~ दिव्या गुप्ता
_नए वर्ष का एक अभिप्राय यह भी होता है कि हम बीते वर्ष के अनुभवों से सबक ले कर कुछ पहले सेa बेहतर करें | हम इतने वर्षों से पूरी आस्था, प्रचलित पद्धतियों से देवी की उपासना करते आ रहे हैं | कभी हमने सोचा कि अगर हमारी सारी पूजा उपासना सही होती, या सही तरीके से सही जगह पहुंचती तो क्या आज समाज में – *”यत्र नार्येषु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता “* के महान आदर्श के जिस तरह चिथड़े उड़ रहे हैं वैसा होना चाहिए था ?_
*न तो 07 महीने की बच्ची सुरक्षित है और न ही 70 वर्ष की वृद्धा ?*
_परमात्मा दयालु है, देवी ममतामयी भी है और दुष्ट राक्षसों की संहारक भी | फिर क्या कारण है कि दुराचारी पनपते जा रहे हैं और मासूम बच्चियां आये दिन शैतानों की बलि चढ़ रही हैं ? अगर आप कुछ पल एकाग्रचित्त हो कर सोचेंगे तो समझने में देर नहीं लगेगी कि हमारी प्रार्थनाएं …. पूजा … अर्चना सही जगह नहीं पहुँच रही है|_
वास्तव में देवी अपनी सारी शक्तियों के साथ हमारे भीतर विराज रही हैं और हम पारम्परिक कर्मकांडों का अनुसरण करते हुए उन्हें प्रतिमाओं में तलाश रहे हैं| इतना ही नहीं कि *श्री कृष्ण ने यूँ ही नेताओं की तरह टालने के लिए कह दिया था -योग क्षेम वहाम्यहं …. “*
यानी तुम मुझसे योग स्थापित कर लो फिर तुम्हारी देखभाल मैं करूँगा| ईश्वर ने इस योग के क्रियान्वित होने के लिए तीन नदियों और सात चक्रों के साथ कुण्डलिनी नामक शक्ति की स्थापना जन्म के समय से ही हमारे शरीर में कर रखी है जिसकी जागृति होते ही व्यक्ति परमात्मा की शक्ति से जुड़ जाता है और अपनी समस्याओं पर विजय पाने लगता है |
_आदि शंकराचार्य से किसी ने प्रश्न किया -_
*”कुण्डलिनी जागृत होने में कितना समय लगता है?”* उन्होंने जवाब दिया –
*” तत्क्षण ! बशर्ते जागृत करने वाला इंसान दक्ष हो और जागृत होने वाले में अभीप्सा (एकमात्र यही इच्छा) हो|”*
हम तो आपसे फिर भी 15 दिन मांगते हैं, अपने लिए नहीं– आपके लिए।
ध्यान में कुण्डलिनी जागृत होने पर तत्काल इसका आभास होता है | एक बार कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से जब व्यक्ति परमात्मा की शक्ति से जुड़ जाता है तब उसके जीवन में चमत्कारिक बदलाव आने शुरू हो जाते हैं क्योकि उसकी दिनचर्या का हर कार्य परमात्मा की देखरेख में होता है|
_ऐसा नही कि कुण्डलिनी शक्ति के बारे में भारत के ऋषियों मुनियों को पहले से नहीं पता था। मानव शरीर में मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी ) के सबसे नीचे स्थित त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी विराजती है | यह तमाम सिद्ध ऋषियों को पता था | किन्तु प्राचीन ऋषि अपने किसी एक शिष्य की ही कुण्डलिनी जागृत करते थे फिर आगे चल कर वह शिष्य अपने किसी एक शिष्य की| इतना ही नहीं कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया इतनी जटिल और वर्षों की तपस्या पर आधारित थी कि सौ में कोई एक ही इसमें सफल हो पता था |_
जब हर मनुष्य के मेरुदंड में कुण्डलिनी शक्ति है तो इसकी जाग्रति से होने वाले लाभ पूरी मानव जाति को मिलने चाहिए। इसी के साथ इसकी जागृति का उपाय भी सहज होना चाहिए।
*इसलिये हम अन्यों की तरह धर्म-अध्यात्म, ध्यान-प्रेम, पूर्णत्व के नाम पर लोगों का तन-मन-धन ऐंठकर अपनी हवसपूर्ती करने और अपना विजनेस अंपायर खड़ा करने वाली जमात से अलग हैं। निःशुल्क सुलभ हैं।*
_अपने दैनिक काम, पूजा-पाठ खानपान में कोई परिवर्तन न करते हुए नित्य एक घण्टे खुद को दें, प्राणायाम- ध्यान करें तो भी मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।_
परमात्मा अपनी किसी वस्तु का मूल्य नहीं लेता| धूप हवा,पानी, वनस्पति, फल-फूल की तरह सहज योग भी पूरी तरह निःशुल्क है|