शशिकांत गुप्ते
हवाई यात्रियों की संख्या में निरंतर इज़ाफा हो रहा है।
उक्त खबर समाचार माध्यमों में सुन,पढ़ और देख कर पूजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण पनप रहे भौतिकवाद की पुष्टि होती है।
अल्प समयावधि में लगभग बीस करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की है।
हवाई यात्रियों की संख्या में हो रही वृद्धि के साथ ही देश के एक आम आदमी के जेहन में कुछ व्यवहारिक प्रश्न उपस्थित होते हैं?
अनेकता में एकता की सूक्ति कहीं आर्थिक विषमता में तो तब्दील नहीं हो रही है?
याद आता है वह मंजर जब महामारी दौरान लॉक डाउन के बाद लाखों मेहनतकश मजदूर हजारों किलो मीटर पैदल चलने के लिए मजबूर थे।
नदी में तैरते मानवों के मृत शरीर और अंतक्रिया से वंचित शवों को रामनामी चादरों से ढाकने के लिए विवश परिजनों की स्मृति कभी भी भुलाई नही जा सकती है।
आए दिन घटित होने वाली रेल दुर्घटनाएं और दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या का सरकारी और गैर-सरकारी अंतर व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न है?
सड़क दुर्घटनाओं की खबरें भी व्यवस्था की जवाबदेही पर सवाल पैदा करती ही है?
कानून व्यवस्था पर पक्षपात का आरोप भी सत्ता की निष्पक्षता पर प्रश्न है?
रेल और सड़क परिवहन आम जन के यात्राओं के लिए है। आम जन की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है?
इन दिनों ब्रेकिंग न्यूज की परंपरा समाचार माध्यमों के लिए सनसनीखेज खबर बन रही है।
ब्रेकिंग न्यूज में कब ब्रेक लगेगा और बेरोजगारों की Correct संख्या कब बताई जाएगी? दो करोड़ रोजगार के झूठे वादे पर सत्ता कब शर्मिंदा होगी?
कब कुपोषण की समस्या की वास्तविक जानकारी आमजन तक पहुंचेगी? महंगाई के विकराल रूप पर कब अंकुश लगेगा?
जांच एजेंसियों का दुरुपयोग?
समाचार माध्यम कब मौजूदा व्यवस्था को प्रश्न पूछेंगे?
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर लग रहे गोदी मीडिया के आरोप कब खत्म होंगे? होंगे भी या नहीं?
पूर्व में चौथा स्तंभ विपक्ष की भूमिका बखूबी निभाता था।
विपक्ष की भूमिका का ईमानदारी से निर्वाह करने वाले समाचार माध्यमों की संख्या में कब वृद्धि होगी?
जब सत्ता पूंजीवाद और व्यक्तिवाद पर केंद्रित होती है,तब सत्ता में अधिनायकवाद पनपता है।
अधिनायकवाद से ग्रस्त लोगों के कानों में जूं कभी भी नहीं रेंगती है।
अधिनायकवाद सिर्फ और सिर्फ पूंजी की धुरी पर ही घूमता है।
इसे घुमाने के लिए चंद धनकुबेर अपने पूंजी की ऊर्जा प्रदान करते हैं।
सीतारामजी ने अपना लिखा हुआ लेख पढ़कर मुझे सुनाया और मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही?
मैने प्रतिक्रिया स्वरूप सीतारामजी को भजन की चंद पंक्तियां सुना दी।
मत कर तू अभिमान रे बंदे, जूठी तेरी शान रे।
तेरे जैसे लाखों आये, लाखों इस माटी ने खाए।
रहा ना नाम निशान रे बंदे, मत कर तू अभिमान।।
भजन की पंक्तियां सुनकर सीतारामजी को सहज ही हँसी आ गई।
शशिकांत गुप्ते इंदौर