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एनजीओ हैं पूंजीवाद के रक्षा कवच

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मुनेश त्यागी

 1920 के दशक में समाजवाद, साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एनजीओ यानी non-governmental ऑर्गेनाइजेशन यानी गैर सरकारी संगठन को पूंजीपति रॉकफेलर ने सबसे पहले बनाया था। इस संगठन को एनजीओ का नाम, जनता और दुनिया को गुमराह करने के लिए जानपूछ कर दिया गया था।
 ये संगठन दुनिया के बड़े बड़े पूंजीपतियों ने बनाए हैं जैसे फोर्ड फाउंडेशन, बिलगेट्स फाउंडेशन, pepsi-cola फाउंडेशन, आदि आदि हजारों लाखों एनजीओ दुनियाभर में पूंजीपतियों ने बना रखे हैं। भारत के बड़े एकाधिकारी पूंजीपति भी इस दौड़ से बाहर नहीं हैं, टाटा फाउंडेशन, बिरला फाउंडेशन, रिलायंस फाउंडेशन आदि हजारों एनजीओ भारत में भी काम कर रहे हैं।

 दिखाने के लिए एनजीओ को गैर राजनीतिक संगठन बताया जाता है मगर दुनिया भर में इनकी गतिविधियां और कामों को देख कर यह निश्चित है कि पूंजीवादी दुनिया से त्रस्त परेशान लोग, छात्र, नौजवान, बेरोजगार, वामपंथ और समाजवाद की ओर ना चले जाएं और संकटग्रस्त पूंजीवादी दुनिया को पलटने के संघर्ष और अभियान में ना लग जाए और समाजवादी विचारों को अपनाकर समाजवादी व्यवस्था के निर्णय निर्माण में ना लग जाए, अतः लोगों को वहां जाने से रोकने के लिए, पूंजीपतियों ने एनजीओ का रास्ता अपनाया था ताकि इस समस्या ग्रस्त तबके को एनजीओ के जाल में फंसा कर अपने भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
 दुनिया के जितने भी एनजीओ हैं ये सारे के सारे एकाधिकारी पूंजीपतियों ने बना रखे हैं। इनकी सारी नीतियां, इनका संचालन और खर्चा, इन पूंजीपतियों द्वारा ही उठाया जाता है। इन तमाम एनजीओ की सारी राजनीति और कार्यक्रमों की पूरी रूपरेखा इन पूंजीपतियों द्वारा तैयार की जाती है। इन्हीं नीतियों के अनुसार ये एनजीओ के लोग काम करते हैं। ये तमाम एनजीओ अपना स्वतंत्र एजेंडा तैयार नहीं कर सकते, इनकी अपनी कोई स्वतंत्र औकात नहीं है। इनको पूंजीपतियों द्वारा तैयार किए गए एजेंडे पर ही चलना पड़ता है।
इन एनजीओ का मुख्य कार्य है कि संकटग्रस्त समस्याग्रस्त नौजवानों को समाजवादी व्यवस्था और सोच की ओर जाने से रोका जाए, समाजवाद और वामपंथ के उभार को रोका जाए और उस जनसमर्थन क्रांतिकारी आंदोलन को बढ़ने से रोका जाए।
 हमने व्यवहार में देखा है कि रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त लोग समाजवादी व्यवस्था की ओर जाने की बजाए इन एनजीओ के जाल में फंस जाते हैं जिन्हें क्रांति करनी चाहिए और क्रांतिकारी आंदोलन को  दिशा, विस्तार और गति देकरआगे बढ़ाना चाहिए था, वे अपनी पेट पूजा के लिए क्रांति के विरोध में, पूंजीवाद की हिफाजत और सुरक्षा में लग जाते हैं। 
    ये एनजीओ वैज्ञानिक समाजवाद के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरे हैं। ये तमाम एनजीओ संकटग्रस्त पूंजीवाद के बुझते दियों  की लौ को बचा लेना चाहते हैं। ये समाजवाद की प्रगति में सबसे बड़े रोड़े बन गए हैं, इन्होंने समाजवाद की ओर बढ़ते जन सैलाब को रोक दिया है, उन्हें गुमराह कर दिया है।
 एनजीओ के जाल में फंसकर, ये सारे लोग कोल्हू का बैल बन गए हैं। अब ये सारे लोग जाने अनजाने समाज के क्रांतिकारी रूपांतरण को रोक रहे हैं। ये क्रांति की दिशा और गति को रोकने का काम कर रहे हैं क्योंकि अधिकांश नौजवान लोग, समाज के क्रांतिकारी रूपांतरण में न लगकर, इन एनजीओ के जाल में फंस गए हैं और अपने पेट और सुविधाओं के चक्कर में दुनियाभर के लाखों करोड़ों लोग पुंजीवाद के हित रक्षक बन गए हैं।
  हो सकता है कि इन एनजीओ ने कुछ लाख, करोड़ लोगों को रोजगार दे दिया हो, कुछ गिने-चुने लोगों के जीवन में सुख सुविधाएं आ गई हों, मगर तमाम के तमाम एनजीओ संकटग्रस्त और समस्याग्रस्त सड़े हुए पूंजीवाद को ढहने से बचा रहे हैं। ये तमाम गैर सरकारी संगठन क्रांति और दुनिया के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोक कर खड़े हो गए हैं, जनता को इनसे सावधान रहना होगा, इनकी जन विरोधी और क्रांति विरोधी हकीकत और हरकतों को जानना होगा।
 थोड़े काल के लिए जनता को भरवाने के लिए ये एनजीओ लोकलुभावन कदम उठा कर जनता को गुमराह कर सकते हैं मगर अंतिम रूप से इनका मुख्य काम समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोकना और पूंजीवादी साम्राज्यवाद व्यवस्था को बरकरार रखना है। सारे के सारे एनजीओ साम्राज्यवादी एजेंट की भूमिका अदा करते हैं।
 इन्हें जनता की बुनियादी समस्याओं,,, शोषण, अन्याय, भेदभाव, बढ़ती असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई पर कभी भी वार्ता करते नहीं देखा होगा। ये पूंजीवादी साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के रक्षा कवच का काम कर हैं और साम्राज्यवाद के वाहक बन गए हैं।
 आजकल एनजीओ में काम कर रहे लोग, क्रांति के रुझान के नौजवानों और लोगों को भटका कर और गुमराह कर, एनजीओ में जाने और उनको ज्वाइन करने के लिए दिन-रात प्रयत्नशील है। ये लोग समय के अनुसार समाजवाद और क्रांति का भी चोला पहनकर जनता को धोखा देते हैं और दे रहे हैं, जनता को इनसे बहुत-बहुत सावधान होने की जरूरत है।
 थोड़े काल के लिए ये एनजीओ जनता को बहकाने, भरमाने के लिए लोकलुभावन नारे और कदम भी उठा कर जनता को गुमराह कर सकते हैं मगर अंतिम रूप से इनका मुख्य काम, समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन को रोकना और साम्राजवादी  व्यवस्था को बरकरार रखना है, ये एनजीओ के लोग पूरी तरह से  साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के एजेंट हैं, उन्हीं के लोग हैं, उन्हीं का काम कर रहे हैं, उन्हीं के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। इनका जनता की समस्याओं से दुख दर्द से कुछ लेना देना नहीं है। तमाम के तमाम एनजीओ पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रक्षा कवच बन गए हैं।
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