शशिकांत गुप्ते इंदौर
आज सीतारामजी ने मुझे निम्न कहावत का स्मरण कराया।
खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे
मैने पूछा आज इस कहावत का स्मरण करने की कोई खास वजह है।
सीतारामजी ने कहा जब किसी व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होता है,तब वह उलजलूल कामों में लगा रहता है।
मैने सीताराजी से कहा कि, मैने भी किसी व्यक्ति को यह कहते हुए सुना है कि,यदि मै अमुक कार्य सम्पन्न नहीं कर पाया तो मैं अपना नाम बदल दूंगा।
सीतारामजी ने कहा इस तरह नाम बदलने की बात करने वाला या तो नासमझ होता है,या जरूरत से ज्यादा समझदार होता है,या अहंकारी होता है,या वाचाल होता है,या अपनी नकाबालियत को छिपाने के लिए छद्म चुनौती देता है।
सीतारामजी ने अपनी बात जारी रखते हुए,मुझसे कहा विषयांतर हो रहा है। अपनी चर्चा का विषय है,खाली बनिया क्या करें …….. वाली कहावत।
मैने कहा सच में कुछ लोगों की आदत होती है,अपनी छद्म क्षमता को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए प्रलोभन युक्त वादें करते हैं। और अपने द्वारा किए गए वादों को निभाने में असफल होने पर लोगो का ध्यान भटकाने के लिए,निष्प्रयोजन की बातें करते हैं, मतलब व्यर्थ की बातों में लोगों को उलझाए रखतें हैं।
इस तरह की मानसिकता के लोगों को जनता की मूलभूत समस्याएं दिखाई नहीं देती हैं,जैसे बेरोजगारी, मंहगाई, महंगी शिक्षा,महंगी चिकित्सा, किसानों की समस्याएं, आदि।
सीतारामजी ने कहा इन समस्याओं का नाम बदल ने के लिए कोई शब्द नहीं मिल रहे होंगे।
यदि शब्द मिल जाएं तो उपर्युक्त समस्याओं का नाम बदलने से संभवतः सारी समस्याएं हल हो जाएगी।
सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से
कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज़ के फूलों से
सीतारामजी को यकायक फिल्म असली नकली के गीत निम्न पंक्तियां याद आ गई।
लोग तो दिल को खुश रख्ने को क्या क्या ढोंग रचाते है
भेष बदल कर इस दुनिया में बहरूपिये बन जाते हैं