सिद्धार्थ माछीवाल
“अब और हिरोशिमा नहीं भोपाल नहीं हम जीना चाहते हैं” डच मूर्तिकार रूथ वाटरमैन द्वारा भोपाल गैस त्रासदी मे हजारों लोगों की मौत से दुखी होकर यूनियन कार्बाइड के गेट पर बनवाए गए पहले सार्वजनिक स्मारक पर ये मार्मिक पंक्तियां लिखी हैं, इन पंक्तियों के आगे क्या अहिल्याबाई होलकर के मालवा और खासकर इंदौर का नाम भी जुड़ जाएगा?
इस काल्पनिक प्रश्न का जवाब आज भले पीथमपुर और इंदौर के भविष्य के गर्त मे हो, लेकिन यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर में जलाने के फैसले को लेकर भविष्य में ऐसी स्थिति को लेकर आम जनता से लेकर एलीट क्लास तक हर कोई आशंकित है
पीथमपुर और इंदौर के लिए यह महज एक निराशाजनक संयोग इसलिए है कि औद्योगिक कचरा निस्तारण की जिस कंपनी को इंदौर और मालवा ने फलने फूलने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी वही अब इसी क्षेत्र के लिए विरोध और खतरे का सबब बन रही है, फिलहाल तमाम शंका कुशंका के बावजूद यह कंपनी सरकार को यह जताने में सफल हो गई की कचरा जलाने से कुछ नहीं होगा यह बात और है कि कंपनी खुद भी कुशलक्षेम के इस ज्वलंत मुद्दे पर श्वेतपत्र जारी करने की स्थिति में नहीं है
आज धार विधायक नीना वर्मा द्वारा दिया गया बयान महत्वपूर्ण है जिसमें वह कहती है कि रामकी संयंत्र में 2014-15 में जलाया गया कचरे का अवशिष्ट अब भी पड़ा हुआ है जिसका निस्तारण कंपनी अब तक नहीं कर पाई, तो फिर 337 टन कचरा के निस्तारण का भविष्य क्या है जल्द से जल्द कचरा पीथमपुर बुलवाने की लालसा लिए बैठे कंपनी के प्रतिनिधि वैज्ञानिक तरीके से पूरी पारदर्शिता के साथ यह दावा करने आगे नहीं आए कि कंपनी के कारण ना तो स्थानीय स्तर पर पहले किसी को नुकसान हुआ है ना अब नुकसान की कोई गुंजाइश है यह बात और है कि फिलहाल मोहन सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेश के फलस्वरुप पीथमपुर में कचरा जलाने के लिए कंपनी के सुरक्षा मानदंडों की पल पल पैरवी करने को मजबूर है, इतना ही नहीं कोर्ट में भी सरकार ने अपने संसाधनों से एकत्र की गई ट्रायल रन रिपोर्ट में भी कंपनी के पक्ष में ऐसी दलीलें प्रस्तुत की जिसमें बताया गया कि 2013 और 15 में जलाए गए कचरे के कारण किसी को कभी कोई हानि या परेशानी हुई ही नहीं जबकि बीते सालों में यहां यूनियन कार्बाइड का ही नहीं बल्कि केरल से भी पेस्टिसाइड अपशिष्ट लाकर जलाया गया,
यही स्थिति प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रही जिसे बीते वर्षों में कंपनी मे घातक अवशिष्ट जलने पर वायु जल और भूमिगत प्रदूषण आधारित कोई दुष्प्रभाव कभी नजर ही नहीं आया, इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों की मजबूरी कुछ ऐसी है कि चाह कर भी उच्चतम न्यायालय के आदेश के संदर्भ में सरकार के फैसले पर वे स्वतंत्र रूप से वह अपना अभिमत भी व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं एक दिन पूर्व तक खुद विजयवर्गीय पीथमपुर में कचरा जलाने संबंधी फैसले को लेकर सहमत नहीं थे वह आज मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद बेमन से इस फैसले पर मूक सहमति देते नजर आए हालांकि उनकी मनोस्थिति उनके शब्दों ने बयां कर दी जिसमें वह कहते हैं कि जीव जंतु वृक्ष और मनुष्यों की मुख्यमंत्री ने गारंटी ली है।
उनके भाव को उनके इस बयान से समझा जा सकता है कि कचरा जलाने के खिलाफ जिस जनता ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई है वह जनता भी हमारी है, यही स्थिति पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की रही जिन्होंने खुद इंदौर के हित में सरकारी परीक्षणों पर सवाल खड़े करते हुए आरआर कैट और एसजीएस आआईटीएस के वैज्ञानिकों से भी जांच करने और परामर्श लेने की नसीहत दी है हालांकि इस क्रम में धार विधायक नीना वर्मा की हिम्मत काबिले तारीफ है जो अपने लोगों और शहर के लिए सरकार की नाराजगी की परवाह किए मुखर होकर भविष्य आधारित खतरे के प्रति आशंकित होकर सहयोग की अपेक्षा कर रही हैं इधर दूसरी तरफ अपने शहर को खतरे से बचने और भविष्य आधारित औद्योगिक त्रासदी से बचने के लिए कई जन संगठन और आम जनता उन पुनर्विचार याचिकाओं और कोर्ट की दलीलों के भरोसे है जिसे लेकर उन्हें उम्मीद है कि उनकी जनहितैषी सरकार न सही लेकिन माननीय न्यायालय कचरे के निस्तारण के पूर्व उनकी फरियाद पर भी संज्ञान जरूर लेगा।