हैं। लेकिन उसका भी कोई असर होता नहीं दिख रहा है। क्योंकि खुद मोदी साहब के खिलाफ भी एंटी इंकम्बेसी उसी तरह से काम कर रही है जैसी कि शिंदे के खिलाफ। 

ऐसे में बीजेपी-संघ के पास अब एक ही चीज का सहारा है वह है हिंदू-मुसलमान का एजेंडा। और इस समय सामने आने वाली घटनाएं उसी रणनीति का हिस्सा हैं। इनको लग रहा है कि जमीन से आग सुलगाने पर ही इसको देशव्यापी लपटों में बदला जा सकता है। लिहाजा संघ अपने हाइड्रा संगठनों और उसके समर्थकों के जरिये इस काम में लग गया है। लेकिन देखना होगा कि वह कितना सफल हो पाता है।

इन चुनावों को लेकर मोदी जी कितने चिंतित हैं उसका उदाहरण शिवाजी की प्रतिमा गिरने पर मांगी गयी उनकी माफी है। गुजरात दंगे हुए मोदी जी ने माफी नहीं मांगी। नोटबंदी फेल हुई मोदी जी ने माफी नहीं मांगी। जीएसटी नाकाम रही मोदी जी ने चुप्पी साध ली। किसी भी मसले पर मोदी जी कभी नहीं झुके। क्योंकि वह 56 इंच का सीना रखते है। यही तो उनके कार्यकर्ता और समर्थक कहते थे। लेकिन अब क्या हुआ? वह सीना नहीं रहा। या फिर उसकी नाप कम हो गयी। मोदी ने सिर झुकाकर महाराष्ट्र की जनता से प्रतिमा गिरने पर माफी मांगी। 

यह बात अलग है कि उनमें न वह सहृदयता है और न ही वह विनम्रता एवं कोमलता जो माफी के दौरान उनके चेहरे पर दिखनी चाहिए थी। अहंकार के भाव में ही उन्होंने माफी मांगी जैसे ऐसा करके उन्होंने जनता पर ही कोई एहसान किया हो। लेकिन इस माफी से भी कुछ बनने वाला नहीं है। अघाड़ी ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। मराठा पहले से ही आरक्षण समेत तमाम मसलों को लेकर बीजेपी से नाराज थे। अब इस घटना ने उनके विरोध के दिमागी पारे को और गरम कर दिया है। जिसके भविष्य में बढ़ने की जगह कम होने की कोई उम्मीद नहीं है। 

जनचौक से साभार

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