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मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ,पीएम मोदी को सदन के भीतर बोलना ही होगा

**EDS: VIDEO GRAB VIA SANSAD TV** New Delhi: Opposition MPs stage a walkout from the Rajya Sabha during the Monsoon session of Parliament, in New Delhi, Tuesday, July 25, 2023. (PTI Photo)(PTI07_25_2023_000191B)

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मणिपुर मुद्दे पर भाजपा पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में स्वीकार कर लिया गया है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के अनुसार सदन के नेताओं से इस विषय में चर्चा के बाद इस प्रस्ताव के लिए समय और दिनांक तय किया जायेगा। लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के उपनेता गौरव गोगोई की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था, जिसका कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), जेडीयू, बीआरएस सहित वामपंथी दलों की ओर से समर्थन किया गया है। 

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की ओर से नामा नागेश्वर राव ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। ऐसा कहा जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकार के पास भारी बहुमत मौजूद है। अविश्वास पर मतदान की प्रक्रिया लोकसभा में होती है, जहां पर एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है। लेकिन विपक्ष पिछले 4 दिनों के विरोध और हंगामे के बाद महसूस करने लगा था कि भाजपा मणिपुर के मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा कराने के मूड में बिलकुल नहीं है।

अविश्वास प्रस्ताव के लिए कम से कम 50 सांसदों के लिखित हस्ताक्षर के बाद ही इसे बहस और वोटिंग के लिए पारित किया जाता है। इसी बहाने मणिपुर की भयानक हिंसा और राज्य में एक विशेष समुदाय के राज्य प्रायोजित जातीय नरसंहार पर देश की सर्वोच्च संस्था में बहस का संचालन संभव हो सकता है।

अविश्वास प्रस्ताव की सूरत में पीएम मोदी को सदन के भीतर बोलना ही होगा। पिछली बार 2018 में भी एनडीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था, जिसमें विपक्ष का प्रस्ताव गिर गया था। आज जैसे ही सदन आरंभ हुआ गोगोई अपनी सीट से उठकर अविश्वास प्रस्ताव के अपने नोटिस दिए जाने के मुद्दे पर चर्चा की मांग करने लगे, जिस पर लोकसभाध्यक्ष ने उन्हें सदन के कामकाज की जानकारी देते हुए कहा कि आप एक अनुभवी सांसद हैं, और नियमों से परिचित हैं। इसके बाद जैसे ही ओम बिरला ने प्रश्न काल पर चर्चा की पहल की, समूचा विपक्ष नारेबाजी करते हुए मणिपुर पर लोकसभा में पीएम मोदी के जवाब की मांग पर अड़ गया। हाथों में तख्तियां लिए “इंडिया फॉर मणिपुर” और “नफरत के खिलाफ इंडिया एकजुट है” लहराने लगा।  

सत्तापक्ष की ओर से राजस्थान के सांसद जवाब में राजस्थान की कांग्रेस सरकार के खिलाफ विरोध में लाल डायरी लहराते हुए उठ खड़े हुए। सदन में गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी मौजूद थीं। 

ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा अविश्वास प्रस्ताव को लेकर ख़ास चिंतित नहीं है। सरकार संसद में विपक्ष द्वारा व्यवधान को लेकर अनावश्यक रूप से चिंतित नहीं है, क्योंकि अभी तक वह अपने विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल रही है। सोमवार को जब लोकसभा प्रश्न काल के लिए आंशिक रूप से ही चल पाई थी, और विपक्षी सासंद सदन में नारेबाजी कर रहे थे, तो उस दौरान भी सरकार नर्सिंग एंड मिडवाइफरी कमीशन बिल 2023, नेशनल डेंटल कमीशन बिल 2023 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) पेश कर पाने में कामयाब रही।

इसी प्रकार मंगलवार को भी सरकार लोकसभा में मल्टी-स्टेट कोआपरेटिव सोसाइटीज (संशोधन) विधेयक 2022 एवं जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक 2022 जैसे प्रमुख विधेयक पारित करने में कामयाब रही; और साथ ही राज्यसभा के भीतर संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) विधेयक 2022 भी बिना किसी बाधा के पारित हो गया।

विपक्ष के भीतर संसद में सरकार को घेरने को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। अभी तक विपक्ष एकजुट भले दिख रहा है, लेकिन इसी रफ्तार से यदि भाजपा अपने एजेंडे के हिसाब से बिलों को शोर-शराबे के बीच ध्वनि-मत से पारित करती गई तो ऐसे कई बिल हैं जिनके दूरगामी परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकते हैं। इसी प्रकार अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सदन में पीएम मोदी को मुंह खोलने को बाध्य करने की स्थिति भी कामयाब हो पायेगी या नहीं, इसको लेकर भी दुविधा की स्थिति बनी हुई है।

जिस प्रकार से भाजपा नेताओं ने मणिपुर मुद्दे के समानांतर विपक्षी राज्यों में महिलाओं और बच्चियों पर अत्याचार और यौन उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर अपना नैरेटिव बनाने का प्रयास किया है, शायद अभी भी विपक्षी नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें लग रहा है कि शायद भाजपा के नेतृत्व को डबल इंजन सरकार के मणिपुर उदाहरण से लज्जा का अहसास हो, और मणिपुर में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की बर्खास्तगी सहित न्यायिक जांच एवं हिंसा के शिकार लोगों को तत्काल राहत पहुंचाने की व्यवस्था हो सकती है। लेकिन यहां पर मामला मणिपुर नहीं बल्कि मोदी सरकार के मॉडल की प्रतिष्ठा से जुड़ा है।

गुजरात मॉडल का प्रयोग विभिन्न राज्यों में किया गया है, लेकिन सभी जगह इसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं। आज यदि मणिपुर में कार्रवाई की जाती है तो यह हिन्दुत्ववादी प्रयोग के लिए आघात से कम नहीं होगा। बहरहाल अविश्वास प्रस्ताव को सरकार ने स्वीकार कर लिया है, तो समझना चाहिए कि उसने इससे निपटने के लिए रणनीति भी अवश्य तैयार कर ली होगी। इस बार मोदी सरकार अचानक से वायरल वीडियो पर घबराकर हड़बड़ी में जवाब नहीं देने वाली।

गोदी मीडिया, आईटी सेल सहित राष्ट्रीय नेताओं के पास मणिपुर और विपक्षी गठबंधन INDIA के लिए क्या जवाब देना है, यह गुरुमंत्र खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढ़ी और भाजपा संसदीय दल की बैठक में दे दिया है। असल में विपक्ष को तय करना है कि वह संसद, ट्वीट और प्रेस कांफ्रेंस तक ही खुद को सीमित रखती है या देशभर में संयुक्त रूप से सडकों पर निकलकर आम लोगों के बीच में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए जन-अभियान चलाती है।  

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