न मे मृत्यु न मे जातिभेद:,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मो।
न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥
लोग अक्सर एक प्रश्न करते है अगला जन्म स्त्री का होगा या पुरुष का?
ये भी आपके कर्म ही तय करते हैं। अगर तुम्हारे चित्त में किसी महिला को लेकर लगातार चिंतन चलता रहता है तो वो मिलेगी तो नहीं बल्कि तुम्हारा अगला जन्म ही स्त्री के रूप में होगा।बहुत से लोग मृत पत्नी, बेटी या अन्य किसी स्त्री का चिंतन करते ही रहते हैं। मन से निकलती ही नहीं है।
तो वो मिलने वाली तो नहीं है बल्कि अगला जन्म ही स्त्री का ही होने वाला है। ऐसे ही अन्य किसी धर्म में जन्म होना है।
कृष्ण ने तो सीधे शब्दों में कहा है जो जिसे भजते हैं उसी को प्राप्त हो जाते हैं। भजने का अर्थ कंठी माला लेकर जाप करना नहीं है। तुम्हारे चित्त में कुछ या कोई चलता रहता है। जो आपके चित्त से निकलता ही नहीं है वही भजन है।
सही गलत का निर्णय आप खुद कर लीजिए। आप वही हो जाओगे।इसीलिए सारी कोशिश होती है होश में आओ, विचारों को बाहर करो, वर्तमान हो जाओ।
धर्म सिर्फ एक है वो है पूर्ण होना.
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥”
यह हर मनुष्य के लिए एक ही है। इसके अलावा सब मार्ग हैं वहां तक पहुँचने के। यह अलग बात है कई लोग अपने मार्ग को धर्म की तरह से ही स्वीकारते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। जब तक विश्वास गहरा नहीं होगा तब तक कहीं पहुँचोगे भी नहीं। धर्म का अर्थ है अटल सत्य। सभी से ही तो कहा जाता है विश्वास करो विश्वास करो.
“अहं ब्रह्मास्मि।”
लेकिन हम सबका विश्वास बड़ा कमजोर है। माँ बाप के सनातनी होने से कोई सनातन नहीं होता है। जो सनातन संस्कृति के अनुशासन का पालन करते हैं वो सनातन मार्गी है। ऐसे ही अन्य धर्म कहे जाने वाले मार्ग भी हैं।
आप सभी सनातन संस्कृति का पालन कर रहे हैं। तो सनातन संस्कृति का अनुसरण करने वाला सनातनी कहा जाएगा। जिस दिन आप पूर्ण हो जाएंगे उस दिन कोई आचार संहिता नहीं बचती है।
एक है मोक्ष मनुष्य से सीधी ब्रह्म में छलांग। जो आदि शंकर ने लगाई थी। दूसरी है मुक्ति एक-एक सीढ़ी चढ़ना। जो बात बौद्ध करते हैं। ये सांप सीढ़ी का खेल है। कभी पतन होता है। कभी दो सीढ़ी ऊपर जाते हो। इस जगत में यही खेल चलता रहता है।
जो मनुष्य ढेर सारी पद्धतियाँ करते रहते हैं वो तो कहीं भी जन्म ले सकते हो। जो मजारों पर माथा टेकते रहते है कहीं भी जन्म ले सकते हैं | जिसे मजारों में आस्था है ये उसको कहीं भी ले जा सकती है। ये जो किसी भी मंदिर में माथा टेकते रहते हैं।
क्या फर्क पड़ता है ?
हमने कई बार कहा है कि अपने गोत्र अपने कुल की देवी देवता को भजो अन्यथा तुम कटी पतंग जैसे हो। फर्क तो मरने के बाद भी पड़ता है। कोई भी अच्छा या बुरा नहीं है। जो इस जगत से पार लगा दे वही सही है। लेकिन उसके लिए जो पार हो गया है वो।
हिंदुओं में तो करोड़ों करोड़ लटके हुए हैं। कारण 36 भतार किये हुए हैं। किसी एक में आस्था ही नहीं है। अगर एक में आस्था होगी तो सारी ऊर्जा एक पर ही लगेगी। अन्यथा बने रहो डेमोक्रेटिक, अभी तक तो न कुछ हुआ है और आगे भी कुछ होने वाला नहीं है।
अगर विपश्यना कर रहे हो तो भविष्य तो तुमने तय ही कर लिया है। ये फर्क समय आने पर प्रकट भी होगा ही। ध्यान रखना इसमें फल भी आएंगे ही। हम इस बात को कह चुके हैं ये सभी बीज रूप में तुम्हारे हृदय में पड़े रहते हैं समय आने पर अंकुरित भी होते हैं। अन्यथा मार्ग तो रोक ही लेते हैं।
इसलिए अपने सभी प्रश्नों का समाधान समय रहते कर लो. अन्यथा थोड़ा ध्यान से अपने अंदर झाँककर देखोगे तो अगला जन्म भी तुमने तय कर ही लिया है। वर्तमान में जो तुम हो वो भी तुम्हारी सोच से ही निकला है।
जागो,
मूर्छा से बाहर आओ,
होश पूर्ण हो जाओ,
वर्तमान हो जाओ।
ये सब क्यों कहा जाता है। इसलिए क्योंकि तुम अपने जन्म और जीवन को नियंत्रण में ले सको। तुम तय कर सको आगे का जन्म लेना भी है या नहीं और यदि लेना भी है तो कहां ?
तुम चाहोगे तो ये बहुत आसान है। लेकिन यदि तुम्हें कुछ आकर्षित कर रहा है लगातार अंदर चल रहा है तो तुमने अगला जन्म भी तय ही कर लिया है। हड्डियाँ खूब गंगा ले जाओ, कितना भी तीर्थ, धाम, श्राद्ध तर्पण कर लो कुछ होने वाला नहीं है |
गंगा, तीर्थ, धाम क्या कर लेगी तुमने तो अपने अंदर कुछ और ही तय कर रखा है।